रविवार, अक्तूबर 29, 2017

जमीयत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी की बैठक संपन्न

नई दिल्ली। 28 अक्टूबर
जमीयत उलमा ए हिन्द की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक केंद्रीय कार्यालय में मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी, अध्यक्ष जमीयत उलमा ए हिंद की अध्यक्षता में आयोजित की गई। इस बैठक में देश भर से जमीयत उलमा ए हिंद के लगभग दो हजार पदाधिकारियों, जिम्मेदारों और बुद्धिजीवियों ने शिरकत की।
इस अवसर पर जमीयत उलमा ए हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मौलाना महमूद मदनी ने रिपोर्ट पेश करते हुए देश भर में साम्प्रदायिक शक्तियों के बयानों पर उत्तेजनापूर्ण जवाबी बयान और प्रतिक्रिया की राजनीति पर कड़ी आलोचना की और कहा कि एक साजिश के तहत देश के सौहार्दपूर्ण माहौल को खराब करने की कोशिश जा रही है, ताकि कि जनता का ध्यान बुनियादी और आवश्यक समस्याओं से हटा दिया जाए, जनता की बुनियादी समस्याएं जस की तस हैं और उन्हें अनावश्यक बातों से दिगभ्रमित किया जा रहा है। मौलाना मदनी ने दो टूक शब्दों में कहा कि देश में भय का वातावरण एवं भय की राजनीति नहीं चलने दी जाएगी।ं हमें किसी से डर नही है, न ही किसी के डराने से डरते हैं
मौलाना मदनी ने प्रतिक्रिया की राजनीति को भी सख्त हानिकारक बताया और कहा कि जिस अंदाज में साम्प्रदायिक शक्तियां बात करती हैं, उसी अंदाज में मुसलमानों में से कुछ लोग तुरंत प्रतिक्रिया देने लगते है, ऐसे लोग वास्तव में मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन है, वह जानबूझ कर या अनजाने मंेे साम्प्रदायिक ताकतों के बिछाए हुए जाल में खुद भी फंसते हैं और पूरे देश को फंसाते हैं। उन्होने लोगों से कहा कि मैं देश के आम लोगों से अपील करता हूं कि वे खरे खोटे और दोस्त दुश्मन की पहचान करके अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोशिश करें, हमें शत्रुओं के छल और अपनों की नादानी दोनों से बचना होगा।
मौलाना मदनी ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार के बदलने से हालात नहीं बदलने, बल्कि खुद के बदलने से हालात बदलते हैं, मुसलमान अगर अल्लाह और उसके रसूल का दामन थाम ले तो कोई आए कोई जाए मुसलमान का एक बाल भी बांका नहीं होगा उन्होंने कहा कि हम यह समझते हैं मुसलमान को विभिन्न चुनौतियों का सामना है, लेकिन बड़ी चुनौती तो इस्लाम के सामने है और वह किसी बाहरी शक्ति से नहीं बल्कि स्वयं हमारे कार्यों और भूमिका से है। हमें अपने अंदर सुधार करना चाहिए, यदि हम बदल गए तो हम भी सुरक्षित होंगे और इस्लाम की भी रक्षा करने की शक्ति प्राप्त होगी। मोलाना मदनी ने दीनी तालीम को बढ़ावा देने और सामाजिक सुधार पर जोर देते हुए कहा कि बहुत सारे मुसलमान कलमा तक नहीं जानते, हमें उन्हें बचाने के लिए आगे आना होगा।
इस बीच केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक मे देश और मिल्लत से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। देश के मौजूदा स्थिति और मुसलमानों की राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक बदहाली के निवारण से संबंधित रणनीति भी तय की गई। सांप्रदायिक दंगों की रोकथाम संबंधित एक प्रस्ताव भी पेश किया गया जिसमें प्रभावी कानून बनाने पर जोर दिया गया। साथ ही इस बात पर गहरी चिंता जताई गई कि जमीयत उलेमा ए हिंद एवं शांतिप्रिय जनता और उनके मुखतलिफ प्रतिनिधियों के बार-बार अहृवान के बावजूद सांप्रदायिक दंगा नियंत्रण कानून बनाने की दिशा में किसी भी केंद्र सरकार ने कोई संजीदा प्रयास नहीं किया। अब तक सभी सरकारों ने विभिन्न बहानों और खतरों का बहाना बनाकर कानून मसौदा लागू करने से बचने का प्रयास किया है।
आतंकवाद के आरोप में निर्दोष लोगों की गिरफ्तारी के संदर्भ में सरकार से मांग की गई कि जिन अधिकारियों ने झूठे मुकदमे बनाए और उन पर आधारित उन्हें पदोन्नति दी गईं या सम्मान दिए गए वे सभी वापस लिए जाएं और उन के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए। जिन लोगों को बरसों जेल में रखा गया और उनका कोई आरोप साबित नहीं हुआ, सरकार उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी ले।
राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और सांप्रदायिकता की रोकथाम के तरीके से संबंधित प्रस्ताव में इस बात को बहुत ही गंभीरता से महसूस किया गया कि कुछ प्रतिशत लोग सांप्रदायिक घृणा, वैमनस्यता फैलाकर अपने राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित एवं सुनियोजित तरीके से मीडिया को आकर्षित किया गया और भ्रामक प्रचार एवं विचारों को जनता के बीच परोसने का काम किया। सरकार एवं उनके राजनीतिक संगठन अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी पर ध्यान केंद्रित करें और पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर केवल सार्वजनिक व्यवस्था, शांत वातावरण, सांप्रदायिक सद्भावना, सहिष्णुता और बहुआयामी विकास को बढ़ावा देने के लिए खुद को समर्पित करें। साथ ही एक दूसरे प्रस्ताव में जमीयत उलमा ए हिन्द ने मुसलमानों के तमाम फिरकों से अपील की है कि अपने अपने मसलकों पर कायम रहते हुए परस्पर साझा समझ के साथ माहौल को बनायें और मुसलमानों में एक सही सोच को पैदा कर बढ़ावा दें।
मुस्लिम वक्फ संपत्तियों से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में वक्फ संपत्तियों की बदहाली पर चिंता करते हुए मांग की गई कि सभी वक्फ बोर्ड के कार्यालयों में पूर्णकालिक स्टाफ नियुक्त किया जाए। आईएएस और आईपीएस की तर्ज पर भारतीय वक्फ सेवा का विशेष कैडर बनाया जाए। .यह भी मांग की गई कि वक्फ संपत्तियों के संबंध में एक सशक्त केंद्रीय मंत्रालय गठित किया जाए जिसका मंत्री भी मुसलमान हो, तथा वक्फ संपत्ति संबंधी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश की जाए।
इसके अलावा कानपुर शहर में कपड़ा मिलों और टीनरयों समस्याओं, दलित और मुस्लिम एकता से संबंधित रणनीति, मुस्लिम वक्फ, स्कूल के बच्चों पर विशेष धार्मिक अनुष्ठानों को अनिवार्य करने के व्यवहार, रोहिंग्या के पीड़ित मुसलमानों की वैश्विक स्तर पर समस्याओं से राहत के उपायों, इस्लामी समस्याओं, दीन व ईमान सुरक्षा और इस्लाम के संबंध में फैलाई जाने वाली गलतफहमी के निवारण और प्रभावी नियंत्रण रणनीति और इमारते शरैया स्थिरता, स्थाई शिविर आयोजन की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर कार्यकारिणी में स्वीकृत किए गए। सुझावों एवं सिफारिशों पर कार्यकारिणी बैठक में अध्यक्ष ने अपनी मुहर लगाई।
आज की जनरल बाॅडी की बैठक में जमीयत उलमा ए हिन्द के दो उपाध्यक्षों का भी चयन किया गया। मुफ्ती खैरूल इस्लाम, आसाम, और मौलाना अमानुल्ला, महाराष्ट्र का उपाध्यक्ष पद पर चयन किया गया। आज की इस बैठक में सुबह साढ़े आठ बजे जमीयत उलमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष के हाथों ध्वजारोहण बैठक शुरू हुआ। आंदोलन अध्यक्षता मौलाना मतीनुल हक ओसामा कानपुरी ने पेश की, जबकि वार्षिक रिपोर्ट पेश की। बैठक देर शाम तक चली। समापन अध्यक्ष के दुआ कराने के बाद हुआ।
आज की बैठक में मौलाना बदरुद्दीन अजमल, मौलाना खालिद सैफल्लाह रहमानी, मौलाना सिद्दीक अल्लाह चैधरी अध्यक्ष जमीअत उलेमा पश्चिम बंगाल, मौलाना मतीनुल हक ओसामा, प्रोफेसर निसार अहमद अंसारी गुजरात, मुफ्ती मोहम्मद राशिद आजमी, मौलाना हाफिज नदीम सिद्दीकी, मुफ्ती इफ्तिखार अहमद कर्नाटक, मुफ्ती बिदालमगनी हैदराबाद, मौलाना मुहम्मद कासिम बिहार, मुफ्ती जावेद इकबाल बिहार, मुफ्ती सैयद मोहम्मद अफ्फान मंसूरपूरी, मौलाना सलमान बिजनौर, मोलाना नियाज अहमद फारूकी, हाफिज पीर शब्बीर अहमद आध्रा प्रदेश, मौलाना मोहम्मद रफीक गुजरात, मौलाना अब्दुल वाहिद खत्री राजस्थान, मौलाना मोहम्मद ध्वनि मन गढ़ी धन, मौलाना याहया मेवात, मौलाना अली हसन, जमीयत उलेमा हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, मौलाना कारी शौकत अली, हाफिज बशीर अहमद असम, मौला न मंसूर काशनि तमिलनाडु, मौलाना मोहम्मद जाकिर कासमी महाराष्ट्र, मुफ्ती अहमद दीलह गुजरात, मौलाना शमसुद्दीन बिजली कर्नाटक, मौलाना अब्दुल कादिर असम, मौलाना सईद मणिपुर, मौलाना रहमतुल्ला कश्मीर, मोलाना जललुद्दीन अहमद, मौलाना अबू झारखंड, मौलाना कलीम उल्लाह खां कासमी, मोलाना डॉ मोहम्मद इस्लाम कासमी उत्तराखंड, मौलाना हकीम दीन कासमी, मौलाना मोहम्मद आबिद दिल्ली आदि ने भी अपने विचार रखे।

शुक्रवार, अक्तूबर 27, 2017

ग़ुलामी की जंजीरों से बाहर निकलो


● गुलामी के पहले शूद्रों को धर्म से दूर रखा गया और आजादी के बाद धर्म से चप्का दिया गया ।
26 जनवरी 1950 से पहले रामायण, गीता,वेद,पुराण महाभारत जैसी पुस्तके ब्राह्मण ही पढते थे ।
26 जनवरी 1950 के बाद संविधान लागू होते ही वह सारी पुस्तकें ब्राह्मणो ने O B C , S C,S T को थमा दी और
खुद *संविधान* पढ़ने लगे।
संविधान वो आज भी पढ़ रहे हैं और हमारे लोगों ने संविधान उठा कर देखा तक नहीं।
वे वकील ,जज और नेता बन गये और हमारे समाज के लोग भक्त बन गये।
क्या ये विचारणीय प्रश्न नहीं है ?
इस लिये आप सभी भारत देश के नागरिकों से आनुरोध है कि संविधान को पढें और आगे बढें।
गीता रामायण पढने से आप I A S,
I P S, P C S, M B B S इंजीनियर नहीं बन सकते हो इस लिये अब समय आ गया है पाखण्डवाद से बाहर निकलने का ...वक्क्त रहते संभल जाओ,नही तो गुलामी की बेड़िया तुम्हारा इन्तजार कर रही है, फिर समय नहीं मिलेगा।


Immune Health is in HIGH DEMAND right now for obvious reasons.  

Everyone is thinking about their Immune System right now or they should be.  

This is a newer offer that only a handful of affiliates have seen so it hasn't been trafficked to death.

https://www.digistore24.com/redir/356918/mdqamrealam/
            

गुरुवार, अक्तूबर 26, 2017

छठ पर्व पर विशेष :-नर्म और सख़्त कैसे होता है छठ का ठेकुवा और ख़स्ता

महजबीं

नर्म और सख़्त कैसे होता है छठ का ठेकुवा और ख़स्ता

सर्दियों के गुलाबी मौसम में त्योहारों की आमद साथ लाती है मेहमान पकवान शादियों के पैग़ाम। आजकल बाज़ार में त्योहार से मुतालिक हर चीज़ बाआसानी से फराहम है तरह-तरह के तोहफे मिठाइयाँ सजावट के सामान होली की गुज़िया तिल के लड्डू रेडीमेड रंगोली इत्यादि। बाज़ार और टेक्नोलॉजी ने बहुत काम आसान कर दिया अब हर चीज़ हर जगह मिलती है और घर में बनने वाली चीज़ें भी बाज़ार में मिलती है जैसे अब सत्तू तीसी धान बाजरा मड़वा मकई का आटा चूरा (पोहा, चिड़वा ) लाई के लड्डू तिल के लड्डू होली की गुज़िया शरीफा टापलेमुन झिंगा मछली.... बाज़ार ने हमारी दौड़ धूप महनत कम कर दी है इसमें कोई शक़ नहीं घर बैठे इंट्रनेट पर अॉडर देकर कुछ भी मंगा लिजिए। मगर इस सुविधा में चकाचौंध में कहीं कुछ पिछे छूट गया है, संवेदना दिनो - दिन मिटती जा रही है, अब लोगों के दिलों में अहसास नहीं रहे हैं इनकी जगह अॉपचारिकता (खानापूर्ति ) ने ले ली है, टेलीफोन मोबाइल के ज़रिए अब कभी भी किसी से बात करना कितना आसान हो गया है मगर बात करने में वो पहले वाली बेसब्री इंतजार ललक मुहब्बत नहीं रही। अब कोई ज़ुदा होता है रुख़सत होता है तो अलविदा में नम आँखें उतनी नम नहीं होती दिल में चुभन नहीं होती, क्योंकि अब महिनों सालों कोई किसी से बात करने को नहीं तरसता, अब कोई हालचाल गुफ्तगू के लिए ख़तूत के मोहताज नहीं, फोन पर व्हाट्स एप्प पर रोज़ बात हो जाती है। अब तो आदमी मर जाता है तो उतना दु:ख नहीं होता उसके चले जाने का, उधर जनाज़ा उठा इधर मिंटो में सब नॉर्मल हो जाते हैं।

मैं अक्सर अपने प्रेज़ेंट को अपने पास्ट से नापती - तोलती रहती हूँ देखती रहती हूँ क्या खो दिया है क्या पा लिया है कुछ नया - नया पाकर खुशी और आराम मिलता है मगर माज़ी की कुछ बातें नहीं भुलती वो अभी भी खींच लेती हैं अपनी तरफ़ जैसे कि नानी के हाथों भेजी गई वो मोटरी जिसमें तीसी सत्तु चूरा लाई के लड्डू धान मड़वा का आटा ख़स्ता झिंगा मछली होती थी उस मोटरी का हम बेसब्री से इंतजार किया करते थे क्योंकि यह सब चीज़ें उन दिनों दिल्ली में नहीं मिलती थी नानी आती थी तो लाती थी या गाँव से आने वाले लोगों के हाथ भिजवाती थी, अब यह चीज़ें दिल्ली की हर गली में दुकानों पर मिल जाती हैं मगर मुझे वो मोटरी अब भी याद आती है क्योंकि उसमें सामान के साथ - साथ नानी का ख़त भी आता था और उनकी मुहब्बत भी जो अब किसी बाज़ार में नहीं मिलते।

जब कोई गाँव से आता - जाता है तो सफर के लिए ख़स्ता बनाकर दिया जाता है कितना टेस्टी होता है ख़स्ता मगर अब यह रिवाज़ भी कहीं छूट रहा है,अब कहीं नहीं मिलता ख़स्ता खाने को , ख़स्ता और छट पर्व पर बनने वाला ठेकुवा और बरेलवी मुसलमानों के कुंडा में बनने वाले कुंड्डे का स्वाद बिल्कुल एक जैसा है, इसलिए कहीं से कोई बरेलवी मुसलमान कुंड्डे दे दे कुंड्डो के दिनों में तो मैं देवबंदी मुसलमान हूँ मगर कुंड्डे लेने से मना नहीं करती, क्योंकि मैं बरेलवी देबंदी के तसद्दुद में नहीं पड़ती कुंड्डो को अल्लाह का रिज़्क़ समझकर खा जाती हूँ, क्योंकि उसमें मुझे ख़स्ता का स्वाद मिलता है, ऐसे ही मुझे छट पूजा का भी इंतज़ार रहता है क्योंकि उसमें बिहार के हिन्दू पड़ोसियों के यहाँ से ठेकुवा आता है प्रसाद में जिसे मैं आते ही चट कर जाती हूँ, क्योंकि मैं ठेकुवा और ख़स्ता में अंतर कर ही नहीं पाती बिल्कुल सेम टेस्ट और रेसिपी है दोनों की बस शक्लें मुख़तलिफ़ हैं।

जब हम छोटे थे तो ख़स्ता खाते थे कहीं से आता था और छट पूजा के ठेकुए, कहीं से तो नर्म - नर्म आते थे और कहीं से बहुत सख़्त जिन्हें खाना बहुत मुश्किल होता है, मैं अब्बा से पूछती "अब्बा ये इतने सख़्त क्यों हैं खाते-खाते दाँत दु:ख गए"अब्बा क्या ये नरम नहीं बन सकते जैसे फलां-फलां के यहाँ बनते हैं, अब्बा कहते "हां नरम भी बन सकते हैं अगर इनमें घी थोड़ा और पड़ जाए, जितना मीठा गेरो उतना मीठा और जितना घी गेरो उतना नरम "तब समझ आया लॉजिक कि किसी - किसी के यहाँ के ख़स्ता ठेकुए नरम क्यों होते हैं और किसी - किसी के यहाँ के सख़्त क्यों, एक दिन अब्बा से कहा" अब्बा ये लोग ख़स्ता और ठेकुवा बनाते समय अच्छी तरह घी क्यों नहीं डालते? क्यों सख़्त बनाकर रिज़्क़ का सत्यानाश करते हैं" अब्बा ने कहा "बाबु रिज़्क़ ऐसी चीज़ है जिसका कोई जानबूझकर कभी सत्यानाश नहीं करता न बर्बाद, यह ऐसी नियामत है जिसकी क़द्र सबको है, असलियत में सबकुछ आदमी की आमदनी और हैसियत पर मुनहसर(निर्भर ) है, घी कितना मंहगा आता है ग़रीब आदमी अपने हस्बेमाअमूल नहीं अपनी आमदनी और हैसियत के मुताबिक ही तो इस्तेमाल करेगा, ये पकवान ख़स्ता और ठेकुवा आमदनी तय करती है कितने सख़्त बनेंगे और कितने नरम"।

अब्बा की वो बात मैं आजतक नहीं भूली और अब तो और भी याद आती है जब घरारी का सारा दारोमदार ख़ुद संभालना पड़ता है, एक रोज़ कुछ साल पहले मेरे एक क़रीबी ने अपनी राय दी थी गृहस्थी घर परिवार के संदर्भ में कि "जितने ज़्यादा अपने परिवार वालों पर पैसे ख़र्च किये जाएं जितना उन्हें माना जाए उतनी ही उनसे मुहब्बत मिलेगी" उसने भी समझाते समय मिसाल पेश की थी कि "जितना गुड़ डालो उतना मीठा होता है ठीक वैसे ही परिवार के सदस्यों को जितना दो- लो मानो उतनी ही मुहब्बत" । मैं एकटक सुनती रही बाद में सोचा कि क्या मुहब्बत भी आदमी की आमदनी और हैसियत से मिलती है? पैसे खर्च करने से मिलती है, अगर पैसे से मिलती है तो फिर जो मिलती है वो मुहब्बत कहाँ है? नहीं मुहब्बत पैसे से कभी नहीं मिलती ये दौलत तो गॉड गिफ्टिड है जिसे कभी कोई ख़रीद - फ़रोग नहीं कर सकता, पैसे से शराफत से हम किसी की तवक्कात ख़ैरख़्वाही इज्ज़त पा सकते हैं मगर मुहब्बत नहीं, ठेकुवा और ख़स्ता नरम कर सकते हैं मगर किसी का दिल नहीं, सामान इंसान में फ़र्क़ है दोनों ही बिकते हैं बाज़ार में मगर दिल नहीं, मुहब्बत नहीं अगर ऐसा होता तो कभी कोई शख़्स एकतरफा मुहब्बत में कभी मज़बूर होकर लाचार होकर मुहब्बत पाने के लिए तरसता नहीं, कोई यतीम माँ-बाप की मुहब्बत को नहीं तरसता, आज तक कोई साइंस दा मुहब्बत भरा दिल इज़ाद कर सका है? किसी मुहब्बत के लिए तरसते इंसान के लिए मुहब्बत करने वाला इंसान बनाकर साइंटिस्ट्स ने बाज़ार मोल में भेजा है, नहीं क्योंकि यह सिर्फ इश्वर के बस की बात है इश्वर ही मुहब्बत का तोहफा देता है और सिर्फ मुहब्बत ही इश्वर तक ले जाती है, पाखंड कट्टरता नफरत ढकोसला नहीं।

मुहब्बत का तोहफा सबको मिले माँ-बाप दोस्त हमसफर की मुहब्बत इसी कामना के साथ छट पर्व की शुभकामनाएं।

मेहजबीं

परिहार उत्तरी पंचायत मुखिया के उपेक्षापूर्ण नीति के कारण वार्ड 5 और वार्ड 15 के बाढ़ पीड़ित परिवार को अभी तक नही मिला राहत राशि

परिहार (सीतामढ़ी)परिहार उत्तरी पंचायत मुखिया के उपेक्षापूर्ण नीति के कारण वार्ड 5 और वार्ड 15 के बाढ़ पीड़ित परिवार को राहत राशि अभी तक नहीं मिला है ज्ञात सूत्रों से पता चला है कि मुखिया ने वार्ड 05,और 15 की सूची अंचल कार्यालय से उठा कर अपने घर ले गए और फिर बाद में अंचल कार्यालय में जमा किया जिस कारण अंचल कार्यालय द्वारा समय पर राहत राशि हस्तांतरण हेतु बैंक को नही भेजी जा सकी है।राहत राशि नही मिलने के कारण वार्ड 05 और 15 के बाढ़ पीड़ितों में काफी आक्रोश पाई जा रही है बताते चलें कि वार्ड 15 अनुसूचित जाति बहुल वार्ड है वहीं वार्ड में आंशिक अनुसूचित जाति के लोग निवास करते हैं इस वार्ड को एक सोची समझी साजिश के तहत ह्रास करने की कोशिश की गई है।मालूम हो कि बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला यही दो वार्ड था वार्ड 15 में प्रभावित परिवारों को बचाने के लिए NDRF  टीम को भी लगाया गया था और इसी वार्ड के प्रभावित परिवार को राहत राशि से अभी तक वंचित रखा जा रहा है।


 

मंगलवार, अक्तूबर 24, 2017

मानदेय भुगतान की माँग

विषय:-मानदेय राशि भुगतान के सम्बन्ध में ।

महाश्य,

उपर्युक्त विषयक प्रसंग में अंकित करना है कि ज़िला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सीतामढ़ी के निर्णय संख्या- 40411_00383 दिनांक 24.06.2016 के आलोक में, मैं ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी के कार्यालय पत्रांक 228 दिनांक 11/07/2016 के आदेशानुसार दिनांक 11/07/2016 को योगदान कर कर तालिमी मरकज़ शिक्षा स्वयं सेवी के रूप में सम्बंधित विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय एकडंडी उर्दू कन्या परिहार सीतामढ़ी में कार्य कर रहा हूँ परन्तु चौदह माह पश्चात भी मानदेय भुगतान नही होने के कारण आर्थिक तंगी उत्पन्न हो गई है  जिस कारण मानसिक तनाव में रहता हूँ।लम्बित मानदेय भुगतान हेतु पूर्व में कई लिखित अभ्यावेदन दे चुका हूँ मगर मानदेय भुगतान नही किया गया ।

अतः अनुरोध है कि सहानुभूति पूर्वक ध्यान देते हुए मानदेय भुगतान राशि विमुक्त करवाने की कृपा करें।मेरा अनुपस्थिति विवरण ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी के कार्यालय में जमा है।

विश्वस भाजन

मोहम्मद कमरे आलम
तालिमी मरकज़, शिक्षा स्वयं सेवी
प्राथमिक विद्यालय एकडंडी उर्दू कन्या
परिहार ,ग्राम-एकडण्डी, थाना+
पोस्ट +प्रखण्ड -परिहार, अनुमण्डल- सीतामढ़ी सदर ज़िला सीतामढ़ी पिन 843324
Mobile 9199320345 (बिहार)

सोमवार, अक्तूबर 23, 2017

सभी बाढ़ पीड़ित परिवार को राहत राशि नही मिलने पर मुखिया संघ और वार्ड संघ का एक दिवसीय धरण आयोजित

बाढ़ पीड़ित परिवार को राहत राशि नही मिलने व प्रखंड कार्यालय, अंचल कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध  मुखिया संघ और वार्ड संघ, पंचायत समिति संघ राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने संयुक्त रूप से परिहार प्रखण्ड मुख्यालय के सामने  एक दिवसीय धरना  मुखिया संघ की अध्यक्ष श्रीमती सपना कुमारी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई सभा का सफल संचालन वार्ड संघ अध्यक्ष विनय पासवान ने किया।सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर तीन दिनों के अंदर सभी बाढ़ पीड़ित परिवार के खातों में बाढ़ राहत राशि का हस्तांतरण नही होता है तो प्रखण्ड कार्याल की घेराबंदी होगी और माँगों के समर्थन में जिला प्रशासन के समक्ष अनशन किया जाएगा।

प्रखण्ड व अंचल कार्यालय में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का बाज़ार गर्म है और आम जनता परेशान है।आर टी पी एस सेवा ध्वस्त हो चुकी है समय सीमा के अंदर दाखिल-खारिज नही होता वही प्रखण्ड शिक्षा कार्यालय, अवर निबंधन कार्यालय आपूर्ति कार्यालय अतिरिक्त प्रभार के पदाधिकारियों के सहारे चलाया जा रहा है जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

पशु बाजार भिस्वा में अंचल अधिकारी की मिलीभगत से पशु बिक्री रशीद कम काट कर राजस्व की चोरी की जा रही है।

सभा को संबोधित करते हुए राकेश कुमार सिंह ने कहा कि पदाधिकारी अपने कार्य संस्कृति में सुधार करें और विचौलिया प्रवृति से दूर रहें ।वित्तीय वर्ष 2016-2017 की पोशाक राशि, छात्रवृति राशि अभी तक छात्रों के खाते में हस्तांतरित नही की गई

धरना समाप्ति के उपरान्त महामहिम राज्यपाल बिहार सरकार को सम्बोधित माँग पत्र अंचल अधिकारी की अनुपस्थिति के कारण उनके द्वारा नियुक्त कर्मी को 13 सूत्री माँग-पत्र सौंपा।धरना को मुख्यरूप से  शेखर यादव, अजय पटेल, राकेश कुमार सिंह, मुहम्मद सऊद आलम, विनय पासवान, पीताम्बर सिंह, चंदेश्वर प्रसाद यादव, तमन्ने मुहम्मद यूसुफ, अखिलेश ठाकुर आदि वक्ताओं ने संबोधित किया।


बुधवार, अक्तूबर 18, 2017

प्रशासनिक उदासीनता के कारण बाढ़ पीड़ित परिवार को नही मिला बाढ़ राहत राशि

प्रखण्ड जनता दल यू परिहार सीतामढ़ी के बैठक में कई अहम फैसला लिया गया और उसके क्रियान्वयन के लिए पारित प्रस्ताव की कॉपी पदाधिकारियों के भेजी गई है।बाढ़ आने के दो महीने बाद भी प्रखण्ड के सभी बाढ़ पीड़ित परिवार को बाढ़ राहत राशि प्रशासनिक उदासीनता के कारण नही मिलने पर चिंता प्रकट किया गया वही आर टी पी एस में दिए गए आवेदन खास कर दाखिल खारिज के मामले का समयावधि में निष्पादन नही किये जाने के मामले पर खेद व्यक्त किया।

*** ओला वृष्टि में किसानों की फर्जी सूची तैयार कर क्षति पूर्ति राशि का गबन ***

बिहार में पूर्ण शराब बंदी होने के बाद भी नेपाल से शराब लाकर होम डिलीवरी को लेकर थाना प्रभारी से डेलीगेट के रूप में मिलने का प्रस्ताव पारित किया गया।जनता दल के वरिष्ठ नेता श्री राकेश कुमार सिंह ने प्रस्ताव दिया कि ओला वृष्टि से प्रभावित किसानों के बीच राहत राशि वितरण में भेद भाव किया गया और उगाही आधारित भुगतान किया गया और फर्जी किसानों की सूची तैयार कर फर्जी वारा किया गया है जिसकी उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए।  आरोप लगाया गया है बाढ़ पीड़ित परिवार की सूची माँगे जाने के बाद भी उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है जिसको लेकर जिला जनता दल यू को अवगत कराने का निर्णय लिया गया।

मंगलवार, अक्तूबर 17, 2017

True Balance App डाउनलोड कर असीमित रिचार्ज बैलेंस हासिल करें

दोस्तों यह True Balance App डाऊनलोड कर एकाउंट क्रिएट कर असीमित रिचार्ज बैलेंस हासिल कर अपने किसी भी नेटवर्क मोबाइल नंबर को रिचार्ज कर सकते हैं एकाउंट क्रिएट होते ही 10 रुपये का बैलेंस मिल जाता है आप अपने दोस्तों को invite कर आगे रिचार्ज बैलेंस हासिल कर सकते हैं  that lets you Check & Recharge Mobile Balance, Earn Rewards, all in one go! Try it : http://share.tbal.io/v2/app?m=&code=2D722XF2

बुधवार, अक्तूबर 11, 2017

सीतामढ़ी ज़िला में गाँधी कथा वाचन व बापू आप के द्वार कार्यक्रम आयोजित

जिला प्रशसन द्वारा आयोजित गाँधी कथा वाचन एवम् गाँधी आपके द्वार कार्यक्रम  के उद्घघाटन समारोह का संचालन करते हुए मुख्य कार्यक्रम समन्वयक श्री नागेन्द्र कुमार पासवान साथ में एम् एल सी श्री राजकिशोर कुशवाह जिला परिषद् अध्यक्ष उमा देवी ,उपाध्यक्ष श्री देवेन्द्र साह ,जिला पदाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी जिला कार्यक्रम पदाधिकारी एवम् साक्षरता कर्मी

शुक्रवार, सितंबर 22, 2017

क्या वाकई औरंगजेब हिंदुओं के लिए सबसे बुरा शासक था ?

क्या वाकई औरंगजेब हिंदुओं के लिए सबसे बुरा शासक था ?
भारतीय इतिहास में सबसे विवादित मुगल शासक औरंगजेब जिसे भारत मे सबसे बुरा शासक कहा जाता है पढ़िये उसी से सम्बंधित ये तर्क पूर्ण विवेचना।
तीन मार्च 1707 को मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु हुई थी।
केंद्र में नरेंद्र मोदी और भाजपा की अगुवाई वाली सरकार बनने के बाद से इतिहास की राजनीति में दखलंदाजी अचानक बढ़ने लगी. करीब डेढ़ साल पहले नई दिल्ली नगरपालिका परिषद ने औरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया. भाजपा और आम आदमी पार्टी ने इस फैसले का स्वागत किया तो कांग्रेस ने इस पर सोची-समझी चुप्पी धारण कर ली. इस फैसले ने लंबे समय से महाराष्ट्र के औरंगाबाद का नाम बदलने की मांग कर रही शिवसेना का उत्साह भी बढ़ा दिया. औरंगाबाद दक्षिण भारत में मुगलों की राजधानी रही है जिसे अहमदनगर सल्तनत के पेशवा मलिक अंबर ने स्थापित किया था. शिवसेना की मांग थी कि औरंगाबाद का नाम शिवाजी के बेटे संभाजी के नाम पर संभाजी नगर कर दिया जाए.
ज्यादातर लोगों को लगता है कि इतिहास अतीत की घटनाओं का क्रमिक अध्ययन है; तथ्यों, घटनाओं और संख्याओं का रूखा-सूखा लेखा-जोखा. लेकिन तथ्यों, घटनाओं और संख्याओं का महत्व इतिहास लेखन में कच्चे माल की तरह होता है. महत्वपूर्ण यह है कि एक इतिहासकार इन जानकारियों की व्याख्या कैसे करता है. ठीक वैसे ही जैसे किसी सब्जी को पांच रसोइये 10 तरह से पका सकते हैं.
इसका एक उदाहरण 1740 के दशक में बंगाल पर हुए मराठा आक्रमण से समझा जा सकता है जिसकी इतिहास के ज्यादातर सरकारी संस्करणों ने उपेक्षा की है. ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों के लिए मराठा ‘राष्ट्रीय’ शक्ति थे. लेकिन वे इस तथ्य को अनदेखा कर देते हैं कि किसी भी मध्ययुगीन सेना की तरह मराठा फौज के पास भी राष्ट्रवाद जैसी कोई अवधारणा नहीं थी. एक बड़ी हद तक उसकी दिलचस्पी बंगाल में लूटमार करने में थी. कहने का यह मतलब नहीं है कि मराठाओं के इतिहास में अगर इस आक्रमण को शामिल नहीं किया तो वह इतिहास गलत होगा. अपनी कहानी मजबूती से कहने कोशिश में किसी भी इतिहासकार के लिए यह स्वाभाविक ही है कि वह अपने वर्णन में कुछ घटनाएं शामिल करे और कुछ को छोड़ दे. यह उदाहरण बस यही बताने के लिए है कि तथ्यों और घटनाओं को बताने का नजरिया किस तरह धारणाएं बदल देता है और मराठाओं को राष्ट्रवादी शक्ति बना देता है.
जहां तक औरंगजेब की बात है तो उसके बारे में ज्यादातर प्रचलित धारणाएं उसे इतना दुर्दांत और दमनकारी शासक बताती हैं कि उसके नाम वाली एक सड़क भी कई लोगों को स्वीकार्य नहीं. हालांकि सिर्फ एक लेख से औरंगजेब के बारे में इस धारणा को सच्चा या झूठा साबित नहीं किया जा सकता. फिर भी ऐसे पांच तथ्य जो इस धारणा के खिलाफ जाते हैं.
1- औरंगजेब ने जितने मंदिर तुड़वाए, उससे कहीं ज्यादा बनवाए थे
अतीत में मुगल शासकों द्वारा हिंदू मंदिर तोड़े जाने का मुद्दा भारत में 1980-90 के दशक में गर्म हुआ. भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ जिसकी परिणति बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के रूप में हुई. इस आंदोलन की बुनियाद में यह धारणा थी कि संबंधित स्थल पर भगवान राम का जन्म हुआ था.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस कालखंड यानी मुगलकाल में मंदिरों को तोड़े जाने की बात इतनी ज्यादा प्रचलन में है, उसमें हिंदुओं द्वारा कहीं इस बात का विशेष जिक्र नहीं मिलता. तर्क दिया जा सकता है कि उस दौर में ऐसा करना खतरे से खाली नहीं रहा होगा, लेकिन 18वीं शताब्दी में जब सल्तनत खत्म हो गई तब भी इस बात का कहीं जिक्र नहीं मिलता. विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड ईटन के मुताबिक मुगलकाल में मंदिरों को ढहाना दुर्लभ घटना हुआ करती थी और जब भी ऐसा हुआ तो उसके कारण राजनीतिक रहे. ईटन के मुताबिक वही मंदिर तोड़े गए जिनमें विद्रोहियों को शरण मिलती थी या जिनकी मदद से बादशाह के खिलाफ साजिश रची जाती थी. उस समय मंदिर तोड़ने का कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं था.
इस मामले में कुख्यात कहा जाने वाला औरंगजेब भी सल्तनत के इसी नियम पर चला. उसके शासनकाल में मंदिर ढहाने के उदाहरण बहुत ही दुर्लभ हैं (ईटन इनकी संख्या 15 बताते हैं) और जो हैं उनकी जड़ में राजनीतिक कारण ही रहे हैं. उदाहरण के लिए औरंगजेब ने दक्षिण भारत में कभी-भी मंदिरों को निशाना नहीं बनाया जबकि उसके शासनकाल में ज्यादातर सेना यहीं तैनात थी. उत्तर भारत में उसने जरूर कुछ मंदिरों पर हमले किए जैसे मथुरा का केशव राय मंदिर लेकिन इसका कारण धार्मिक नहीं था. मथुरा के जाटों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था इसलिए यह हमला किया गया.
ठीक इसके उलट कारणों से औरंगजेब ने मंदिरों को संरक्षण भी दिया. यह उसकी उन हिंदुओं को भेंट थी जो बादशाह के वफादार थे. किंग्स कॉलेज, लंदन की इतिहासकार कैथरीन बटलर तो यहां तक कहती हैं कि औरंगजेब ने जितने मंदिर तोड़े, उससे ज्यादा बनवाए थे. कैथरीन फ्रैंक, एम अथर अली और जलालुद्दीन जैसे विद्वान इस तरफ भी इशारा करते हैं कि औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों को अनुदान दिया था जिनमें बनारस का जंगम बाड़ी मठ, चित्रकूट का बालाजी मंदिर, इलाहाबाद का सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर और गुवाहाटी का उमानंद मंदिर सबसे जाने-पहचाने नाम हैं.
इसी से जुड़ी एक दिलचस्प बात है कि मंदिरों की तोड़फोड़ भारतीय इतिहास में सिर्फ मुगलकाल तक सीमित नहीं है. 1791 में मराठा सेना ने श्रृंगेरी मठ पर हमला कर शंकराचार्य मंदिर में तोड़फोड़ की थी क्योंकि इसे उसके दुश्मन टीपू सुल्तान का संरक्षण हासिल था. बाद में टीपू सुल्तान ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.
2- औरंगजेब के शासनकाल में संगीत भी फला-फूला
औरंगजेब को कट्टरपंथी साबित करने की कोशिश में एक बड़ा तर्क यह भी दिया जाता है कि उसने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन यह बात भी सही नहीं है. कैथरीन बताती हैं कि सल्तनत में तो क्या संगीत पर उसके दरबार में भी प्रतिबंध नहीं था. बादशाह ने जिस दिन राजगद्दी संभाली थी, हर साल उस दिन उत्सव में खूब नाच-गाना होता था. कुछ ध्रुपदों की रचना में औरंगजेब नाम शामिल है जो बताता है कि उसके शासनकाल में संगीत को संरक्षण हासिल था. कुछ ऐतिहासिक तथ्य इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि वह खुद संगीत का अच्छा जानकार था. मिरात-ए-आलम में बख्तावर खान ने लिखा है कि बादशाह को संगीत विशारदों जैसा ज्ञान था. मुगल विद्वान फकीरुल्लाह ने राग दर्पण नाम के दस्तावेज में औरंगजेब के पसंदीदा गायकों और वादकों के नाम दर्ज किए हैं. औरंगजेब को अपने बेटों में आजम शाह बहुत प्रिय था और इतिहास बताता है कि शाह अपने पिता के जीवनकाल में ही निपुण संगीतकार बन चुका था.
औरंगजेब के शासनकाल में संगीत के फलने-फूलने की बात करते हुए कैथरीन लिखती हैं, ‘500 साल के पूरे मुगलकाल की तुलना में औरंगजेब के समय फारसी में संगीत पर सबसे ज्यादा टीका लिखी गईं.’ हालांकि यह बात सही है कि अपने जीवन के अंतिम समय में औरंगजेब ज्यादा धार्मिक हो गया था और उसने गीत-संगीत से दूरी बना ली थी. लेकिन ऊपर हमने जिन बातों का जिक्र किया है उसे देखते हुए यह माना जा सकता है कि उसने कभी अपनी निजी इच्छा को सल्तनत की आधिकारिक नीति नहीं बनाया.
3- औरंगजेब के प्रशासन में दूसरे मुगल बादशाह से ज्यादा हिंदू नियुक्त थे और शिवाजी भी इनमें शामिल थे
मुगल इतिहास के बारे में यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि दूसरे बादशाहों की तुलना में औरंगजेब के शासनकाल में सबसे ज्यादा हिंदू प्रशासन का हिस्सा थे. ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि औरंगजेब के पिता शाहजहां के शासनकाल में सेना के विभिन्न पदों, दरबार के दूसरे अहम पदों और विभिन्न भौगोलिक प्रशासनिक इकाइयों में हिंदुओं की तादाद 24 फीसदी थी जो औरंगजेब के समय में 33 फीसदी तक हो गई थी. एम अथर अली के शब्दों में कहें तो यह तथ्य इस धारणा के विरोध में सबसे तगड़ा सबूत है कि बादशाह हिंदू मनसबदारों के साथ पक्षपात करता था.
औरंगजेब की सेना में वरिष्ठ पदों पर बड़ी संख्या में राजपूत नियुक्त थे. मराठा और सिखों के खिलाफ औरंगजेब के हमले को धार्मिक चश्मे से देखा जाता है लेकिन यह निष्कर्ष निकालते वक्त इस बात की उपेक्षा कर दी जाती है कि तब युद्ध क्षेत्र में मुगल सेना की कमान अक्सर राजपूत सेनापति के हाथ में होती थी. इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि एक समय खुद शिवाजी भी औरंगजेब की सेना में मनसबदार थे. कहा जाता है कि वे दक्षिण भारत में मुगल सल्तनत के प्रमुख बनाए जाने वाले थे लेकिन उनकी सैन्य कुशलता को भांपने में नाकाम रहे औरंगजेब ने इस नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी.
4- औरंगजेब की मातृभाषा हिंदी थी
औरंगजेब ही नहीं सभी मध्यकालीन भारत के तमाम मुस्लिम बादशाहों के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि उनमें से कोई भारतीय नहीं था. वैसे एक स्तर पर यह बचकाना और बेमतलब का तर्क है क्योंकि 17वीं शताब्दी के भारत में (और दुनिया में कहीं भी) राष्ट्र जैसी अवधारणा का तो कहीं अस्तित्व ही नहीं था.
हालांकि इसके बाद भी यह बात कम से कम औरंगजेब के मामले में लागू नहीं होती. यह मुगल बादशाह पक्का उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी था. इसका सीधा तर्क यही है कि उसका जन्म गुजरात के दाहोद में हुआ था और उसका पालन पोषण उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी परिवारों के बच्चों की तरह ही हुआ. पूरे मुगलकाल में ब्रज भाषा और उसके साहित्य को हमेशा संरक्षण मिला था और यह परंपरा औरंगजेब के शासन में भी जारी रही. कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार एलिसन बुश बताती हैं कि औरंगजेब के दरबार में ब्रज को प्रोत्साहन देने वाला माहौल था. बादशाह के बेटे आजम शाह की ब्रज कविता में खासी दिलचस्पी थी. ब्रज साहित्य के कुछ बड़े नामों जैसे महाकवि देव को उसने संरक्षण दिया था. इसी भाषा के एक और बड़े कवि वृंद तो औरंगजेब के प्रशासन में भी नियुक्त थे.
मुगलकाल में दरबार की आधिकारिक लेखन भाषा फारसी थी लेकिन औरंगजेब का शासन आने से पहले ही बादशाह से लेकर दरबारियों तक के बीच प्रचलित भाषा हिंदी-उर्दू हो चुकी थी. इसे औरंगजेब के उस पत्र से भी समझा जा सकता है जो उसने अपने 47 वर्षीय बेटे आजम शाह को लिखा था. बादशाह ने अपने बेटे को एक किला भेंट किया था और इस मौके पर नगाड़े बजवाने का आदेश दिया. आजम शाह को लिखे पत्र में औरंगजेब ने लिखा है कि जब वह बच्चा था तो उसे नगाड़ों की आवाज खूब पसंद थी और वह अक्सर कहता था, ‘बाबाजी ढन-ढन!’. इस उदाहरण से यह बात कही जा सकती है कि औरंगजेब का बेटा तत्कालीन प्रचलित हिंदी में ही अपने पिता से बातचीत करता था.
5- औरंगजेब द्वारा लगाया गया जजिया कर उस समय के हिसाब से था
औरंगजेब के शासनकाल का यह सबसे विवादित मुद्दा है लेकिन इसे तत्कालीन राज व्यवस्था के हिसाब से देखें तो इसमें कुछ भी असामान्य नहीं था.
अकबर ने जजिया कर को समाप्त कर दिया था, लेकिन औरंगजेब के समय यह दोबारा लागू किया गया. जजिया सामान्य करों से अलग था जो गैर मुस्लिमों को चुकाना पड़ता था. इसके तीन स्तर थे और इसका निर्धारण संबंधित व्यक्ति की आमदनी से होता था. इस कर के कुछ अपवाद भी थे. गरीबों, बेरोजगारों और शारीरिक रूप से अशक्त लोग इसके दायरे में नहीं आते थे. इनके अलावा हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊपर आने वाले ब्राह्मण और सरकारी अधिकारी भी इससे बाहर थे. मुसलमानों के ऊपर लगने वाला ऐसा ही धार्मिक कर जकात था जिसे औरंगजेब ने खत्म कर दिया था.
आधुनिक मूल्यों के मानदंडों पर जजिया निश्चितरूप से एक पक्षपाती कर व्यवस्था थी. आधुनिक राष्ट्र, धर्म और जाति के आधार पर इस तरह का भेद नहीं कर सकते. इसीलिए जब हम 17वीं शताब्दी की व्यवस्था को आधुनिक राष्ट्रों के पैमाने पर इसे देखते हैं तो यह बहुत अराजक व्यवस्था लग सकती है. लेकिन औरंगजेब के समय ऐसा नहीं था. उस दौर में इसके दूसरे उदाहरण भी मिलते हैं. जैसे मराठों ने दक्षिण के एक बड़े हिस्से से मुगलों को बेदखल कर दिया था. उनकी कर व्यवस्था भी तकरीबन इसी स्तर की पक्षपाती थी. वे मुसलमानों से जकात वसूलते थे और हिंदू आबादी इस तरह की किसी भी कर व्यवस्था से बाहर थी.
उस दौर में भारतीय समाज हिंदू-मुसलिम ध्रुवों में नहीं बंटा था बल्कि उसमें जाति व्यवस्था केंद्रीय भूमिका में थी. यदि हम आज के मानकों के हिसाब से देखें तो उस दौर में जाति व्यवस्था कहीं ज्यादा दमनकारी थी. इसका सबसे सटीक उदाहरण पेशवा राज के दौरान महाराष्ट्र में देखने को मिलता है. यहां तब महार दलित जाति के लोगों को अपने पीछे एक झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था ताकि जब वे चलें तो उनके कदमों से अपवित्र भूमि का उसी समय शुद्धिकरण भी होता चले. नियम यह भी था कि जब वे बाहर निकलें तो गले में एक कटोरा बांधकर रखें ताकि उनके मुंह से निकला थूक जमीन पर न गिरे. वे कोई भी हथियार नहीं रख सकते थे और उनकी शिक्षा पर भी प्रतिबंध था. महारों के लिए इन नियमों का पालन न करने की दशा में मौत की सजा का प्रावधान था.
इसमें कोई दोराय नहीं है कि अतीत की दमनकारी व्यवस्थाओं का हमारा मूल्यांकन इतिहास के तटस्थ अध्ययन (यदि ऐसा कुछ संभव है तो) पर आधारित नहीं है बल्कि यह ज्यादातर हमारे आधुनिक पूर्वाग्रहों और राजनीति पर निर्भर करता है. इसीलिए औरंगजेब के जजिया कर की तो बार-बार चर्चा होती है लेकिन मराठों के जकात और जातिगत दमन को कालीन के नीचे दबा दिया जाता है.

सोमवार, सितंबर 18, 2017

बुनियादी महा परीक्षा का मार्क्स फ़ाइल 22 सितम्बर तक ज़िला को उपलब्ध करावें - मुख्य कार्यक्रम समन्वयक

मुख्य कार्यक्रम समन्वयक नागेन्द्र कुमार पासवान ने पत्र निर्गत कर 17 सितम्बर 2017 को सम्पन्न महापरीक्षा का हर हाल में 20 सितम्बर 2017 तक मूल्यांकन करा कर 22 सितम्बर 2017 तक अंतिम रूप से मार्क्स फाइल जिला को उपलब्ध कराने का निर्देश ज़िला के सभी प्रखण्ड कार्यक्रम समन्वयक साक्षर भारत को दिया है।

सोमवार, अगस्त 28, 2017

बिहार के नियोजित अप्रशिक्षित शिक्षकों को वेतन नही मिलने के कारण NIOS प्रशिक्षण कोर्स में रजिस्ट्रेशन को हो रही परेशानी

बिहार के नियोजित अप्रशिक्षित शिक्षकों को वेतन नही मिलने के कारण NIOS प्रशिक्षण कोर्स में रजिस्ट्रेशन को हो रही परेशानी

बिहार के नियोजित अप्रशिक्षित शिक्षकों को चार महीने से वेतन नही मिलने के कारण NIOS प्रशिक्षण कोर्स में पैसे के अभाव में रजिस्ट्रेशन नही करवा पा रहे हैं ।अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए NIOS में 15 सितम्बर 2017 तक रजिस्ट्रेशन करवा लेना है शिक्षकों को निबंधन के समय ही प्रथम वर्ष का शुल्क 4500 सौ नेट बैंकिंग के ज़रिए भुगतान करना है मगर पैसे के अभाव में शिक्षक निबन्धन नही करवा पा रहे हैं जो शिक्षक सम्पन्न परिवार से हैं वह तो निबन्धन करवा लिए या करवा रहे हैं मगर जो वेतन पर ही आश्रित हैं वे वेतन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं और तनाव में पड़े हुए हैं।सरकार को चाहिए कि शिक्षकों का बकाया वेतन भुगतान करे ताकि समस्याओं से जूझते शिक्षकों की परेशानी दूर हो साथ ही निबन्धन की तिथि को विस्तारित की जाए।

शुक्रवार, अगस्त 11, 2017

महादलित अल्पसंख्यक एवं अतिपिछड़ा वर्ग अक्षर आँचल योजना की एक अच्छी खासी रक़म मोनिटरिंग/प्रबोधन में खर्च जिसका कोई औचित्य नहीं है

महादलित अल्पसंख्यक एवं अतिपिछड़ा वर्ग अक्षर आँचल योजना की एक अच्छी खासी रक़म मोनिटरिंग/प्रबोधन में खर्च जिसका कोई औचित्य नहीं है
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बिहार सरकार द्वारा संपोषित योजना मुख्यमंत्री अक्षर आँचल योजना के अंतर्गत संचालित कार्यक्रम "" महादलित अल्पसंख्यक एवं अतिपिछड़ा वर्ग अक्षर आँचल योजना "" की एक अच्छी खासी रक़म मोनिटरिंग/प्रबोधन में खर्च की जा रही है जिसका कोई औचित्य नहीं है ज़िला स्तरीय लोक शिक्षा
समिति, प्रखण्ड समन्वयक साक्षर भारत और के आर पी को प्रबोधन कार्य से अलग कर इस राशि से शिक्षा स्वयं सेवी के मानदेय में इज़ाफ़ा तत्काल प्रभाव से किया जा सकता है।अगर प्रबोधन कार्य से उक्त सभी को अलग कर दिया जाता है तो इनपर व्यय राशि शिक्षा स्वयं सेवी को दे दी जाती है तो शिक्षा स्वयं सेवी का मानदेय प्रति माह@Rs 11810.25 रुपये हो जाएगा। या इतनी बड़ी राशि से 13383 नये शिक्षा स्वयं सेवी बहाल किया जा सकता है ।मालूम हो कि इस कार्यक्रम की मॉनिटरिंग और प्रबोधन के नाम पर प्रति वर्ष @Rs 107064000 दस करोड़ सत्तर लाख चौसठ हज़ार रुपये की एक बड़ी रकम खर्च कर दी जाती है जिसका ज़मीनी हक़ीक़त से कोई लेना देना नही।अगर मोनिटरिंग/प्रबोधन इतना ही ज़रूरी है तो ये कार्य सी आर सी वाइज सिनिअर शिक्षा स्वयं सेवी से लिया जा सकता है।

""
अनावश्यक खर्च पर रोक लगा शिक्षा स्वयं सेवी पर खर्च कर बेहतर परिणाम हासिल किया जा सकता है। ""

गुरुवार, अगस्त 10, 2017

मानदेय भुगतान की माँग

सेवा में,
ज़िला पदाधिकारी -सह-अध्यक्ष
महादलित अल्पसंख्यक एवंम अति      पिछड़ा वर्ग अक्षर आँचल योजना,  सीतामढ़ी
विषय:-मानदेय भुगतान के संबंध में।
महाशय,
उपर्युक्त विषयक संबंध में अंकित करना है कि तत्कालीन ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी ने  पत्रांक 42    दिनांक 13.02.217  के द्वारा  निदेशक जन शिक्षा शिक्षा विभाग पटना से 46 शिक्षा स्वयं सेवक के मानदेय भुगतान हेतु जनवरी 2016 से मानदेय भुगतान मद में राशि की माँग की थी उक्त पत्रांक के आलोक में निदेशक जन शिक्षा पटना ने क्रमशः तीन पत्रांक:- 483 दिनांक 08.03.2017, पत्रांक:- 1134 दिनांक  24.05.2017 को निर्गत कर नियोजन एवं प्रशिक्षण से संबंधित प्रतिवेदन साक्ष्य के साथ समर्पित करने का निदेश ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी सीतामढ़ी को दिया था ताकि मानदेय भुगतान की राशि आवंटित की जा सके मगर प्रतिवेदन प्रस्तुत नही किया गया।पुनः निदेशक जन शिक्षा पटना ने पत्रांक 1312 दिनांक 14.06.2017 और पत्रांक 1312 दिनांक 14.06.2017 निर्गत कर एक सप्ताह के अन्दर प्रतिवेदन की माँग की मगर ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी के द्वारा प्रतिवेदन निदेशक जन शिक्षा पटना को उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है। प्रतिवेदन के अभाव में हम तालीमी मरकज़ शिक्षा स्वयं सेवियों का मानदेय राशि आवंटित नही हो पा रहा है और हम लोग मानदेय भुगतान नहीं होने के कारण 19 माह से भूक मरी के शिकार हैं।
              अतः श्रीमान से अनुरोध है कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी को प्रतिवेदन प्रेषित करने का आदेश देने की कृपा करें।

विश्वाश भाजन
हामिद अंसारी परिहार
सीतामढ़ी
              

बुधवार, अगस्त 09, 2017

भारत का राष्ट्रीय प्रतिक

भारत का राष्ट्रीय ध्वज - तिरंगा
भारत का राष्ट्रीय गान - जन-गन-मन
भारत का राष्ट्रीय गीत - वन्दे मातरम्
भारत का राष्ट्रीय चिन्ह - अशोक स्तम्भ
भारत का राष्ट्रीय पंचांग - शक संवत
भारत का राष्ट्रीय वाक्य - सत्यमेव जयते
भारत की राष्ट्रीयता - भारतीयता
भारत की राष्ट्र भाषा - हिंदी
भारत की राष्ट्रीय लिपि - देव नागरी
भारत का राष्ट्रीय ध्वज गीत - हिंद देश
का प्यारा झंडा
भारत का राष्ट्रीय नारा - श्रमेव जयते
भारत की राष्ट्रीय विदेशनीति -गुट निरपेक्ष
भारत का राष्ट्रीय पुरस्कार - भारत रत्न
भारत का राष्ट्रीय सूचना पत्र - श्वेत पत्र
भारत का राष्ट्रीय वृक्ष - बरगद
भारत की राष्ट्रीय मुद्रा - रूपया
भारत की राष्ट्रीय नदी - गंगा
भारत का राष्ट्रीय पक्षी - मोर
भारत का राष्ट्रीय पशु - बाघ
भारत का राष्ट्रीय फूल - कमल
भारत का राष्ट्रीय फल - आम
भारत की राष्ट्रीय योजना - पञ्च वर्षीय योजना
भारत का राष्ट्रीय खेल - हॉकी
भारत की राष्ट्रीय मिठाई - जलेबी
भारत के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)

बिहार तालीमी मरकज़ संघ ने शिक्षा मंत्री को सौंपा ज्ञापन

बिहार तालीमी मरकज़ शिक्षा स्वयं सेवी संघ बिहार का एक शिष्ट मंडल तारिक़ अनवर प्रदेश महा सचिवके नेतृत्व में शिक्षा मंत्री बिहार से उन के कार्याल कक्ष में मिलकर लम्बित मानदेय भुगतान और सेवाशर्त निर्धारण से संबंधित माँग पत्र सौंपा ,माँग पत्र में मुख्य रूप से अप्रैल 2017 से अब तक बकाया मानदेय राशि का भुगतान बक़र ईद पर्व से पूर्व करने और लम्बित सेवा शर्त का निर्धारण कर नियमावली की अधिसूचना जारी किए जाने की माँग की गई है। शिष्ट मण्डल में मोहम्मद अकबर, वकील अहमद आदि मौजूद थे।इसी से संबंधित एक आवेदन डायरेक्टर मास एजुकेशन पटना को भी दिया गया है।

मंगलवार, अगस्त 08, 2017

साक्षरता कर्मी की भूमिका शिक्षकों से कम नही :- डी पी ओ साक्षरता सीतामढ़ी

ज़िला लोक शिक्षा समिति सीतामढ़ी द्वारा परिहार हाई स्कूल के सभागार में आयोजित चार प्रखण्डों सोनबरसा, परिहार, बथनाहा और सुरसंड के समन्वयक, प्रेरक, टोला सेवक, तालिमी मरकज़ शिक्षा स्वयं सेवी उन्मुखीकरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता सीतामढ़ी जनाब नुरुल होदा खान ने कहा कि साक्षरता कर्मियों की भूमिका किसी शिक्षक से कम नही नॉन फॉर्मल तरीके से दी गई तालीम का असर देर पा होता है और बच्चे हासिल की गई तालीम को भूलते नही उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने आप को जिस मक़सद के लिए बहाल किया है उसको पूरी ईमानदारी से अंजाम दें अगर ईमानदारी से काम करेंगें तो वह वक़्त दूर नही जब आप शिक्षक के रूप में स्थापित होंगें सरकार आपकी कारकर्दगी को बारीकी से देख रही है। अगर किसी तरह की कोई परेशानी होती है तो हमसे सीधा राब्ता क़ायम करें हम उसका हल निकालेंगे।
उन्होंने कहा कि इस तरह का हमारा यह आखिरी प्रोग्राम नही बल्कि हर तीन महीने पर इस तरह का प्रोग्राम होगा ताकि हम और आप एक दूसरे से रु बरु होते रहे और साक्षरता के हलका में सीतामढ़ी का नाम पूरे बिहार में रौशन कर सकें।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य कार्यक्रम समन्वयक सीतामढ़ी नागेन्द्र पासवान ने कहा कि जहाँ सारा तंत्र फेल कर जाता है उस काम को साक्षरता कर्मी अंजाम तक पहुँचा देता है ज़रूरत इस बात की है कि हमारा जो बुनियादी काम है हम जिस काम को करने के लिए नियुक्त हैं उस काम को पूरी निष्ठा से करें ताकि कोई शिकायत सामने न आयें।साक्षरता कर्मी को समाज में साक्षरता कर्मी के रूप में पहचान बनाने की ज़रूरत है जिस दिन पहचान बन गई साक्षरता का मक़सद पूरा हो जायगा उन्होंने महा परीक्षा की तैयारी का शंखनाद अभी से फुंक देने की बात कही और कहा कि महा परीक्षा को पर्व की तरह आयोजित किया जाए।

बताते चलें कि इस तरह का प्रोग्राम सीतामढ़ी साक्षरता के तारीख में पहली बार हुआ है जहाँ चार प्रखण्ड के साक्षरता कर्मी एक जगह वह भी ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता के साथ आमने सामने बैठ कर बात किये हैं।

नव पदस्थापित ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी साक्षरता को जिला तालीमी मरकज़ संघ के जिला अध्यक्ष नेक मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद कमरे आलम ने फूलों का माला पहना कर ख़ैर मकदम किया कार्यक्रम की नाज़ामत संजय कुमार मधु एस आर जी सीतामढ़ी ने बखूबी अंजाम दिया।अर्चना कुमारी प्रखण्ड कार्यक्रम समन्वयक परिहार, के आर पी परिहार सुरसंड, सोनबरसा बथनाहा आदि ने भी उन्मुखीकरण कार्यक्रम को संबोधित किया और अपने नए पदाधिकार का अभिनंदन किया।

रविवार, अगस्त 06, 2017

नेक मोहम्मद अंसारी बने सीतामढ़ी तालीमी मरकज़ संघ सीतामढ़ी के अध्यक्ष

सीतामढ़ी ज़िला तालीमी मरकज़ संघ के अध्यक्ष एजाज़ कौसर खान के त्याग पत्र देने के बाद अध्यक्ष का पद खाली हो गया था अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर आज तालीमी मरकज़ संघ की एक बैठक ललित आश्रम सीतामढ़ी के प्रांगण में मोहम्मद सगीर अंसारी की अध्यक्षता में बुलाई गई बैठक में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जम कर चर्चा हुई मगर सर्वसम्मति से जिला अध्यक्ष का चुनाव नही हो पाया अध्यक्ष के लिए दो उम्मीदवार आमने सामने आए तो गुप्त मतदान से अध्यक्ष का चुनाव कराने का निर्णय लिया गया।गुप्त मतदान में सत्रह प्रखण्ड अध्यक्षों में से तेरह प्रखण्ड अध्यक्षों ने अपना मत नेक मोहम्मद अंसारी को दिया वही दूसरे उम्मीदवार शाहिद रेज़ा को चार मत प्राप्त हुआ और चुनाव पर्यवेक्षक ने नेक मोहम्मद अंसारी को जिला अध्यक्ष के रूप में अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया।बैठक में निर्वाचित अध्यक्ष को एक सप्ताह के भीतर ज़िला कार्यकारिणी का गठन करने का अधिकार सौंप दिया।
ज़िला अध्यक्ष निर्वाचित होने पर नेक मोहम्मद अंसारी को मोहम्मद कमरे आलम, इम्तेयाज़ अहमद, अनवर दिलवर, रहमत अली सोनबरसा सैदर आदि ने मुबारक बाद दी है और उम्मीद ज़ाहिर किया है कि आप के अगुआई में जिला तालीमी मरकज़ मज़बूत होगा और रज़ाकारों की समस्याओं का समाधान तेज़ी से होगा।