मेहजबीं
रब ने इंसान को 
खूबसूरत दिल - दिमाग 
हाथ पैर जिस्म अता किया। 
दिल दिया तमाम मख़लूक़ से
मुहब्बत करने के लिए 
इंसान ने मुहब्बत की
मिसालें पैदा की 
मुहब्बत के सच्चे 
अफसाने लिखे। 
और दिमाग सोचने के लिए
सुलझा हुआ रहने के लिए 
चीज़ों को इज़ाद करने के लिए। 
हाथ पैर दिये अपने कामों को 
अंजाम देने के लिए
मेहनत करके 
हलाल रिज़्क़ खाने के लिए। 
और बहुत हद तक 
इस इंसान ने इन बख़्शी गई 
नियामतों का
माअकूल इस्तेमाल किया। 
धीरे-धीरे तरक्की याफ़ता हुआ 
पक्के घर बनाए 
इमारतें बनाई 
मशीनें बनाई 
साईकिल, बस, कार 
रेल, हवाई जहाज बनाए 
बिजली इज़ाद की 
पेट्रोल, डीज़ल, कोयला 
तेल, ढूंढ निकाले। 
जैसे-जैसे 
साज़ो सामान, ऐशो-आराम 
फ़राहम करता गया 
वैसे-वैसे 
बाज़ार की दलदल में फंसता गया। 
मुहब्बत, ईमानदारी 
वफ़ा, बाकिरदारी पिछे छूटती गई। 
लालच, दग़ाबाज़ी, ख़ुदग़र्ज़ी, 
ज़ालमाना सलूक़, बदकिरदारी, 
बदअख़लाक़ी उसकी खासियत बन गई। 
मुहब्बत, रिश्तों की
बुनयादें भी इन्हीं चीजों पर 
रखी जाने लगी। 
लूट-खसोट, फ़रेब 
धोखाधड़ी, बेईमानी
खून - खच्चर आम होने लगा। 
साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, दासप्रथा 
रंगभेद, नस्लवाद ग़ैरबराबरी (असमानता)
जैसे लफ्ज़ो ने 
यहीं से जन्म लेना शुरू किया 
और फिर इनकी मुखालिफ़त में 
मार्क्सवाद, गाँधीवाद, समाजवाद
जैसे लफ्ज़ो ने भी 
अपना वजूद कायम किया।
तक़रार का ज़िरह का
सिलसिला आगे बढ़ता ही गया 
इस इंसान का कलेजा 
पत्थर का होता गया 
धड़कता दिल संग(पत्थर )  हो गया।
बारूद, तोप, मिसाइल, बन्दूक, 
बम बना बैठा 
अपने मुफाद के लिए 
इन्हें चला बैठा 
क़तले आम मचा बैठा।
पहली दूसरी जंग की 
ख़ौफ़नाक दास्तान तहरीर की 
मक्कारी जालसाज़ी की तर्ज़ पर 
अमेरिका सबका सरदार बन बैठा 
वो इसी नाअहली को 
अपनी आन बान शान समझ बैठा । 
नताईज़ 
इन  ज़ुल्म - ओ - सितम का 
यह निकला 
ईंट का ज्वाब पत्थर से देकर ही 
मज़लूम को चैन मिला। 
इन्हीं दबाए कूचलो में से 
जो अपने आप को
मुसलमान कहता है 
ख़ुदा के सबसे नज़दीक समझता है 
वो भी अपने जिस्म पर 
बम बांध मैदान में कूद पड़ा
इंसानियत तबाह करने को 
बदला ऊतारने को 
बेअक्ल, नासमझ, 
ज़ाहिल, ज़ालिमों से बदला लेने का 
यही रास्ता मिला था? 
आख़िर यह बेमायनी जंग क्यों 
और किसके लिए? 
बदला ऊतरा या नहीं 
इसका कलेजा 
ठंडा हुआ कि नहीं 
हा मगर यह ज़ालिमों को 
सबक सिखाने के फेर में 
खुद ज़लिम बन गया 
इंसानियत के दायरे से 
बाहर हो गया 
अपनी पहचान मजहब को 
धुंधला बदनाम कर दिया। 
सियासत भी 
इस खून खराबे से 
अब पाक नहीं 
मारती है फेंकती है 
मासूमों पर बम
हर रोज़ कहीं न कहीं 
इन सियासी लोगों के हैं चेहरे कई। 
मजहब को तलवार की तरह 
इस्तेमाल करते हैं 
इन्हीं की वजह 
से लोग आपस में भिड़ते हैं। 
यहाँ- वहाँ धड़ से सर 
ज़मीन पर गिरते हैं 
चारों तरफ
मय्यतों का ढेर दिखाई देता है। 
क्या सोचते होंगे 
शमशान और कब्रिस्तान? 
उन्हें भी तो 
कभी ताअतील (छुट्टी ) चाहिए।
ऐसे भी मुर्दे हैं 
जिन्हें कफ़न - दफ़न 
शमशान कब्रिस्तान मय्यसर नहीं 
उनके सर धड़ का 
कोई अता - पता ही नहीं 
जनाज़े की नमाज़ कैसे पढ़ी जाए 
अर्थी कैसे सजाई जाए? 
जब जनाज़े का ही कुछ पता नहीं। 
लामहदूद मख़लूक़
बिना किसी कुसूर के 
मौत के घाट उतार दी जाती है। 
चिथड़े - चिथड़े उड़ा दिये जाते हैं 
चुन दे इन चिथड़ों को कोई 
बुन दे उन जिस्मों को फिर से कोई 
कोई है 
कोई है
कोई है? 
 
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