मुस्लिम नौजवानों को अपने अस्लाफ के कारनामों से सबक़ हासिल कर मुस्तक़बिल को रौशन बनाने की कोशिश करनी चाहिए।साथ ही साथ तरक़्क़ी के नये दौर में बे राह रवी का शिकार होने से बचनी चाहिए।जो क़ौम अपनी तारीख़ भुला देती है उस क़ौम का जुग्राफिया भी बाक़ी नही रहता।नई नस्ल को अपनी तारीख़ का ईल्म रखनी चाहिए और अपने आबा व अजदाद से रिश्ता बनाए हुए रखनी चाहिए।अपने आबा व अजदाद से बे रूखी हमें अपने तारीख़ और हक़ीक़त से दूर कर देती है।आज ज़रूरत इस बात की है कि हम अपने ताबनाक और रौशन तारीख़ का मुताला गहराई से करें अगर हम अपनी शानदार तारीख़ से अंजान रहेंगें तो हमारा मुस्तक़बिल तारिक़ हो कर रह जाएगा।
आप हमें आवाज़ दें, हम आपकी आवाज़ बनेंगें,उठें जागें और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करें। "" कुफ़्र की हकुमत चल सकती है लेकिन ज़ुल्म की नहीं "" ।। बिना चिंगारी के आग नहीं लग सकती ।।
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