राज्य के तीन लाख से ज्यादा नियोजित शिक्षकों,संविदा कर्मियों व पुस्तकालयाध्यक्षों को सातवें वेतनमान का लाभ नहीं देने के निर्णय का विरोध करते हुए कहा है कि सरकार का यह बयान निन्दनीय है कि वे उसके कर्मी नहीं है। जब सरकार ने 2015 में ही उनके नियत वेतन को वेतनमान में परिवर्तित कर दिया तथा राज्य सरकार के कर्मियों के अनुरूप घोषित महंगाई, चिकित्सा, मकान किराया भत्ता आदि के साथ ही वार्षिक वेतन वृद्धि भी उन्हें देय है, तब फिर सातवें वेतनमान का लाभ नहीं देने का क्या औचित्य है?
दुर्भाग्यपूर्ण है कि सातवें वेतनमान का लाभ देने के डर से सरकार इन लाखों नियोजित शिक्षकों व संविदाकर्मियों को इनकी अलग-अलग नियोजन इकाइयां होने का बहाना बना कर अपना कर्मचारी मानने से इनकार कर रही है जबकि विगत विधान सभा चुनाव के पूर्व चुनावी लाभ लेने के लिए इन्हें वेतनमान देने की जोर षोर से घोषणा की गई थी। अगर ये सरकार के कर्मी नहीं है तो फिर इन्हें राज्यकर्मियों की भांति वेतनमान, अनेक तरह के भत्तों की सुविधा और वार्षिक वेतनवृद्धि कैसे देय है?
वेतन समिति राज्यकर्मियों के समान ही नियोजित शिक्षकों, संविदा कर्मियों व विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों के हजारों कर्मचारियों के साथ ही नगर निकायों के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने पर विचार करें। अभी तक सरकार की ओर से वेतन समिति गठित करने की अधिसूचना भी जारी नहीं है।
तीन सदस्यीय वेतन समिति के गठन की अधिसूचना सरकार षीघ्र जारी करे और बहानेबाजी को छोड़ कर नियोजित शिक्षकों व संविदा कर्मियों, विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों तथा नगर निकाय के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने का निर्णय लें।
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