शनिवार, अप्रैल 22, 2017

22 मई 2017 को हिंदुस्तान के शिल्प कार महान शासक और बिहार के सपूत शेर शाह सूरी के वफात के 472 वर्ष

22 मई 2017 को हिंदुस्तान के शिल्प कार महान शासक और बिहार के सपूत शेर शाह सूरी के वफात को पुरे 472 वर्ष हो जायेंगे।
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शाह सूरी (1472-22 मई 1545) (फारसी/पश्तो: فريد خان شير شاہ سوري, जन्म का नाम फ़रीद खाँ) भारत में जन्मे पठान थे, जिन्होनें हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य स्थापित किया था। शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होनें उन्हे पदोन्नति कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर सूरी वंश स्थापित किया था।[2] सन् 1539 में, शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूँ का सामना करना पड़ा जिसे शेरशाह ने जीत लिया। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और शेर खान की उपाधि लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया।[3]

एक शानदार रणनीतिकार, शेर शाह ने खुद को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया। 1540-1545 के अपने पांच साल के शासन के दौरान उन्होंने नयी नगरीय और सैन्य प्रशासन की स्थापना की, पहला रुपया जारी किया है, भारत की डाक व्यवस्था को पुनः संगठित किया और अफ़गानिस्तान में काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक ग्रांड ट्रंक रोड को बढ़ाया।[4] साम्राज्य के उसके पुनर्गठन ने बाद में मुगल सम्राटों के लिए एक मजबूत नीव रखी विशेषकर हुमायूँ के बेटे अकबर के लिये।

सोमवार, अप्रैल 17, 2017

विद्यालय भवण निर्माण में अनियमितता

परिहार सीतामढ़ी परिहार गाँधी उच्च विद्यालय परिहार में कार्यालय कक्ष और भवन निर्माण कार्य किया जा रहा है जिस में प्राकलन का अनुपालन नही कर अनियमितता बरती जा रही है।जब भवन निर्माण में कार्य कर रहे मिस्त्री/मज़दूर से पूछा गया कि बालू और सीमेंट कितना मिलाते हो तो स्पष्ट कहा कि 1/7 के अनुपात में जुड़ाई का कार्य हो रहा है मगर देखने से ऐसा प्रतित नही होता है जुड़ाई का अनुपात कुछ और ही लगता है इतना ही नही जुड़ाई भी सही ढंग से नही किया जा रहा है।निर्माण स्थल पर साइन बोर्ड और प्राक्कलन का भी प्रदर्शन नही किया गया है।ये हाल तब है जब बिहार के माननीय मुख्यमंत्री ताजमहल की तरह भवण निर्माण की कामना रखते हैं 

शुक्रवार, अप्रैल 14, 2017

परिहार गाँधी उच्च विद्यालय में गुणवत्ता विहीन भवन निर्माण कार्य जारी

परिहार सीतामढ़ी परिहार गाँधी उच्च विद्यालय परिहार में कार्यालय कक्ष और भवन निर्माण कार्य किया जा रहा है जिस में प्राकलन का अनुपालन नही कर अनियमितता बरती जा रही है।जब भवन निर्माण में कार्य कर रहे मिस्त्री/मज़दूर से पूछा गया कि बालू और सीमेंट कितना मिलाते हो तो स्पष्ट कहा कि 1/7 के अनुपात में जुड़ाई का कार्य हो रहा है मगर देखने से ऐसा प्रतित नही होता है जुड़ाई का अनुपात कुछ और ही लगता है इतना ही नही जुड़ाई भी सही ढंग से नही किया जा रहा है।निर्माण स्थल पर साइन बोर्ड और प्राक्कलन का भी प्रदर्शन नही किया गया है।ये हाल तब है जब बिहार के माननीय मुख्यमंत्री ताजमहल की तरह भवण निर्माण की कामना रखते हैं ।

सोमवार, अप्रैल 10, 2017

हिन्दी सिनेमा के 65 साल

मेहजबीं

हिन्दी सिनेमा में पिछले 65 सालों में एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में बनी, क्लासिकल, रोमांटिक, कलात्मक, ऐक्शन, कमर्शल, डॉक्यूमेंट्री, टेली फिल्म, सभी मशहूर- ओ - माअरूफ़ नहीं हो सकी, लेकिन कुछ फिल्मों ने अमिट छाप छोड़ी जो आज भी प्रासंगिक हैं। हिन्दी - उर्दू भाषा में फिल्मों की स्क्रिप्ट तैयार की गई, गीत- ग़ज़लें तैयार की गई, साहित्यकारों, शायरों द्वारा। कुछ फिल्में साहित्यिक रचनाओं पर भी बनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चरित्रों पर भी बनी, यहाँ तक कि मज़रूह सुल्तान पुरी, शाहिर लुधियानवी, शैलेन्द्र, गुलज़ार, निदा फ़ाज़लि, फैज़ अहमद फैज़, अहमद फ़राज़, जावेद अख़्तर जैसे साहित्यकार फिल्मी गीतों के ज़रिए ही ज़्यादा मशहूर हुए, लता मंगेशकर, आशा भोसले, सुरैया, हेमलता, कविता कृष्णमूर्ति, अनुराधा पोरवाल, नूरजहाँ, रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार, कुमार शानू, उदित नारायण, पंकज उदास, जगजीत सिंह, भूपेन्द्र हज़ारिका, मनहर उदास द्वारा गुनगुनाए गीत और ग़ज़लें जो भारतीय सिनेमा की रीढ़ की हड्डी हैं, हिन्दुस्तान की ज़िंदगी हैं, जिनमें इस सरज़मीं का समाज राजनीति अर्थव्यवस्था मुहब्बत खूलूस है, आजकल पिछले 20 सालो में हज़ारों गीत हिन्दी सिनेमा में आए और गए, जिनसे दिल दिमाग को कोई राहत सुकून नहीं मिला, लेकिन पुराने समय के गीत और ग़ज़लें आज भी लाखों लोगों के दिल में समाए हैं, जो आम जन के अकेले पन के साथी हैं, मनोरंजन का ज़रिया हैं, हिन्दी- उर्दू की पहचान हैं, इन गीतों ग़ज़लों का संगीत और मधुर आवाज़ और कशिश  अपनी और खींचती है, दु:ख में सहारा देती है, मुहब्बत का अहसास कराती है, कमज़ोर पड़ने पर मज़बूत बनाती है।

"चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला "

"कोमल है कमजोर नहीं तू शक्ति का नाम ही नारी है जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी है"

"ये होशल कैसे रूके ये आरज़ू कैसे झुके मंज़िल दूर तो क्या साहिल धुंधला तो क्या ये आरज़ू कैसे झुके "

"तेरी है ज़मीं तेरा आसमां तू बड़ा मेहरबां  सबका है तू ख़ुदा मेरे तू बख़्शिश कर"

बाज़ार, लिबास, इजाज़त, उमराव जान, रज़िय सुल्तान, मुग्लेआज़म, पाक़िज़ा, काग़ज़ के फूल, प्यासा, साहब बीवी और ग़ुलाम, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, आख़िर क्यों, दस्तक, आँधी , अराधना, अमर प्रेम, सफर, किनारा, ख़ामोशी, गाईड, बम्बई का बाबू, तीसरी कसम, मेरा नाम जोकर, आनारकली, मदर इंडिया, गुमराह, द ट्रेन, मर्यादा, कश्मीर की कली, जंगली, साथ-साथ, कारवां, आपकी कसम, आप ऐसे तो न थे निकाह स्वीकार किया मैंने, मेरा साया, वक्त अनमोल घड़ी, मधुमति, जैसी हज़ारों फिल्में हैं जिनके हज़ारों गीत ग़ज़लें आज भी लोगों की ज़ुबां पर हैं।

कलात्मक फिल्में कुछ ऐसी हैं जो मशहूर भी हुई हैं और कुछ ऐसी भी हैं जो उपेक्षित रही, बहुत अच्छी होते हुए भी ज़्यादा नहीं चली, बल्कि लोग उनसे नावाकिफ़ हैं इसके लिए अख़बार, पत्रिका, मिडिया भी जिम्मेदार है और कुछ हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं। ऐसे ही हिन्दी सिनेमा की इन कलात्मक फिल्मों, क्लीसिकल फिल्मों के कुछ गीत ग़ज़लें भी उपेक्षित रह गए जो बेहतरीन स्क्रिप्ट और संगीत, आवाज़ के होते हुए भी ज़्यादा नहीं चले जैसे

"महवे ख़्याले यार हम को फिज़ा से क्या अब रंजिशे ख़ुशी से बहारों ख़िजाँ से क्या "

"ख़ामोश सा अफसाना पानी से लिखा होता न तुमने कहा होता न हमने सुना होता "

हिन्दुस्तान की राज्य और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को अपने सिलेबस में हिन्दी सिनेमा का इतिहास और उसकी खासियत के बारे में गीत संगीत गीतकारों संगीतकारों के बारे में पढ़ाना चाहिए, बल्कि दसवीं- बारहवीं कक्षा के सिलेबस में भी, और समय- समय पर कैम्पस, कॉलेज, स्कूलों में कलात्मक फिल्में दिखाई जानी चाहिए, ताकी आने वाली पीढ़ी में अच्छी फिल्मों में संगीत में रुचि पैदा हो । लेकिन अफसोस अब ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है।

मेहजबीं

दिल्ली सल्तनत गुलाम वंश से नरेन्द्र मोदी तक का इतिहास

*👉गुलाम वंश*
1=1193 मुहम्मद  गौरी
2=1206 कुतुबुद्दीन ऐबक
3=1210 आराम शाह
4=1211 इल्तुतमिश
5=1236 रुकनुद्दीन फिरोज शाह
6=1236 रज़िया सुल्तान
7=1240 मुईज़ुद्दीन बहराम शाह
8=1242 अल्लाउदीन मसूद शाह
9=1246 नासिरुद्दीन महमूद 
10=1266 गियासुदीन बल्बन
11=1286 कै खुशरो
12=1287 मुइज़ुदिन कैकुबाद
13=1290 शमुद्दीन कैमुर्स
1290 गुलाम वंश समाप्त्
(शासन काल-97 वर्ष लगभग )

*👉खिलजी वंश*
1=1290 जलालुदद्दीन फ़िरोज़ खिलजी
2=1296
अल्लाउदीन खिलजी
4=1316 सहाबुद्दीन उमर शाह
5=1316 कुतुबुद्दीन मुबारक शाह
6=1320 नासिरुदीन खुसरो  शाह
7=1320 खिलजी वंश स्माप्त
(शासन काल-30 वर्ष लगभग )

*👉तुगलक  वंश*
1=1320 गयासुद्दीन तुगलक  प्रथम
2=1325 मुहम्मद बिन तुगलक दूसरा  
3=1351 फ़िरोज़ शाह तुगलक
4=1388 गयासुद्दीन तुगलक  दूसरा
5=1389 अबु बकर शाह
6=1389 मुहम्मद  तुगलक  तीसरा
7=1394 सिकंदर शाह पहला
8=1394 नासिरुदीन शाह दुसरा
9=1395 नसरत शाह
10=1399 नासिरुदीन महमद शाह दूसरा दुबारा सता पर
11=1413 दोलतशाह
1414 तुगलक  वंश समाप्त
(शासन काल-94वर्ष लगभग )

*👉सैय्यद  वंश*
1=1414 खिज्र खान
2=1421 मुइज़ुदिन मुबारक शाह दूसरा
3=1434 मुहमद शाह चौथा
4=1445 अल्लाउदीन आलम शाह
1451 सईद वंश समाप्त
(शासन काल-37वर्ष लगभग )

*👉लोदी वंश*
1=1451 बहलोल लोदी
2=1489 सिकंदर लोदी दूसरा
3=1517 इब्राहिम लोदी
1526 लोदी वंश समाप्त
(शासन काल-75 वर्ष लगभग )

*👉मुगल वंश*
1=1526 ज़ाहिरुदीन बाबर
2=1530 हुमायूं
1539 मुगल वंश मध्यांतर

*👉सूरी वंश*
1=1539 शेर शाह सूरी
2=1545 इस्लाम शाह सूरी
3=1552 महमूद  शाह सूरी
4=1553 इब्राहिम सूरी
5=1554 फिरहुज़् शाह सूरी
6=1554 मुबारक खान सूरी
7=1555 सिकंदर सूरी
सूरी वंश समाप्त,(शासन काल-16 वर्ष लगभग )

*मोगल वंश पुनःप्रारंभ*
1=1555 हुमायू दुबारा गाद्दी पर
2=1556 जलालुदीन अकबर
3=1605 जहांगीर सलीम
4=1628 शाहजहाँ
5=1659 औरंगज़ेब
6=1707 शाह आलम पहला
7=1712 जहादर शाह
8=1713 फारूखशियर
9=1719 रईफुदु राजत
10=1719 रईफुद दौला
11=1719 नेकुशीयार
12=1719 महमूद शाह
13=1748 अहमद शाह
14=1754 आलमगीर
15=1759 शाह आलम
16=1806 अकबर शाह
17=1837 बहादुर शाह जफर
1857 मोगल वंश समाप्त
(शासन काल-315 वर्ष लगभग )

*👉ब्रिटिश राज (वाइसरॉय)*
1=1858 लोर्ड केनिंग
2=1862 लोर्ड जेम्स ब्रूस एल्गिन
3=1864 लोर्ड जहॉन लोरेन्श
4=1869 लोर्ड रिचार्ड मेयो
5=1872 लोर्ड नोर्थबुक
6=1876 लोर्ड एडवर्ड लुटेन
7=1880 लोर्ड ज्योर्ज रिपन
8=1884 लोर्ड डफरिन
9=1888 लोर्ड हन्नी लैंसडोन
10=1894 लोर्ड विक्टर ब्रूस एल्गिन
11=1899 लोर्ड ज्योर्ज कर्झन
12=1905 लोर्ड गिल्बर्ट मिन्टो
13=1910 लोर्ड चार्ल्स हार्डिंज
14=1916 लोर्ड फ्रेडरिक सेल्मसफोर्ड
15=1921 लोर्ड रुक्स आईजेक रिडींग
16=1926 लोर्ड एडवर्ड इरविन
17=1931 लोर्ड फ्रिमेन वेलिंग्दन
18=1936 लोर्ड एलेक्जंद लिन्लिथगो
19=1943 लोर्ड आर्किबाल्ड वेवेल
20=1947 लोर्ड माउन्टबेटन
ब्रिटिस राज समाप्त

*🇮🇳आजाद भारत,प्राइम मिनिस्टर🇮🇳*
1=1947 जवाहरलाल नेहरू
2=1964 गुलजारीलाल नंदा
3=1964 लालबहादुर शास्त्री
4=1966 गुलजारीलाल नंदा
5=1966 इन्दिरा गांधी
6=1977 मोरारजी देसाई
7=1979 चरणसिंह
8=1980 इन्दिरा गांधी
9=1984 राजीव गांधी
10=1989 विश्वनाथ प्रतापसिंह
11=1990 चंद्रशेखर
12=1991 पी.वी.नरसिंह राव
13=अटल बिहारी वाजपेयी
14=1996 ऐच.डी.देवगौड़ा
15=1997 आई.के.गुजराल
16=1998 अटल बिहारी वाजपेयी
17=2004 डॉ.मनमोहनसिंह
*18=2014 से  नरेन्द्र मोदी

रविवार, अप्रैल 09, 2017

कोईरिया पिपरा प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्र बदहाली का शिकार

कोईरिया पिपरा प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्र परिहार सीतामढ़ी वर्षो से बदहाली का शिकार है एक नजर से देखने से ये उप स्वास्थ्य केंद्र है ऐसा लगता ही नही, जानवरों का खटाल लगता है ।उक्त उप स्वास्थ्य केन्द्र की बुनियाद आज से लगभग 35 साल पहले डाली गई थी स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले उप स्वास्थ्य केन्द्र का संचालन सुचारू रूप से होता था लेकिन अब कोई देखने और सुनने वाला नही है।इस उप स्वास्थ्य केन्द्र पर एक एन एम पदस्थापित हैं जो कभी कभार नज़र आ जाती हैं।ग्रामीण राकेस कुमार सिंह मुन्ना ने बताया कि एन एम तभी नज़र आती हैं जब जब पल्स पोलियो अभियान या कोई विशेष अभियान हो।कमाल इस बात का है कि यहाँ के लोगों को ये भी पता नहीं है कि इस उप स्वास्थ्य केन्द में कौन चिकित्सक पदस्थापित या प्रतिनियुक्त हैं।मालूम हो कि उप स्वास्थ्य केन्द्र के पास अपनी पाँच कट्ठा भूमि है अगर सरकार चाहे तो इस स्वास्थ्य केन्द्र को आदरभूत संरचना से सुसज्जित कर आम जनता को बेहतर चिकित्सीय सुविधा प्रदान कर सकती है।

शुक्रवार, अप्रैल 07, 2017

शादी से पहले और शादी के बाद

*(شادی سے پہلے)*

تُم جَو ہَنستی ہَو تَو پُھولُوں کی اَدا لَگتی ہَو،
اَور چَلتی ہَو تَو اِک بادِ صَبا لَگتی ہَو،

دَونُوں ہاتُھوں میں چُھپا لیتی ہَو اَپنا چَہرہ،
مَشرِقی حُور ہَو دُلہَن کی حَیا لَگتی ہَو،

کُچھ نہ کَہنا مَیرے کَندھے پہ جُھکا کَر سَر کَو،
کِتنی مَعصُوم ہَو،تَصوِیرِ وَفا لَگتی ہَو،

بات کَرتی ہَو تَو ساگَر سے کَھنَک جاتے ہیں،
لَہَر کا گِیت ہَو،کَوئل کی صَدا لَگتی ہَو،

کِس طَرف جاؤ گی زُلفُوں کے یہ بادَل لے کَر،
آج مَچلی ہُوئی ساوَن کی گَھٹا لَگتی ہَو،

تُم جِسے دَیکھ لَو،اُسے پِینے کی ضَرُورَت کَیا ہے...؟
زِندگی بَھر جَو رَہے،اَیسا نَشہ لَگتی ہَو،

مَیں نے مَحسُوس کِیا تُم سے یہ   باتَیں کَر کے،
تَم زَمانے میں زَمانے سے جُدا لَگتی ہَو...!

♻بہت خوب 👆👌 👍🌹♻




*(شادی کے بعد)*

تم جو ہنستی ہو تو آسیب زدہ لگتی ہو
اور روتی ہو تو اس سے بھی بُرا لگتی ہو

دونوں ہاتھوں میں چھپا لیتی ہو بٹوا میرا
تم نِری چور ہو، چوروں کی سبھا لگتی ہو

کچھ نہ کہنا مِرے کاندھے پہ جھکا کر سر کو
بات کرتے ہوئے ایک بھونپو پھٹا لگتی ہو

کس طرف جاؤ گی یہ زہر بھرا پھن لے کر
آج مچلی ہوئی ناگن کی ادا لگتی ہو

ساتھ گر تم ہو تو دشمن کی ضرورت کیا ہے
بلکہ ایذا میں تو دشمن سے سِوا لگتی ہو

میں نے محسوس کِیا ساتھ تمہارے رہ کے
پڑ گئی سر مِرے تم ایسی بلا لگتی ہو😜😜😜😜