संविधान- हमारा अभिमान,हमारी पहचान।
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लेखक:- नागेंद्र कुमार पासवान
संविधान मौलिक नियमों का समूह है जो निर्धारित करता है कि किसी देश या राज्य को कैसे चलाया जाता है. संविधान देश का सर्वोच्च कानून है जो शासन के लिए रूपरेखा है और सरकारी संस्थानों की संरचना, शक्तियों और कर्तव्यों को स्थापित करता है।
26 नवंबर 1949 को अपनाया गया, 26 जनवरी, 1950 को अंगीकार कर हमारा प्यारा भारत समप्रभुता संपन्न गणतांत्रिक देश बना।
हम सभी के कर्तव्यों का अधिकार हमारे संविधान में संरक्षित है. संविधान की रक्षा और उसके पालन का धर्म हम सभी नागरिकों और हमारे देश की अस्मीता और अस्तित्व के लिए सर्वोपरि है।
॓'हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते हैं.'
संविधान की प्रस्तावना में अंतर्निहित है समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत के राष्ट्रजीवन के मूल आदर्शों की घोषणा है। इसमें "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को विशेष रूप से जोड़ा गया है, जो हमारे संविधान के मूल चरित्र को दर्शाते हैं।
समाजवाद- "समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय"; अर्थ है – आर्थिक समानता, संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण, और सभी नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी। यह अमीरी-गरीबी की खाई को पाटने और राज्य द्वारा कल्याणकारी योजनाएं सुनिश्चित करने का सिद्धांत है।
धर्मनिरपेक्षता- "विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता" ; आशय है – राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, सभी धर्मों को समान सम्मान मिलेगा, और प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
इस प्रकार संविधान की प्रस्तावना में निहित ये दोनों मूल्य भारत को एक न्यायसंगत, समतावादी और समावेशी राष्ट्र बनाने की नींव रखते हैं।
समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित अनेकता में एकता की पहचान वाली हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोपरि है, इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा प्रस्तावना में ही सबसे ज्यादा महत्व "हम भारत के लोग" अथवा इस देश के नागरिकों को दिया गया है.
लोकतंत्र तभी मजबूत हो सकता है, जब देश की सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं निष्पक्ष, पारदर्शी, ईमानदार, और जनता के प्रति जवाबदेह हो. कोई भी संस्था अगर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में जानबूझकर अथवा दवाब या लालच में संविधान के प्रति वफादार न हो, अगर सरकार अपने चुनने वाली जनता के प्रति जवाबदेह और वफादार न होकर किसी और के प्रति वफादार हो जाए, और संविधान विरुद्ध आचरण करने लगे तो जन आंदोलनों के माध्यमों से उसको सही करने की ज़िम्मेदारी देश के शैक्षणिक रूप से मजबूत नागरिकों के कंधों पर होता है.
आपका और आपके बच्चों का जीवन निर्धारित होता कि आप शिक्षा के प्रति कितने जागरूक हैं?
किसी देश का लोकतंत्र तभी बच सकता है जब उसके नागरिकों के बीच नस्ल,भाषा, प्रान्त और धर्म के नाम पर कोई भेदभाव न हो और जिस देश के नेता मानवीय मूल्यों की रक्षा करने में संविधान के प्रति वफादार हों.
याद रखना, हमारी स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों का हमारा सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है- संविधान!!
यह शक्ति है अभिव्यक्ति की, क्षमता है सच बोलने की, अवसर है जो चाहे वो बनने की और उम्मीद है अपने सपनों को जीने की....
याद रखना- संविधान को जलाने, मनुस्मृति को लागू करने और आरक्षण को खत्म करने वाले टुकड़े टुकड़े गैंग और उसकी देशद्रोही सरकार का षड्यंत्र है- छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर, धार्मिक आडंबर के नाम पर, मुस्लिम परपिडा में पिछड़े, दलित मदमस्त रहें और सनातनी धूर्त जाती समूह सत्ता पर कब्जा कर मलाई खाते रहें।
ऐ अहल-ए-वतन शाम ओ सहर जागते रहना
अग्यार हैं आमादा-ए-शर जागते रहना!
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