बुधवार, फ़रवरी 28, 2018

साक्षर भारत की जमीनी हकीकत हक़ीक़त के आईनें में

बिहार में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए वर्ष 2012 में साक्षर भारत मिशन प्राधिकरण बिहार ने साक्षर भारत अभियान का आग़ाज़ किया था और सम्पूर्ण बिहार में ज़िला स्तर से लेकर पंचायत स्तर तक साक्षरता समिति का गठन किया गया था। जिला में जिला लोक शिक्षा समिति, प्रखण्ड में प्रखण्ड लोक शिक्षा समिति और पंचायत में पंचायत लोक शिक्षा समिति का गठन किया गया साथ ही साक्षरता को गति देने और असाक्षर को साक्षर करने के लिए जिला मुख्य कार्यक्रम समन्वयक,कार्यक्रम समन्वयक, एस आर जी, लेखा समन्वयक, प्रखण्ड कार्यक्रम समन्वयक, प्रखण्ड लेखा समन्वयक, के आर पी, प्रत्येक पंचायत में वरीय प्रेरक,प्रेरक का नियोजन किया गया।योजना पाँच वर्षों की थी परन्तु विस्तार दे कर छः वर्ष कर दिया गया जो 31 मार्च 2018 को समाप्त हो जाता है।

इन छः वर्षों में असाक्षर  15 से 35 वर्ष की महिलाओं को साक्षर करने के लिए बिहार में अरबों की राशि पानी की तरह बहा दिया गया मगर क्या 15 से 35 वर्ष की असाक्षर महिला साक्षर हुई ? आज भी पहेली बना हुआ है।सच्चाई तो ये है कि असाक्षर ज़मीनी स्तर पर साक्षर तो नही हुई मगर काग़ज़ी तौर पर साक्षर हो गई और उन्हें साक्षर होने का प्रमाण पत्र भी महापरीक्षा ले कर दे दिया गया (काग़ज़ में) मगर हक़ीक़त में महिलाओं को पता भी नहीं है कि उनको साक्षर होने का प्रमाण पत्र दे दिया गया है ! बिहार में ये महा साक्षरता घोटाला है इस की उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए।
आम आदमी ये जानता भी नही है कि असाक्षरों को साक्षर करने का प्रोग्राम सरकार चला रही है और सरकार के पदाधिकारियों के द्वारा काग़ज़ी खाना पूरी कर साक्षर किया जा रहा है, प्रमाण पत्र बाँटा जा रहा है ।
""साक्षरता की जमीनी हकीकत यही है कि जो असाक्षर था/थी वह आज भी असाक्षर है।""
सरकार को चाहिए कि साक्षर भारत अभियान को जिस की अवधि 31 मार्च को समाप्त हो रही पुनः विस्तारित न किया जाए बल्कि नए सिरे से ठोस प्लानिंग तैयार है साक्षरता प्रोग्राम को प्रारंभ किया जाय।

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