मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

भूरी बिल्ली- महज़बीं

लगभग 6, 7 साल पहले हमारे मुहल्ले में एक बिल्ली थी.. भूरे रंग की.. क्या निडर बिल्ली थी.. और बहादुर भी थी.. शुरू शुरू में जब हमारे मुहल्ले में आई थी.. तो, उसके आतंक से सारा मुहल्ला परेशान था.. गुर्राती थी सब पर.. कभी - कभी छत पर खेलते बच्चों को पंज्जा भी मार देती थी.. एक बार शाम के वक्त मैं छत पर जा रही थी, जैसे ही मैं लास्ट सीढ़ी पर चढ़ी, उसने दिवार की ओट से निकलकर मुझ पर हमला किया.. मैं तेजी से अब्बा - अब्बा की चीखें मारती हुई नीचे उतरी.. अब्बा जी ने जल्दी से मेरी चीखें सुनकर मुझे अपने पिछे करके, उस बिल्ली को भगाया.. वो अक्सर छत पर बैठी रहती थी.. कभी किसी की छत पर, तो कभी किसी की छत पर, और मौका मिलते ही हमला करती थी.. आए दिन मुहल्ले में कोई न कोई बच्चा, उसके पंज्जो का शिकार हो जाया करता था... और दिन में गली में मटक - मटक कर, ठुमक - ठुमक कर चलती थी.. ऐसे जैसे मॉडल लड़कियां रैंप पर चलतीं हैं.. अगर कोई कुत्ता उसे देखकर उसके पिछे भौंकता हुआ भागता था.. तो भी नहीं डरती थी.. और कुत्ते पर गुर्राती थी.. जबर्दस्त तरीके से, भईया कुत्ता ही डर कर चला जाता था.. सभी गली मुहल्ले के लोग दंग रह जाते थे, यह देखकर.. सब आस - पास के सभी मुहल्लों में, फेमस हो गई थी वो भूरे रंग की निडर बिल्ली... कोई उससे पंगे नहीं लेता था.. कुत्तों ने भी हमारे मुहल्ले में आना जाना कम कर दिया था.. और हमारे घर में रोज दरवाजे पर से, बाईक पर कूदकर ऊपर छत पर जाती थी.. उसके पैरों के पंज्जो से बाईक की गद्दी फट जाती थी.. निशान पड़ जाते थे, मेरे भाई ने परेशान होकर बाईक पर मोटी चादर ढकना शुरू कर दिया था.. ऐसे ही मुहल्ले में उस बिल्ली का आतंक दो तीन साल चला.. हमारे कैलाश अंकल, वो फौजी थे.. अपने बेटे को भी फौजी बनाना चाहते थे.. लेकिन वो बिजनेस में रूची रखता था.. तो उसने बिजनेस ही को अपनी रोजी रोटी का ज़रिया बनाया.. फिर उन्होंने ठानी की अपनी दोनों बेटियों की शादी फौजी लड़कों से ही करूंगा .. भईया शादी ब्याह के मामले में बिरादरीवाद, क्षेत्रवाद तो सुना था.. हमारे कैलाश अंकल एक दूसरे ही तरीके का वाद चला रहे थे.. "फौजीवाद" उनकी बड़ी बेटी ने अपने सहकर्मी से शादी कर ली.. अंकल बड़े परेशान कि, ये फौजीवाद की विरासत आगे कैसे चलेगी.. दो बच्चों ने तो बगावत कर ली.. अब उनकी एक छोटी बेटी बची थी. तो अंकल ने उसे मना - मुनु कर उसकी शादी एक फौजी ख़ानदान में तय करी.. होने वाला दामाद भी फौजी ही था.. जिस दिन उनकी बेटी की बारात घर पर आई.. तो बारात में आदमियों के साथ फौजी कुत्ते भी तशरीफ लाए.. क्योंकी बारात फौजी ख़ानदान के यहां से आई थी.. इसलिए प्रदर्शन के लिए फौजी कुत्ते भी साथ में आए थे, ताक़ी सबको ये बात अच्छी तरह से पता चल जाए की बारात फौजियों के यहाँ से आई है.. बारत में जो दो तीन कत्ते आए थे भईया कुत्ते नहीं शेर थे.. भारी - भरकम, ऊंची हाइट वाले, खूंखार कुत्ते, मुहल्ले वालों ने सोचा आज अगर भूरी बिल्ली इन कुत्तों के सामने सड़क पर, या तंबू में कैटवॉक करने आ गई, तो उसकी खैर नहीं.. इनसे नहीं बच पाएगी.. नवीन भईया और एक दो लड़के बिल्ली से बहुत प्यार करते थे.. उन्हें बिल्ली पर रहम आया, और उन्होंने बिल्ली को बचाने के लिए ऐसा किया की, नवीन भईया के ऊपर वाले कमरे में बिल्ली के लिए छिछड़े ला कर रख दिये.. जैसे ही भूरी बिल्ली छिछड़े खाने कमरे में घुसी.. उन्होंने कमरा बंद कर दिया.. इस तरह बिल्ली काफी देर कमरे में बंद रही, तोड़ - फोड़ करती रही.. रात के 12 बजे क़रीब न जाने किसने जा कर ऊपर का कमरा खोल दिया.. और बिल्ली वहां से भाग गई.. और गली में निचे उतरकर, कैटवॉक💃💃�👯👯 करने लगी... वो घूम ही रही थी कि बरात में आए कुत्तों की नजर उसपर पड़ी.. बस क्या था बिल्ली उनसे भी नहीं डरी.. पिछे मुड़कर उन फौजी कुत्तों पर गुर्राई.. वो गली के कुत्ते थोड़ा ही थे, जो डर जाते.. एक एक करके झपट्टा  मारा उन तीनों कुत्तों ने..   बिल्ली पर.. बस दो तीन झपट्टों में ही बिल्ली की टैं बोलगई... न हड्डी टूटी न खून निकाला, और तीन ही झपट्टों में सीधे अल्लाह पुर पंहच गई.. अगले दिन हर कोई बिल्ली की अचानक हुई मौत पर हैरान था.. सब यही कह रहे थे कि कितनी निडर बिल्ली थी.. ऐसी बिल्ली कोई दूसरी नहीं देखी.. मर गई मरते - मरते भी नहीं डरी.. और फौजी कुत्तों के सामने कैटवॉक करने आ गई और मौत के घाट उतार दी गई। गली में  एक दो बच्चों ने उस बिल्ली की बॉडी पर गैंदे के फूल की माला डाल दी.. और ले जा कर पार्क में दफना दिया.. आज भी अगर कोई किसी भूरी बिल्ली को देखता है तो, 
वो निडर बिल्ली याद आ जाती है।

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