दोस्तों बलि बकड़े की दी जाती है अतः जो बकड़े हैं वो कटने को तैयार हो जाएँ और जो शेर हैं वो प्रण लें कि निरीक्षण करने वालों पर ऑनस्पॉट फैसला लें। निरीक्षण कर्ता को ऐसा सबक सिखाएँ कि दुबारा किसी विद्यालय में निरीक्षण करने का सोंचे तक नहीं।
यह सब शिक्षा के गुणवत्ता के लिये नही हो रहा बल्कि अधिकारियों और मंत्रियों का जेब भरने के लिये हो रहा है।
और यदि वास्तव में सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लाना चाहती है तो मैं दावे के साथ कहता हूँ मेरे बताये रास्ते पर चले सरकार तो न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष्य पूरा होगा बल्कि अरबों खरबों रूपये जो प्रतिमाह सरकार विद्यालयों में खर्च करती है उस दुरूपयोग को भी रोका जा सकता है।
इसके लिए सरकार को चाहिये कि एक ऐसा कानून लागू करे(जैसे शराबबन्दी के लिये लाया गया) जिसके अन्तर्गत सभी सरकारी कर्मचारियों;पंचायत प्रतिनिधियों; विधायकों; सांसदों और मंत्रियों के बच्चों का नामांकन उसी सरकारी विद्यालय में हो जिस विद्यालय की स्थिति ठीक करनी हो।
उसके बाद न तो विद्यालय में MDM की आवश्यकता होगी न छात्रवृति और पोशाक योजना की और न ही किसी औचक निरीक्षण की आवश्यकता होगी।
यदि किसी शिक्षक मित्र का ऊपर तक पहुँच हो तो कृपया मेरा ये idea शिक्षामंत्री तक पहुंचा दें।
फ़िर मैं देखना चाहूँगा कि वाकई सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहती है या केवल ग़रीब जनता को दग़ा दे रही है।
मोहन मुरारी
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