मंगलवार, अक्तूबर 18, 2016

झारखंड के दुमका प्रमंडल की पुलिस का गौरक्षा के नाम पर आतंक

मुसलामानों के विरुद्ध नफरत एवं अन्याय का पाठ पढने वालों के हाथों में जब हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता हो तो उसकी क्रूरता एवं दबंगई को कौन रोक सकता है : यहाँ हम आपको दुमका प्रमंडल की पुलिस की गाय के नाम पर गुंडागर्दी की आँखों देखी तस्वीर पेश करते हैं (यह सच घटना पर आधारित है और मुस्तकीम सिद्दीकी के भावनाओं से जुडी है ):

एक सप्ताह पहले मिन्हाज़ अंसारी को गाय के नाम पर दुमका प्रमंडल की पुलिस ने पुलिस थाने में इतनी द्रन्द्गी , क्रूरता एवं अमानवीय तरीके से पिटती है के हॉस्पिटल में उसकी मौत हो जाती है , लेकिन दुमका प्रमंडल की पुलिस गाय के नाम पर किस तरह गुंडागर्दी कर रही है अगर इसके विरुद्ध हम आज आवाज़ नही उठाएंगे तो मिन्हाज़ अन्सारी की तरह कितनी माएं अपनी जवान बेटे को खो देगी | यहाँ हम आपको दुमका प्रमंडल की पुलिस की गाय के नाम पर गुंडागर्दी की आँखों देखी तस्वीर पेश करते हैं :

आज से लगभग डेढ़ महीने पहले 26 अगस्त 2016 को रात्री 3:45 बजे मेरा एक मित्र अख्तर हुसैन मुझे फोन करता है के आप कहाँ हों और किया कर रहे हो , चुनके मैं रात में लम्बे सफ़र से आकर थका गहरी नींद में घर पर सो रहा था, गुस्से में मैंने जवाब दिया सब्जी मंडी में बैगन खरीद रहा हूँ लेकिन उसने मेरी गुस्से भरी बातों को नज़र अंदाज़ करते हुए बड़े गंभीर होकर बोला के मैं आपके घर पर 15 मिनट में पहुँच रहाँ हों आप को पुलिस स्टेशन चलना है चुनके आपके मित्र रजा मुराद खान और कुछ साथियों को पुलिस ने गौ तस्कर के आरोप में पकड़ कर देवघर जिला (झारखंड) के सारठ थाना में बंद रखा हुआ है | इससे पहले की मैं कुछ समझ पता मुझे लगातार उनके घर वालों और रिश्तेदारों के फ़ोन आने शुरू हो गए के ऐसा कैसे हो सकता है के रजा मुराद खान गौतस्करी कराये और मैं भी बहुत अचंभित था के रजा मुराद खान ऐसा काम कर ही नही सकता है तो फिर पुलिस ने उसे क्यूँ , कहाँ और कैसे गिरफ्तार किया ,  फिर भी मैंने फ़ौरन अधिकारिक पुष्टी कर ली और जब पुलिस उपाधीक्षक से इस बारे में बात किया के आप की पुलिस ने झुटा आरोप लगा कर गिरफ्तार किया है , अत: उन्हें छोड़ दिया जाए तो पुलिस उपाधीक्षक क्रोधित होकर इस तरह फटकार लगा रहां था जैसे हम उनकी अपनी अम्मा के कातिल को छोड़वाने की बात कर रहे है| सुबह सवेरे हम पुलिस स्टेशन जा कर थाना प्रभारी को समझाने की कोशिश कर रहे थे के यह लोग गौतस्कर नहीं है लेकिन थाना प्रभारी भी अनाप सनाप तरीके से बेहूदगी पर उतर आया था और वर्दी की गर्मी को हम पर निकालने की धमकी देने लगा , हमने साफ़ साफ़ शब्दों में उन्हें संदेश दे दिया के अगर वह गलत तरीके से मुझ पर या हमारे लोगों पर किसी भी तरीके का अत्याचार करेगी या अपनी शक्ती का दुरूपयोग हमारे लोगों या मुझ पर करने की कोशिश करेंगे तो थाने पर हजारों की भीड़ इकट्ठा हो कर पुलिसिया अत्याचार एवं दबंगई को बेनकाब कर देगी और यह आन्दोलन का रूप ले लेगी |

थाना प्रभारी मेरे बातों को गंभीरता से लेते हुए बोला के हम जानते हैं के यह लोग गौतस्कर नही हैं फिर भी मुझे पुलिस उपाधीक्षक ने कुछ लोगों को गौतस्कर के नाम पर पकड़ने का आदेश दिया है , इसलिए हमारी मजबूरी है के हमें जो भी रास्ते में मिले उसे गौ तश्कर समझ कर गिरफ्तार कर लेते है |

इसी बिच इस झूटे आरोप को इतना गंभीर एवं सन्वेदनशील बना दिया गया के कुछ ही घंटों में यह संप्रादायीक रूप ले चुका था और झारखंड राज्य के कृषी मंत्री श्री रणधीर सिंह जो उसी छेत्र से आते हैं उसकी भूमिका इस झूटे बेबुनियाद मुद्दे को अशांत रूप धारण करवाने की ओर बढ़ चुका था हालांकी उसी छेत्र से चुन्ना सिंह जैसे जमीनी नेता का बहुत ही सराहनीये योगदान रहा और थाने पर जाकर खुद इस बात की पुष्टी की के रजा मुराद खान एक समाजसेवी एवं अच्छी छवी का व्यक्ती है , अत : इनलोगों को गलत तरीके से पुलिस फ़साने का षडयंत्र न रचे लेकिन मुसलामानों के विरुद्ध नफरत एवं अन्याय का पाठ पढने वालों के हाथों में जब हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता हो तो उसकी क्रूरता एवं दबंगई को कौन रोक सकता है , उसके शातिर ब्र्ह्मंवादी विचारों को कौन बदल सकता है शकील बदायुन्वी के शब्दों में :
हालात मिटा दे हाथों की तहरीर बहुत ही मुस्किल है |
तदबीर बदल दे इंसान की तक़दीर बहुत ही मुश्किल है |

यह जानते हुए के मेरे दोस्त एवं कुछ और लोगों को मुसलमान होने के नाते एक षडयंत्र कर गौतस्कर के रूप में फसाया जा रहा है , उन्हें मुसलमान होने की सजा दी जा रही हैं , उसे शातिर ब्र्ह्मंवादी के शाज़िशों का शिकार होना पड़ रहा है और मैं कुछ भी करने में असहाय हूँ तब पुरे शांत मन एवं ठंडे विचार से मैंने फैसला लिया के हम इस षडयंत्र का पर्दा जल्द ही फास करेंगे और गौतस्कारों में जो लोग भी संलिप्त है उसके ठिकानों का पता लगा कर सच्चाई सामने लायेंगे अन्यथा मेरे मित्र की तरह न जाने कितने ओर युवक इस तरह बली का बकरा बनता रहेगा | लेकिन सबसे पहले मैंने फैसला किया के कानूनी तरीके से अपने मित्र का बेल कराया जाए चुनके इनके ऊपर पश्चिम बंगाल के रस्ते बंगलादेश में अवैध रूप से गौतस्कारी , पशु उत्पीडन , पशु हत्या , पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत कई आरोप लगाकर देवघर जेल भेज दिया गया था | राजा मुराद खान को उनके सामाजिक कार्यों के आधार पर ३० अगुस्त २०१६ को यानी ३ दिनों के अन्दर ही बेल दे दिया गया |

(रजा मुराद खान प्रस्तावित मैथन यूनिवर्सिटी एवं अल अंसार फाउंडेशन के कोषाध्यक्ष हैं एवं Mustaqim Siddiqui के मित्र हैं |)

शनिवार, अक्तूबर 15, 2016

सुना है कि स्कूल से ग़ायब शिक्षकों पर ऑनस्पॉट फैसला किया जायेगा-मोहन मुरारी

दोस्तों बलि बकड़े की दी जाती है अतः जो बकड़े हैं वो कटने को तैयार हो जाएँ और जो शेर हैं वो प्रण लें कि निरीक्षण करने वालों पर ऑनस्पॉट फैसला लें। निरीक्षण कर्ता को ऐसा सबक सिखाएँ कि दुबारा किसी विद्यालय में निरीक्षण करने का सोंचे तक नहीं।
यह सब शिक्षा के गुणवत्ता के लिये नही हो रहा बल्कि अधिकारियों और मंत्रियों का जेब भरने के लिये हो रहा है।

और यदि वास्तव में सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लाना चाहती है तो मैं दावे के साथ कहता हूँ मेरे बताये रास्ते पर चले सरकार तो न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष्य पूरा होगा बल्कि अरबों खरबों रूपये जो प्रतिमाह सरकार विद्यालयों में खर्च करती है उस दुरूपयोग को भी रोका जा सकता है।
इसके लिए सरकार को चाहिये कि एक ऐसा कानून लागू करे(जैसे शराबबन्दी के लिये लाया गया) जिसके अन्तर्गत सभी सरकारी कर्मचारियों;पंचायत प्रतिनिधियों;  विधायकों; सांसदों और मंत्रियों के बच्चों का नामांकन उसी सरकारी विद्यालय में हो जिस विद्यालय की स्थिति ठीक करनी हो।
उसके बाद न तो विद्यालय में MDM की आवश्यकता होगी न छात्रवृति और पोशाक योजना की और न ही किसी औचक निरीक्षण की आवश्यकता होगी।

यदि किसी शिक्षक मित्र का ऊपर तक पहुँच हो तो कृपया मेरा ये idea शिक्षामंत्री तक पहुंचा दें।
फ़िर मैं देखना चाहूँगा कि वाकई सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहती है या केवल ग़रीब जनता को दग़ा दे रही है।
मोहन मुरारी

शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2016

परिवर्तनकारी प्रारम्भिक शिक्षक संघ की बैठक 15नवम्बर को होगी

परिवर्तनकारी प्रारम्भिक शिक्षक संघ की जिला कमिटी की ओर से दिनांक 15 अक्टूबर 2016 दिन ,  शनिवार
समय :- 1:30 पूर्वाह्न , स्थान:-  गीता भवन ,  डुमरा ( कुमार चौक के समीप ) सीतामढ़ी में अति आवश्यक बैठक का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें जिला कार्यकारणी के सभी सम्मानित प्रतिनिधिगण , सभी प्रखंड अध्यक्ष , महासचिव एवम सभी सम्मानित प्रतिनिधिगण की उपस्थिति अनिवार्य है । आप सभी  प्रतिनिधियों से आग्रह है की ससमय उपस्थित होकर बैठक को सफल बनाएँ ।
     कृपया इसे सर्वोच्य प्राथमिकता देगें ।

बुधवार, अक्तूबर 05, 2016

ब्रेकिंग न्यूज़ /डीपीई से सम्बंधित याचिका कोर्ट ने किया ख़ारिज

माननीय हाइकोर्ट ने इग्नू से डीपीई व सम्बर्धन करने वाले नियोजित शिक्षक को प्रशिक्षित शिक्षक की मान्यता दे दी है ।
इस कोर्स के मान्यता को रद्द करने की याचिका को आज माननीय हाइकोर्ट पटना ने ख़ारिज कर दिया गया है।

शनिवार, अक्तूबर 01, 2016

Virasat

AZIZ BURNEY
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Rishtey khoon k,sukoon k,junoon k
Ji han aaj m aap k darwaze par ek naye rishtey ka paigham lekar aaya hun ji nahi ye us rishtey ka paigham nahin h Jo do afraid ya do khandanon k darmyan hota h
M us rishtey ka paigham lekar aaya hun Jo poori Qom aur tamam ham khyal logon k darmyan ho
Hamara ek chota pariwar WO pariwar hota h jin se hamara khoon ka rishta hota h Jo hamare khoon se paida hain ya ham jin k khoon se paida hain
Hamara ek barha pariwar WO pariwar ho sakta h jinse hamara sukoon ka rishta h jinhen ham khud qayam karte hain jinse hamara dil ka rishta h Jo hamare hamkhyal hain moonh bole aur god liye rishtey bhi isi dayre m aate hain inki tadad LA mehmood ho sakti h
Jin se aapka khoon ka rishta h WO aapki khandani virasat k haqdar hain aur jinse aapka sukoon w junoon ka rishta h WO aapki amli virasat k haqdar hain aaj meri virasat do hisson m bati h ek WO Jo mitti ki virasat h jise ek din mitti m mil Jana h WO zamin zaydat eint pathar k makanat Jo mitti k siwa kuch nahin
Meri ek virasat WO h Jo meri shanakht h Jo meri qalmi aur amli tehreek h jis k haqdar aap sab ho sakte hain bal k aap us k haqdar hain
Aaj m aapse isi rishtey ki bat karne aap k pas aaya hun tehreek e aazadi kisi ek khandan ki virasat nahin UN hazaron lakhon khandanon ki marhoone minnat h jinka khoon is aazadi ki tehreek m shamil h
Junoon ka rishta
Aaj ek bar phir m ek naye junoon k sath maidane amal m aaya hun Jo mere nazdeek zehni aazadi ki tehreek h haqiqi aazadi ki tehreek h m jis media team ki bat kar raha hun WO team h jis se mera junoon ka rishta h meri amli virasat ka hissa h is tehreek ko hamesha hamesha mere bad bhi UN k bad bhi zinda rehna h kya qayam hoga aap se mera ye junoon ka rishta kya banenge aap is tehreek ka hissa
Agar han to azrahe karam mere is rishtey k paigham ko qubool kar Len Jo aaj m aapki khidmat m lekar aaya hun aur pahuncha den ye paigham UN sab tak jin k sath sukoon ka aur junoon ka rishta qayam ho sakta h
Mujhe aap sab k jawab ka bahut besabri k sath intzar rahega m bat khatm karne se qabl ye arz kar dena chahta hun k Maine aaj tak ki zindgi m UN sab k sath apne rishtey ko poori imandari se nibhaya h jinse mera khoon ka rishta nahin h aur inshallh aage bhi isi imandari aur mohabbat se nibhane k azm k sath aaj k is paigham ko tamam karta hun .
aapka
Aziz Burney

अन्याय की कोख से क्रांति का जन्म होता है

बादशाह सदाक़त
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राजद के राष्टीय नेता डा.मोहम्मद शहाबुद्दीन को महज एक व्यक्ति समझकर नितीश जी और महागठबंधन के तथकथित नेताओं ने भारी भूल की है।अदालत को गुमराह करके उनको जेल भिजवाकर इन नेताओं ने बिहार के मुस्लिम समाज के दिलों पर ठेस पहुंचाई है।इसका परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।शहाबुद्दीन आज की तारीख में व्यक्ति नहीं ,संस्था का नाम हो चूका है।जिन विधायकों की नसीब मुस्लिम मतदाता लिखने का काम करते हैं ,उनके सामने भविष्य की चिंता आ खड़ी हुई है।इस मामले में सरकार ने राज धर्म का अपमान किया है।शहाबुद्दीन को जेल में बन्द करके मुसलमानों पर राज करने का सपना देखने वाले यह मत भूलें कि जुल्म और अन्याय की कोख से ही परिवर्तन की क्रांति का जन्म होता है।

रविवार, सितंबर 25, 2016

संवेदना का ह्रास

महजबीं
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निचले तबक़े के आदमियों से दूर होती संवेदना बहुत चिंता का विषय है, दो तीन दिनों से झारखंड के एक सरकारी अस्पताल में, मरीज़ को फर्श पर भोजन परोसने जैसी संवेदनशील ख़बर, चर्चा में बहस का विषय है।

कौन कौन दोषी हो सकते हैं, इस घटना को अंजाम देने के लिए? सत्ता, पूंजीपति, व्यवस्था, अस्पताल की ऐडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट, इस घटना में सिर्फ आसमान में उड़ने वाले ही नहीं शामिल हैं, बल्कि ज़मीन से जुड़े लोग भी शामिल हैं, हम उन्हें अनदेखा कैसे कर सकते हैं? खाना परोसने वाला कोई पूंजीपति या राजनीतिज्ञ नहीं था, एक अदना सा कर्मचारी है, अस्पताल में डी ग्रेड कर्मचारियों की तनख़्वाह होती ही कितनी है, बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने मात्र ।  मतलब कि अस्पताल में जिस व्यक्ति ने निर्मम घटना को अंजाम दिया, वो एक आम आदमी है। बहुत भयावह स्थिति है, एक आम आदमी के भीतर से संवेदना, जिम्मेदारी का नष्ट हो जाना। फिर कटघरे में सिर्फ सत्तापक्ष और पूंजीवादी व्यवस्था ही क्यों?

साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, अक्सर अपनी रचनाओं के माध्यम से,  समाज के उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय लोगों में, संवेदनाओं के नष्ट होने की दुहाई देते रहते हैं, पूंजीपतियों और नेताओं के व्यवहार पर टिप्पणी करते रहते हैं, व्यवस्था का विरोध करते रहते हैं, आम आदमी की स्थितियों- प्रस्थितियों , मज़बूरीयों का वर्णन करते हैं, लेकिन आज आम आदमी की भी संवेदना नष्ट हो गई है, वो भी दोषियों की श्रेणी में खड़ा है, तो उसे कटघरे में क्यों नहीं खड़ा करना चाहिए?

इस घटना में अगर सत्ता, व्यवस्था, पूंजीपति, अस्पताल का ऐडमिनिस्ट्रेटिव, डिपार्टमेंट जितना दोषी है उतना ही दोषी वह आम आदमी कहलाने वाला कर्मचारी भी है। और कहीं न कहीं सोशल मीडिया और बिकी हुई मिडिया भी, जिसने तस्वीर खींच कर सोशल मीडिया पर साझा की, सबसे बड़ा  असंवेदनशील व्यक्ति तो वही है, जिसने तस्वीर खींच कर पूरे हिन्दुस्तान में संप्रेषित करने की जहमत की, लेकिन उस खाना परोसते हुए कर्मचारी का हाथ नहीं पकड़ा, उसके मुँह पर तमाचा नहीं मारा। इतनी ही संवेदना थी तो पहले उस मरीज़ को प्लेट में खाना मुहैया करवाता, अस्पताल वालों ने नहीं दिया तो, वही अपने केमरा चलाने से पहले, उस मरीज़ को सम्मान पूर्वक भोजन करा देता, उसके बाद मिडिया और सोशल मीडिया की रोटियां सेकने का इंतजाम करता।

मरीज़ कितना विवश था कि, उसने विरोध नहीं किया, खाना खा लिया फर्श से ही उठाकर। उसके परिवार वाले कहाँ थे? क्या वो घर से ज़रूरी वस्तुएं मरीज़ के लिए नहीं ला सकते थे? या फिर  इस घटना का दूसरा पहलू यह है कि, वो मरीज़ अकेला ही था अस्पताल में भर्ती, और उसके परिवार के सदस्य उसके साथ अस्पताल में रहने के लिए असमर्थ होंगे, किन्हीं कारणों से। कैसी - कैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है एक ग़रीब आदमी को। जिसकी ओर सत्ता का ध्यान कभी केंद्रित नहीं होता, वर्तमान सत्ता से क़ितनी उम्मीदें थीं जनता को, लेकिन क्या हुआ, सरकार ने अपने वादे पूरे किये? यह छोटी-छोटी बुनियादी ज़रूरतें तो पूरी की नहीं, और मेहंगी दँवाईयों की सब्सिडी भी ख़त्म कर दी।

बुलेट ट्रेन का ही तोहफा मिलेगा क्या इन पाँच सालों में? शिक्षा- स्वास्थ्य, बेरोजगारी, प्रदूषण, ग़रीबी जैसी समस्याओं पर वर्तमान सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता है? बीफ, कश्मीर, पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दे मिडिया में उछलते रहते हैं, सरकार न तो ग़रीब मज़दूर के बारे में सोच रही है, और न ही दलितों- मुसलमानों, स्त्रियों के बारे में कुछ कर रही है। फिर कौन खुश हैं, संतुष्ट हैं इस सरकार से। हक़ीक़त यह है कि न कोई खुश हैं, और न ही कोई सुरक्षित हैं।

पिछले साठ सालों में कॉग्रेस ने राज किया, उसने भी इस बुनियादी ढांचे में कोई सुधार नहीं किया, और आज विपक्ष में बैठकर चिल्ला रही है। और बीजेपी पिछले साठ सालों से विपक्ष में रहकर चिल्ला रही थी, आज सत्ता में है। यह हिन्दुस्तान की बहुत बदकिस्मती है कि, उसके पास बड़े राष्ट्रीय स्तर की दो पार्टियां हैं कॉग्रेस और बीजेपी, यही सत्तापक्ष और विपक्ष में रहती हैं, और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालती रहती हैं। और तीसरा विकल्प मज़बूत नहीं होता।

-मेहजबीं

गुरुवार, सितंबर 22, 2016

खबर का असर परिहार में अतिक्रमण मुक्त अभियान जारी

परिहार  (सीतामढी )।dailychingari ने दिनांक 19/09/2016 को "बस से कुचल कर 06 वर्षीयबच्चे की मौत " शीर्षक से खबर प्रकाशित किया था जिसमें घटना के पीछे सड़कों का अतिक्रमण को मुख्य कारण माना था प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया और परिहार की सड़कों को अतिक्रमण मुक्त करने का अभियान शुरू कर दिया है देखना अब यह है कि प्रशासन इसे कितनी तत्परता से लेती है।

ज्ञात हो कि सड़कों के अतिक्रमण और जर्जर सड़क के कारण पूर्व में भी हाईस्कूल के समीप ट्रक से कुचल कर इंदरवा निवासी एक नौजवान की मौत घटना स्थल पर ही हो गईं थी अगर उस समय घटना को गंभीरता से ले लिया जाता तो घटना की पुनः पूर्णावृति नहीं होती और एक जान काल के गाल में जाने से बच जाता ।

सोमवार, सितंबर 19, 2016

बस से कुचल कर 10 वर्षीय बच्चे की मौत

परिहार  (सीतामढी )।बस से कुचल कर 10 वर्षीय बालक की मौत घटना स्थल पर ही हो गई।घटना  परिहार चौक से सटे ट्रांस्फ़र्मर के निकट की है मृतक परिहार निवासी तेज नारायण सिंह का पौत्र है।मृतक शुभम कुमार अजय कुमार सिंह का पुत्र है
                घटना को लेकर आक्रोशित लोगों ने परिहार को पुरी तरह बंद कर दिया है।साथ ही घटना के विरोध में टायर जला कर मुख्य मार्ग को बंद कर दिया ।परिहार में अक्सर दुर्घटनाओं में मृत्यु होती रहती है मगर शासन प्रशासन सचेत नही हो रही है जो चिंता का विषय है दुर्घटनाओं के पीछे एक अहम कारण सड़कों का अतिक्रमणकारिओ के द्वारा सड़कों का अतिक्रमण है।

बुधवार, सितंबर 14, 2016

प्रखणड शिक्षा पदाधिकारी परिहार के तुगलकी फरमान से नवोदय विद्यालय परीक्षा का आवेदन जमा कराना हुआ दुशवार

परिहार  (सीतामढी ) प्रखणड शिक्षा पदाधिकारी परिहार के तुगलकी फरमान से नवोदय विद्यालय परीक्षा का आवेदन जमा कराना  दुशवार हो गया है।
           परीक्षा फार्म प्रखणड शिक्षा पदाधिकारी के पास जमा कराने की आखिरी तिथि 16/09/16 है बीईओ ने तुगलकी परमानंद जारी कर रखा है कि आवेदन प्रधानाध्यापक नामांकन पंजी लेकर आएंगे तभी जमा किया जाएगा जबकि आवेदन में निर्देश है कि आवेदक प्रधान से दस्तखत करा कर आवेदन प्रखणड शिक्षा पदाधिकारी के पास जमा करा पावती ले लेंगे ।

सोमवार, सितंबर 12, 2016

बेलसंड प्रखणड कमिटी का गठन

परिवर्तनकारी प्रारम्भिक शिक्षक संघ सीतामढ़ी की ओर से बेलसंड प्रखंड के उत्क्रमित उच्च विधालय  में प्रखंड कमिटी का गठन किया गया । जिसकी अध्यक्षता जिला सचिव  सह प्रधानाध्यापक शशि रंजन ने की । बैठक को प्रदेश संयुक्त सचिव राम कलेवर , जिला अध्यक्ष पवन कुमार , जिला महासचिव शशि रंजन सुमन , कोषाध्यक्ष राजेश कुमार , उपाध्यक्ष विनोद यादव व सजंय कुमार , सचिव मो . अकील संयुक्त सचिव राकेश पासवान , प्रवक्ता मो. नजीवुल्लाह ने सम्बोधित किया ।
      बैठक में शशि रंजन को जिला सचिव तथा पूर्व अध्यक्ष सजंय राय को अनुमण्डल सचिव बनाया गया । वही प्रखंड अध्यक्ष सुबोध कुमार , महासचिव दिनेश कुमार , संयोजक हेमंत कुमार , सह संयोजक अभय कुमार , प्रवक्ता रितेश कुमार व मो. जफिर आलम , उपाध्यक्ष दया शंकर सिंह व वरुण कुमार सिंह , सचिव मो. अंजिमुद्दीन राइन व नरेंद्र कुमार , संयुक्त सचिव राम प्रवेश राम , सह कोषाध्यक्ष दीपक कुमार सिंह को बनाया गया ।
               इस अवसर पर उपस्थित सभी सदस्यों ने नगर पंचायत प्रारम्भिक शिक्षक संघ की सदस्यता को छोड़ कर परिवर्तनकारी प्रारम्भिक शिक्षक संघ की सदस्यता ग्रहण की ।

शुक्रवार, सितंबर 02, 2016

सर्वपल्ली राधाकृष्णन

भारत के दूसरे राष्ट्रपति
कार्यकाल
१३ मई, १९६२ – १३ मई, १९६७
प्रधान  मंत्री गुलजारी लाल नंदा (प्रथम कार्यावधि)
लाल बहादुर शास्त्री
गुलजारीलाल नंदा (द्वितीय कार्यावधि)
उपराष्ट्रपति डॉ॰ ज़ाकिर हुसैन
पूर्व अधिकारी राजेंद्र प्रसाद
उत्तराधिकारी डॉ॰ ज़ाकिर हुसैन
प्रथम भारत के उपराष्ट्रपति
कार्यकाल
१३ मई, १९५२ – १२ मई, १९६२
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद
पूर्व अधिकारी कार्यालय आरम्भ
उत्तराधिकारी डॉ॰ ज़ाकिर हुसैन
जन्म ५ सितम्बर १८८८
तिरुट्टनी, तमिल नाडु, भारत
मृत्यु १७ अप्रैल १९७५ (आयु: ८८ वर्ष)
चेन्नई, तमिल नाडु, भारत
राजनैतिक पार्टी स्वतन्त्र
जीवन संगी शिवकामु
संतान ५ पुत्रियाँ एवं १ पुत्र
व्यवसाय राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाविद, विचारक
धर्म हिन्दू
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (तमिल: சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; ५ सितम्बर १८८८ – १७ अप्रैल १९७५) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (१९५२ - १९६२) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (५ सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संक्षिप्त परिचय

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि स्थान में हुआ था जो चेन्नई से ६४ किमी उत्तर-पूर्व में है। वे भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत एक प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, उत्कृष्ट वक्ता और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। वे स्वतन्त्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। इससे पूर्व वे उपराष्ट्रपति भी रहे। राजनीति में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण ४० वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये थे। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे। उन्होंने अपना जन्म दिन अपने व्यक्तिगत नाम से नहीं अपितु सम्पूर्ण शिक्षक बिरादरी को सम्मानित किये जाने के उद्देश्य से शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा व्यक्त की थी जिसके परिणामस्वरूप आज भी सारे देश में उनका जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के नाम से ही मनाया जाता है। डॉ॰ राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जाना सम्भव है। इसीलिए समस्त विश्व को एक इकाई समझकर ही शिक्षा का प्रबन्धन किया जाना चाहिये। एक बार ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि मानव की जाति एक होनी चाहिये। मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। यह तभी सम्भव है जब समस्त देशों की नीतियों का आधार विश्व-शान्ति की स्थापना का प्रयत्न करना हो। वे अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हँसाने व गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गम्भीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयन्ती प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनायी जाती है। इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का ह्रास होता जा रहा है और गुरु-शिष्य सम्बन्धों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, उनका पुण्य स्मरण फिर एक नयी चेतना पैदा कर सकता है। सन्‌ 1962 में जब वे राष्ट्रपति बने थे, तब कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गये और उन्होँने उनसे निवेदन किया कि वे उनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा- "मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चय ही मैं अपने को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।" तबसे आज तक 5 सितम्बर सारे देश में उनका जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ॰ राधाकृष्णन ने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। यद्यपि वे एक जाने-माने विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे, तथापि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में अनेक उच्च पदों पर काम करते हुए भी वे शिक्षा के क्षेत्र में सतत योगदान करते रहे। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाये तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। डॉ॰ राधाकृष्णन कहा करते थे कि मात्र जानकारियाँ देना शिक्षा नहीं है। यद्यपि जानकारी का अपना महत्व है और आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण भी है तथापि व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतान्त्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है। ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती हैं। शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है। करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। वे कहते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने अनेक वर्षोँ तक अध्यापन किया। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। उनका कहना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिये जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों। शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिये अपितु उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर भी अर्जित करना चाहिये। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है। उनकी मृत्यु १७ अप्रैल १९७५ को हुई थी।
जन्म एवं परिवार

डॉ॰ राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, जो तत्कालीन मद्रास से लगभग 64 कि॰ मी॰ की दूरी पर स्थित है, 5 सितम्बर 1888 को हुआ था। जिस परिवार में उन्होंने जन्म लिया वह एक ब्राह्मण परिवार था। उनका जन्म स्थान भी एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा है। राधाकृष्णन के पुरखे पहले कभी 'सर्वपल्ली' नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरूतनी ग्राम की ओर निष्क्रमण किया था। लेकिन उनके पुरखे चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के ग्राम का बोध भी सदैव रहना चाहिये। इसी कारण उनके परिजन अपने नाम के पूर्व 'सर्वपल्ली' धारण करने लगे थे। डॉ॰ राधाकृष्णन एक ग़रीब किन्तु विद्वान ब्राह्मण की सन्तान थे। उनके पिता का नाम 'सर्वपल्ली वीरास्वामी' और माता का नाम 'सीताम्मा' था। उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे। उन पर बहुत बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था। वीरास्वामी के पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी। राधाकृष्णन का स्थान इन सन्ततियों में दूसरा था। उनके पिता काफ़ी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख प्राप्त नहीं हुआ।
विद्यार्थी जीवन

राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। उन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे। यद्यपि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएँ भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिये भेजा। फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही मेधावी थे।

इन 12 वर्षों के अध्ययन काल में राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश भी याद कर लिये। इसके लिये उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान प्रदान किया गया। इस उम्र में उन्होंने वीर सावरकर और स्वामी विवेकानन्द का भी अध्ययन किया। उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी उच्च प्राप्तांकों के कारण मिली। इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दी। दर्शनशास्त्र में एम०ए० करने के पश्चात् 1916 में वे मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ॰ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गयी।

दाम्पत्य जीवन

उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में ही शादी सम्पन्न हो जाती थी और राधाकृष्णन भी उसके अपवाद नहीं रहे। 1903 में 16 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह दूर के रिश्ते की बहन 'सिवाकामू' के साथ सम्पन्न हो गया। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। अतः तीन वर्ष बाद ही उनकी पत्नी ने उनके साथ रहना आरम्भ किया। यद्यपि उनकी पत्नी सिवाकामू ने परम्परागत रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उनका तेलुगु भाषा पर अच्छा अधिकार था। वह अंग्रेज़ी भाषा भी लिख-पढ़ सकती थीं। 1908 में राधाकृष्णन दम्पति को सन्तान के रूप में पुत्री की प्राप्ति हुई। 1908 में ही उन्होंने कला स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की और दर्शन शास्त्र में विशिष्ट योग्यता प्राप्त की। शादी के 6 वर्ष बाद ही 1909 में उन्होंने कला में स्नातकोत्तर परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। इनका विषय दर्शन शास्त्र ही रहा। उच्च अध्ययन के दौरान वह अपनी निजी आमदनी के लिये बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करते रहे। 1908 में उन्होंने एम० ए० की उपाधि प्राप्त करने के लिये एक शोध लेख भी लिखा। इस समय उनकी आयु मात्र बीस वर्ष की थी। इससे शास्त्रों के प्रति उनकी ज्ञान-पिपासा बढ़ी। शीघ्र ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का भी गहन अध्ययन कर लिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा का भी रुचिपूर्वक अध्ययन किया।

हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन

शिक्षा का प्रभाव जहाँ प्रत्येक व्यक्ति पर निश्चित रूप से पड़ता है, वहीं शैक्षिक संस्थान की गुणवत्ता भी अपना प्रभाव छोड़ती है। क्रिश्चियन संस्थाओं द्वारा उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों के भीतर काफी गहराई तक स्थापित किया जाता था। यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गये। लेकिन उनमें एक अन्य परिवर्तन भी आया जो कि क्रिश्चियन संस्थाओं के कारण ही था। कुछ लोग हिन्दुत्ववादी विचारों को हेय दृष्टि से देखते थे और उनकी आलोचना करते थे। उनकी आलोचना को डॉ॰ राधाकृष्णन ने चुनौती की तरह लिया और हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन करना आरम्भ कर दिया। डॉ॰ राधाकृष्णन यह जानना चाहते थे कि वस्तुतः किस संस्कृति के विचारों में चेतनता है और किस संस्कृति के विचारों में जड़ता है? तब स्वाभाविक अंतर्प्रज्ञा द्वारा इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करना आरम्भ कर दिया कि भारत के दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले ग़रीब तथा अनपढ़ व्यक्ति भी प्राचीन सत्य को जानते थे। इस कारण राधाकृष्णन ने तुलनात्मक रूप से यह जान लिया कि भारतीय आध्यात्म काफ़ी समृद्ध है और क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा हिन्दुत्व की आलोचनाएँ निराधार हैं। इससे इन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय संस्कृति धर्म, ज्ञान और सत्य पर आधारित है जो प्राणी को जीवन का सच्चा सन्देश देती है।

भारतीय संस्कृति

डॉ॰ राधाकृष्णन ने यह भली भाँति जान लिया था कि जीवन बहुत ही छोटा है परन्तु इसमें व्याप्त खुशियाँ अनिश्चित हैं। इस कारण व्यक्ति को सुख-दुख में समभाव से रहना चाहिये। वस्तुतः मृत्यु एक अटल सच्चाई है, जो अमीर ग़रीब सभी को अपना ग्रास बनाती है तथा किसी प्रकार का वर्ग भेद नहीं करती। सच्चा ज्ञान वही है जो आपके अन्दर के अज्ञान को समाप्त कर सकता है। सादगीपूर्ण सन्तोषवृत्ति का जीवन अमीरों के अहंकारी जीवन से बेहतर है, जिनमें असन्तोष का निवास है। एक शान्त मस्तिष्क बेहतर है, तालियों की उन गड़गड़ाहटों से; जो संसदों एवं दरबारों में सुनायी देती हैं। वस्तुत: इसी कारण डॉ॰ राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के नैतिक मूल्यों को समझ पाने में सफल रहे, क्योंकि वे मिशनरियों द्वारा की गई आलोचनाओं के सत्य को स्वयं परखना चाहते थे। इसीलिए कहा गया है कि आलोचनाएँ परिशुद्धि का कार्य करती हैं। सभी माताएँ अपने बच्चों में उच्च संस्कार देखना चाहती हैं। इसी कारण वे बच्चों को ईश्वर पर विश्वास रखने, पाप से दूर रहने एवं मुसीबत में फँसे लोगों की मदद करने का पाठ पढ़ाती हैं। डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह भी जाना कि भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना सिखाया गया है और सभी धर्मों के लिये समता का भाव भी हिन्दू संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। इस प्रकार उन्होंने भारतीय संस्कृति की विशिष्ट पहचान को समझा और उसके काफ़ी नज़दीक हो गये।

जीवन दर्शन

डॉ॰ राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए। ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था- "मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो।" डॉ॰ राधाकृष्णन अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर देते थे। उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वह अपने छात्रों को भी देते थे। वह जिस भी विषय को पढ़ाते थे, पहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गम्भीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे।

अध्यवसायी जीवन

1909 में 21 वर्ष की उम्र में डॉ॰ राधाकृष्णन ने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर दर्शन शास्त्र पढ़ाना प्रारम्भ किया। यह उनका परम सौभाग्य था कि उनको अपनी प्रकृति के अनुकूल आजीविका प्राप्त हुई थी। यहाँ उन्होंने 7 वर्ष तक न केवल अध्यापन कार्य किया अपितु स्वयं भी भारतीय दर्शन और भारतीय धर्म का गहराई से अध्ययन किया। उन दिनों व्याख्याता के लिये यह आवश्यक था कि अध्यापन हेतु वह शिक्षण का प्रशिक्षण भी प्राप्त करे। इसी कारण 1910 में राधाकृष्णन ने शिक्षण का प्रशिक्षण मद्रास में लेना आरम्भ कर दिया। इस समय इनका वेतन मात्र 37 रुपये था। दर्शन शास्त्र विभाग के तत्कालीन प्रोफ़ेसर राधाकृष्णन के दर्शन शास्त्रीय ज्ञान से काफ़ी अभिभूत हुए। उन्होंने उन्हें दर्शन शास्त्र की कक्षाओं से अनुपस्थित रहने की अनुमति प्रदान कर दी। लेकिन इसके बदले में यह शर्त रखी कि वह उनके स्थान पर दर्शनशास्त्र की कक्षाओं में पढ़ा दें। तब राधाकृष्ण ने अपने कक्षा साथियों को तेरह ऐसे प्रभावशाली व्याख्यान दिये, जिनसे वे शिक्षार्थी भी चकित रह गये। इसका कारण यह था कि उनकी विषय पर गहरी पकड़ थी, दर्शन शास्त्र के सम्बन्ध में दृष्टिकोण स्पष्ट था और व्याख्यान देते समय उन्होंने उपयुक्त शब्दों का चयन भी किया था। 1912 में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की "मनोविज्ञान के आवश्यक तत्व" शीर्षक से एक लघु पुस्तिका भी प्रकाशित हुई जो कक्षा में दिये गये उनके व्याख्यानों का संग्रह था। इस पुस्तिका के द्वारा उनकी यह योग्यता प्रमाणित हुई कि "प्रत्येक पद की व्याख्या करने के लिये उनके पास शब्दों का अतुल भण्डार तो है ही, उनकी स्मरण शक्ति भी अत्यन्त विलक्षण है।"

मानद उपाधियाँ

जब डॉ॰ राधाकृष्णन यूरोप एवं अमेरिका प्रवास से पुनः भारत लौटे तो यहाँ के विभिन्न विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियाँ प्रदान कर उनकी विद्वत्ता का सम्मान किया। 1928 की शीत ऋतु में इनकी प्रथम मुलाक़ात पण्डित जवाहर लाल नेहरू से उस समय हुई, जब वह कांग्रेस पार्टी के वार्षिक अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिये कलकत्ता आए हुए थे। यद्यपि सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय शैक्षिक सेवा के सदस्य होने के कारण किसी भी राजनीतिक संभाषण में हिस्सेदारी नहीं कर सकते थे, तथापि उन्होंने इस वर्जना की कोई परवाह नहीं की और भाषण दिया। 1929 में इन्हें व्याख्यान देने हेतु 'मानचेस्टर विश्वविद्यालय' द्वारा आमन्त्रित किया गया। इन्होंने मानचेस्टर एवं लन्दन में कई व्याख्यान दिये। इनकी शिक्षा सम्बन्धी उपलब्धियों के दायरे में निम्नवत संस्थानिक सेवा कार्यों को देखा जाता है-

सन् १९३१ से ३६ तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में १९३६ से १९५२ तक प्राध्यापक रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया। सन् १९३९ से ४८ तक काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे। १९५३ से १९६२ तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे। १९४६ में युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
राजनीतिक जीवन

यह सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ही प्रतिभा थी कि स्वतन्त्रता के बाद इन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक इसके सदस्य रहे। इसी समय वे कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किये गये। अखिल भारतीय कांग्रेसजन यह चाहते थे कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी संविधान सभा के सदस्य बनाये जायें। जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राधाकृष्णन के संभाषण एवं वक्तृत्व प्रतिभा का उपयोग 14 - 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके पश्चात ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी।

राजनयिक कार्य

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ऐसा ही किया और ठीक रात्रि 12 बजे अपने सम्बोधन को विराम दिया। पण्डित नेहरू और राधाकृष्णन के अलावा किसी अन्य को इसकी जानकारी नहीं थी। आज़ादी के बाद उनसे आग्रह किया गया कि वह मातृभूमि की सेवा के लिये विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करें। इस प्रकार विजयलक्ष्मी पंडित का इन्हें नया उत्तराधिकारी चुना गया। पण्डित नेहरू के इस चयन पर कई व्यक्तियों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि एक दर्शनशास्त्री को राजनयिक सेवाओं के लिए क्यों चुना गया? उन्हें यह सन्देह था कि डॉक्टर राधाकृष्णन की योग्यताएँ सौंपी गई ज़िम्मेदारी के अनुकूल नहीं हैं। लेकिन बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह साबित कर दिया कि मॉस्को में नियुक्त भारतीय राजनयिकों में वे सबसे बेहतर थे। वे एक गैर परम्परावादी राजनयिक थे। जो मन्त्रणाएँ देर रात्रि होती थीं, वे उनमें रात्रि 10 बजे तक ही भाग लेते थे, क्योंकि उसके बाद उनके शयन का समय हो जाता था। जब राधाकृष्णन एक शिक्षक थे, तब भी वे नियमों के दायरों में नहीं बँधे थे। कक्षा में यह 20 मिनट देरी से आते थे और दस मिनट पूर्व ही चले जाते थे। इनका कहना था कि कक्षा में इन्हें जो व्याख्यान देना होता था, वह 20 मिनट के पर्याप्त समय में सम्पन्न हो जाता था। इसके उपरान्त भी यह विद्यार्थियों के प्रिय एवं आदरणीय शिक्षक बने रहे।

उपराष्ट्रपति

1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉक्टर राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गये। संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद सृजित किया गया था। नेहरू जी ने इस पद हेतु राधाकृष्णन का चयन करके पुनः लोगों को चौंका दिया। उन्हें आश्चर्य था कि इस पद के लिए कांग्रेस पार्टी के किसी राजनीतिज्ञ का चुनाव क्यों नहीं किया गया। उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन ने राज्यसभा में अध्यक्ष का पदभार भी सम्भाला। सन 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाये गये। बाद में पण्डित नेहरू का यह चयन भी सार्थक सिद्ध हुआ, क्योंकि उपराष्ट्रपति के रूप में एक गैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति ने सभी राजनीतिज्ञों को प्रभावित किया। संसद के सभी सदस्यों ने उन्हें उनके कार्य व्यवहार के लिये काफ़ी सराहा। इनकी सदाशयता, दृढ़ता और विनोदी स्वभाव को लोग आज भी याद करते हैं।

शिक्षक दिवस

हमारे देश के द्वितीय किंतु अद्वितीय राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रतिवर्ष 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

भारत रत्न

यद्यपि उन्हें १९३१ में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा "सर" की उपाधि[1] प्रदान की गयी थी लेकिन स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात उसका औचित्य डॉ॰ राधाकृष्णन के लिये समाप्त हो चुका था। जब वे उपराष्ट्रपति बन गये तो स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी ने १९५४ में उन्हें उनकी महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया।