क़ासिम खुर्शीद
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कभी - कभी मैं सोचने लगता हूँ कि अब तक मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जो मेरी नज़र में अविस्मरणीय हो ! मगर हम से बेहतर लोगों की बेपनाह दस्तावेज़ी मुहब्बतें मिलती हैं तो आँखों में नमी आ ही जाती है ।तारीख़ी शहर मुंगेर में गुज़स्ता रोज़ एक प्रोग्राम का मुझे चीफ़ गेस्ट बनाया गया था उस मंच पर उर्दू के बड़े शायर प्रो○ राशिद तराज़ भी थे । कल उन्होंने ख़बर दी कि एक बड़े पत्र में आप पर मेरी तहरीर छपी है ।राशिद तराज़ के ख़ुसूसी शुक्रिए के साथ आप के लिए भी उन की ये तहरीर।
आप हमें आवाज़ दें, हम आपकी आवाज़ बनेंगें,उठें जागें और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करें। "" कुफ़्र की हकुमत चल सकती है लेकिन ज़ुल्म की नहीं "" ।। बिना चिंगारी के आग नहीं लग सकती ।।
शुक्रवार, दिसंबर 30, 2016
नज़्रे खुर्शीद
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