मजदूरो का दिवस और हमारी जिम्मेदारियाँ

निकहत प्रवीन

7042293794
मजदूर दिवस पर विशेष लेख

"सरकार ठेका मजदूरी( नियमन औऱ उन्मूलन) केंद्रीय कानुन के 25वें कानून मे संशोधन करने जा रही है, इस संशोधन से प्रत्येक ठेका मजदुर को हर महीने 10 हजार रुपये मिल पाएगे"। ये वाक्य हैं देश के श्रम एंव रोजगार मंत्री बंडारु दत्तात्रेय का जिन्होने मजदुरो की स्थिति मे सुधार लाने के लिए इस कार्य को आगे बढ़ाने का भरोसा हम सब मजदुरो को दिलाया है जी हाँ आज मजदुर दिवस के अवसर पर देश के रोजगार मंत्री की इन बातो को याद करना उन सबके लिए आवश्यक है जो मजदुर वर्ग की श्रेणी मे आते हैं हालांकि अक्सर मजदुर शब्द से हम- तपती धुप मे नंगे पांव किसी बोझ को ढोते या खिंचते हुए, या किसी फैकट्री मे बड़ी- बड़ी मशीनो को परेशान हाल मे चलाते हुए, या फिर किसी और के खेतो मे अपने परिवार का पेट पालने के लिएसूरज निकलने से लेकर डुबते समय तक कड़ी मेहनत करते हुए गरीब मजदूर किसान जैसीछवी मन मे बना लेते हैं जबकि मजदूर की परिभाषा को जानने की कोशिश करे तो मालुम होता है कि " कोई भी ऐसा व्यक्ति जो उसकी श्रम शक्ति को बेचकर अपना रोजगार कमाता है, वह मजदूर है। दुसरी परिभाषा के अनुसार मजदूरी का अर्थ सेवा है, सेवा प्रदान करने वाला व्यक्ति मजदूर होता है। ये परिभाषा साफ तौर पर बताती है कि किसी अन्य व्यक्ति के अंतर्गत काम करने वाला दुसरा व्यक्ति चाहे काम करने की जगह सड़क हो, खेत हो,फैकट्री हो, या कोई शानदार ऑफिस सब मजदूर की ही श्रेणी मे आते हैं क्योंकि प्रतेयक माह के अंत मे वो अपने मालिक द्वारा दिए जाने वाले वेतन के लिए उनपर निर्भर हैं ऐसे मे मजदूर दिवस की महत्वपूर्णतः हमारे देश केलोगो के लिए और भी बढ़ जाती है जहाँ की अधिकतर आबादी किसी न किसी प्रकार की नौकरी अर्थात मजदूरी द्वारा जीवनयापन कर रही है बावजुद इसके हममे से ज्यादातर लोग मजदूर दिवस के इतिहास औऱ इसकी महत्वपूर्णतः से अंजान है, दरअसल इस दिनकी शुरुआत 1886 में शिकागो में उस समय हुई जब मजदूर मांग कर रहे थे कि काम की अवधि आठ घंटे हो और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी हो। इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति ने बम फोड़ दिया और बाद में पुलिस फायरिंग में कुछ मजदूरों की मौत हो गई, साथ ही कुछ पुलिस अफसर भी मारे गए। इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की दित्तीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए, उसी समय से दुनिया के 80देशों में मई दिवस को राषट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा।  हमारे देश में पहली बार मजदूर दिवस 1923 में मनाया गया जिसका सुझाव सिंगारवेलु चेट्टीयार नाम के एक कम्यूनिस्ट नेता ने दिया उनका कहना था कि "दुनिया भर के मजदुर इस दिन को मनाते हैं तो भारत मे भी इसकी शुरुआत की जानी चाहिए"। इस संबध मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था" किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारो और किसानो पर निर्भर करती है"।परंतु वर्तमान समय की स्तिथि पर नजर डाला जाए तो स्पष्ट होता है कि हमारे देश केकामगरो की स्तिथि संतोषजनक नही है और हो भी कैसे हममे से अधिकतर मजदुर वर्ग की श्रेणी मे तो जरुर हैं लेकिन एक मजदुर होने के नाते हमे अपने अधिकारो और उत्तरदायित्वका कोई ज्ञान नही जबकि हमे मालुम होना चाहिए की हर साल मजदुर दिवस के अवसर पर सरकार की ओर से कई प्रकार की योजनाएँ मजदुरो के उत्थान के लिए बनाई जाती हैं और कुछ सुविधाएँ पहले से भी मौजुद हैं उदाहरण कल कारखानो मे काम करने वाले मजदूरो की अगर किसी दुर्घटना के दौरान मौत हो गई तो सरकार की ओर से एक लाख और स्थाई विकलांगता पर 75 हजार रुपये तथा भवन एवं अन्य सन्निर्माण प्रकियाओ मे कार्यरत मजदुरो के मेधावी बच्चो को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए मेधावी छात्र पुरुस्कार के तौर पर दो से बारह हजार रुपये तक मिलते हैं साथ ही पुत्री विवाह के लिए अनुदान स्वरुप बीस हजार रुपये तथा आवास के लिए पैंतालीस हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान है। ये सारी सुविधा मजदूर वर्ग के लिए ही है लेकिन जागरुकता की कमी के कारण अधिकतर अपने अधिकारो से वंचित रह जाते हैं ऐसे मे हम सबकी ये जिम्मेदारी है कि हम इन योजनाओ की जानकारी से खुद भी अवगत हो और दुसरो को भी इसके प्रति जागरुक करें ताकि आने वाले समय मे फिर किसी कार्ल मार्क्स को मजदुरो के अधिकार के लिए "दुनिया के मजदुरो एक हो"का नारा न देना पड़े।

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