लेखक:- श्री नागेंद्र पासवान
वयस्क मताधिकार लोकतंत्र का मौलिक तत्व होता है। बाबासाहेब अंबेडकर ने इस मौलिक तत्व को संविधान के अनुच्छेद 326 में पिरोया है जिसके अंतर्गत लोकसभा और विधानसभा सदस्य का निर्वाचन वयस्क मताधिकार (Adult Suffrage) द्वारा सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
वयस्क मताधिकार से अभिप्रेत है कि 18 साल या उससे अधिक के सभी युवाओं एवं वृद्धों को जो भारत का नागरिक है उसे राजनीतिक चुनावों में मत (Vote) देने का संवैधानिक अधिकार है।
संविधान के प्रस्तावना में यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया गया है कि प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने और एक सा ही सामाजिक और राजनीतिक प्रतिष्ठा पाने का अधिकार प्राप्त है।
RSS और हिंदू महासभा ने इस संविधान को पुरजोर विरोध करते हुए 13 दिसंबर 1947 को दिल्ली के जंतर मंतर पर डॉ. भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू का पुतला दहन करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। उनका तर्क था कि भारत का संविधान मनुस्मृति है ना कि संविधान सभा द्वारा अधिनियमित संविधान।
गति 11 वर्षों में संविधान के प्रावधानों को परोक्ष रूप से निष्प्रभावि करते हुए अब वस्तुतः मनुस्मृति को स्थापित किया जा रहा है। ताजा उदाहरण यह है कि गत 25 जून से चुनाव आयोग ने बिहार के मतदाता सूची को विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision ) के आधार पर मतदाता सूची बनाने की पहल शुरू कर दी है। इसके अनुसार जिसका जन्म 1 जुलाई, 1987 के बाद और 2 दिसम्बर 2004 के बीच हुआ है, उसे गणना प्रपत्र में दो प्रमाण पत्र देना आवश्यक है। जिसमें उनका स्यं का जन्म प्रमाण पत्र तथा माता/पिता का जन्म प्रमाणपत्र और जन्म स्थान प्रमाण पत्र देना अनिवार्य है।
स्मरणीय है कि आदिवासी, दलित, पिछड़ा जाति और अल्पसंख्यक जो भूमि हीन मजदूर और सीमांत किसान है उनके पास पर्याप्त शिक्षा के अभाव में उनके माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र और जन्म स्थान का प्रमाण पत्र मिलना लगभग असंभव है। इनमें से ज्यादातर लोग गांवों के कामगार और कृषक मजदूर होते हैं।
प्रपत्र की दूसरी शर्त यह है कि गणना प्रपत्र लेकर आनेवाले प्रखण्ड स्तर पदाधिकारी (Block Level Officer) के सामने उन्हें अपने रंगीन पासपोर्ट के फोटो पर स्वंय उपस्थित होकर दस्ताक्षर करना अनिवार्य है। भौतिक सत्यापन के अभाव में उनका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएगा।
श्रम संगठनों के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 3 करोड़ मजदूर है जो राज और देश के बाहर मजदूरी कर रहे हैं। गणना प्रपत्र की अंतिम तिथि 25 जुलाई 2025 तक उनकी इस राज्य में उपस्थिति की संभावना कम ही प्रतीत होती है। फलाफल यह होगा कि भौतिक सत्यापन के अभाव में इन पलायित मजदूर (Migratory labour) का नाम विशेष सघन सूची में शामिल होना वस्तुतः असंभव है।
इसी तरह बिहार में सरकारी एवं निजी कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारी भी अपने आवास स्थान से दूर पदस्थापित हैं। अगले 20 दिनों में अपने निवास स्थान पर जाकर उनके द्वारा गणना प्रपत्र भरना कुछ मुश्किल प्रतीत होता है।
निष्कर्ष यह है कि मनुवादी सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग द्वारा 25 जुलाई 2025 तक विशेष सघन पुनरीक्षण के आधार पर तैयार होने वाली मतदाता सूची में इस राज्य के लगभग 70% बहुजन समाज के मतदाता इस सूची से बाहर रह जाएंगे।
फलत: इस वर्ष के अंत में होने वाला आम चुनाव में मतदान से वे वंचित रह जाएंगे। वंचित होने वाले में सर्वाधिक संख्या आदिवासी, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक मजदूरों की होगी जिनके पास उनके माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र और उनका जन्म स्थान का प्रमाण पत्र मिलना असंभव है। दूसरे शब्दों में पुनरीक्षित मतदाता सूची में उनके नाम के अभाव के कारण वे विधायक के चुनाव लड़ने से भी वंचित रह जाएंगे। यह जोर देकर स्पष्ट करना है की विशेष संघन पुनरीक्षण के आधार पर बनाई जाने वाली मतदाता सूची के लिए प्रमाणिक दस्तावेज के रूप में Aadhar card, Voter Id Card और राशन कार्ड अनुमान्य नहीं होगा जो पूर्व में अनुमान्य हुआ करता था।
फलत: लगभग 20 से 25% मतदाता ही आगामी चुनाव में मतदान कर सकेंगे और चुनाव लड़ सकेंगे। स्पष्ट है कि ये सभी मनुवादी दल का Core Vote Bank है। यदि समय रहते बिहार का बहुजन समाज आंदोलित नहीं होगा तब बाबा साहब के संविधान द्वारा दिया अपने सभी अधिकारों से फिर वंचित हो जाएगा और मनुस्मृति पर आधारित सामंत प्रणाली पूर्णजीवित हो उठेगी।
आइये, केंद्र सरकार के निरंकुश तानाशाह आदेश का सार्वजनिक रूप से बहिष्कार करें तथा इस असंवैधानिक, अव्यव्हारिक काले कानून के विरोध में जन आंदोलन करे।
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