शुक्रवार, दिसंबर 16, 2016

Daily chingari चिंगारी چنگاری: बिहार में बदतर शिक्षा का दोषी कौन ?

Daily chingari चिंगारी چنگاری: बिहार में बदतर शिक्षा का दोषी कौन ?

मर्द और औरत के बीच की ग़ैर बराबरी ख़त्म होनी चाहिए

मेहजबीन

--------------

"दुश्मन न करे दोस्त ने ये काम किया है। 
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है" 

शाम को बीवी का हंसता मुस्कुराता चेहरा  दिन भर की थकान से, शौहर को हस्सास बशास कर देता है। क्या यही बात शौहर पर लागू नहीं होनी चाहिए, क्या सिर्फ दिन भर शौहर ही काम करता है ?मेहनत करता है ?बीवी कुछ भी नहीं करती ? बल्कि वो तो घर के अंदर - बाहर, सास - ससुर, बच्चों की देखभाल भी करती है दिन भर, और फिर रात को भी खटती है, सुबह बिस्तर से उठकर फिर रात को बिस्तर पर जाकर ही, फुर्सत मिलती है। अगर बीवी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर शौहर को सकून व आराम मिलता है तो, फिर बीवी भी तो आराम और सकून की तलबग़ार है, वो भी तो किसी की मुस्कान देखना चाहती है, होता यह है कि दिनभर बाहर, दफ्तर बस, मेट्रो, कामकाज़  सहकर्मियों के साथ हुई तू - तू, में - में की भड़ास मर्द घर आकर अपनी औरतों पर उतारते हैं, यानी उसी औरत की मुस्कान से अपनी थकान भी दूर करनी है, और उसी को गालियाँ सुनाकर अपनी दबी हुई भड़ास भी निकालनी है। ऐसे में पति के घर आते ही गालियाँ सुनने के बाद, बुरा भला सुनने के बाद, वो औरत कैसे मुस्कुराएगी ? किस मन से मुस्कुराएगी? शौहर के पैरों के नीचे जन्नत है, और उस जन्नत को पाने के लिए, हंसने की ऐक्टिंग ही तो करेगी बेचारी, असली हंसी तो नहीं हंसेगी न। कुछ घरों में शायद ऐसा न होता हो, जहाँ पति - पत्नी एक दूसरे को बराबर का दर्ज़ा देते हों, समझते हों, मुहब्बत करते हों, सुलझे हुए हों,एक दूसरे को अहमियत देते हों, मगर ज़्यादा तर घरों में तो ग़ैरबराबरी ही होती है। 

बीवी हमेशा जी हुज़ुरी में रहे, शौहर के लिए सजे संवरे, मुस्कुराती रहे और शौहर तानाशाह की तरह उसे सिर्फ अपनी ज़रूरत पुरी करने का ज़रिया ही समझे। इंसान नहीं समझे, अल्लाह की मख़लूक़ नहीं, हमसफर नहीं, दोस्त नहीं। शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी पुरुषों के अंदर से पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हुई। वो सिर्फ पैसा कमाने की मशीन ही बने, ऐसे ही महिलाएं भी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी, सिर्फ पैसा ही जुटा सकी हैं, मध्यकालीन सोच से उन्हें राहत नहीं मिल सकी है। सास - बहू, ननद - भाभी, देवरानी-जेठानी की सियासत उनपर आज भी हावी है, औरत ही औरत की दुश्मन बनी हुई है, फिर पुरुषों से संवेदना कहां से मिले? 

उर्दू साहित्य की  रचनाकार इस्मत चुग्तई जी की कहानी 'छुईमुई'(टच मी नॉट )  भी कुछ ऐसे ही विषय पर लिखी गई है। कि औरत सिर्फ शोहर के सकून आराम के लिए है, उसके मनोरंजन के लिए, उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, और उसके ख़नदान को वारिस देने के लिए है, सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन है। और इन सब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, चाहे जितने भी दु:ख झेलने पड़े, और इन सब दु:ख तक़लीफों में उसे सजे- संवरे भी रहना है, मुस्कुराते भी रहना है, अपनी परेशानी को ज़याहिर नहीं करना है, चेहरे पर मनहूसियत नहीं लानी, चाहे जो कुछ भी हो जाए, चेहरा दमकता - चमकता रहना चाहिए, और बच्चे पैदा करने के लिए सदाबहार बने रहना चाहिए। यही है औरत की दुनिया, और जन्नत। उसकी अपनी कोई ज़रूरत नहीं, खुशी नहीं, सोच नहीं, वज़ूद नहीं? शादी से पहले भाईयों के लिए क़ुर्बानियां देती रहे, लिंगभेद की मार झेलती रहे, और शादी के बाद शोहर के पुरे परिवार के झंडे के निचे रहे। और सिर्फ शोहर की खुशी के लिए जिये, और ऐसे ही एक दिन अपनी सारी आरज़ूएं दिल में लिए क़ब्र में चली जाए। एक थी शबनम एक थी पूनम, दोनों  यूं ही मर गई, ख़त्म कहानी।

"अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्लाह" 

तीन तलाक़ के विषय पर बहस हो रही है.... आजकल, कितनी भी बहस हो ले, इस मसले पर, तानाशाही हकूमत में कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं है..... लानत है उन तानाशाहों पर, कि जिन्होंने हर वक्त उनकी जीहूजीरी में, मातहती में गुज़ारा है, और उन्होंने एक झटके में तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहकर फैसला सुना दिया.... अल्लाह तआला का अर्शे अज़ीम हिला दिया..... एक लफ्ज़ का जब चाहे ग़लत इस्तेमाल कर लिया, लानत है ऐसे दकियानूसी, पुरुषवादी मानसिकता पर....... ऐसे लानत याफ्ता तानाशाहों के निकाह के अंदर रहें, या बाहर.... फज़ीहत तो होनी ही है, औरत की... निकाह के अंदर हैं तो, सिर पर मुसल्लद तानाशाह जीने नहीं देता.... और निकाह के बाहर रहो तो, लोग और परिवार वाले, अपने खून के ही रिश्ते, जीना दुश्वार कर देते हैं....

तलाक़ कहां जायज़ है, और कहां नाजायज़ है सबसे पहले यह समझने की ज़रूरत है, तलाक़ केवल मर्द ही नहीं दे सकते हैं, ज़रूरत पड़ने पर, औरतें भी ले सकती हैं, यदि किन्हीं कारणों से औरत अपने शोहर से खुश नहीं है, जुल्म सहती है, दबाई जाती है, मानसिक, शारीरिक, आर्थिक तकलीफों से गुजरती है, उसके साथ परिवार (ससुराल ) में ग़ैरबराबरी होती है, तो औरत भी तलाक़ ले सकती है, उसके माता-पिता, भाई-बहन  को जबरदस्ती रिश्ता निभाने के लिए मज़बूर नहीं करना चाहिए। और खुला लेने की इजाज़त देनी, चाहिए उसे मानसिक, आर्थिक, शारीरिक सपोर्ट करना चाहिए। लेकिन अफसोस माँ-बाप, भाई - भाभी  उसे उसी नर्क में धकेल देते हैं सिसक- सिसक के मरने के लिए। तलाक़ देने लेने का हक़ मर्द और औरत को बराबर है, इस्लाम में। लेकिन समाज - परिवार में फैली ग़ैरबराबरी के कारण होता यह है कि मर्द तो बीवियों की छोटी-छोटी सी ख़ताओं के लिए, अपनी जरूरतों के लिए तलाक़ दे देते हैं, अपनी बीवियों को। और  औरत का कोई सहारा नहीं वो एक छत के नीचे रहने के लिए, शोहर की और उसके परिवार की जादतीयों को सहती रहती है, क्योंकि ऐसी स्थिति में उसके मायके वाले भी साथ छोड़ देते हैं। आज अत्याधुनिक - डीजीटेल होने के बाद भी लोग, सड़ी गली मानसिकताओं को ढो रहे हैं। मौलाना तारीक़ जमील का ब्यान इस तरह की समस्याओं पर बहुत सटीक है, तलाक़ जैसे मसलों पर और मर्द - औरत के हक़ूक़ जैसे मसलों में, ग़ैरबराबरी दूर करने की ज़रूरत है। कुर्आन को पढ़ने से ज्यादा समझने की ज़रूरत है, अगर सही तफसीर (व्याख्या ) को समझकर उसपर अम्ल किया जाए तो, बहुत कुछ अच्छा हो सकता है, लेकिन अफसोस  ज्यादातर मुसलमान अर्बी भाषा की रीडिंग ही कर रहे हैं, अर्थ को मंतव्य को समझने की कोशिश नहीं करते हैं।

       मेहजबीं
( ये लेखक की अपनी राय है  )

गुरुवार, दिसंबर 15, 2016

बिहार में बदतर शिक्षा का दोषी कौन ?

1.शिक्षक
2.छात्र
3.अभिभावक
4.सरकार की नीति
5.पदाधिकारी
           अपनी बेबाक राय पूर्ण विवरण के साथ दें।

बी डी ओ परिहार पर विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित किया जाए -राकेश कुमार सिंह

एक्शन फ़ॉर जीरो टॉलरेंस के अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह ने अखबारी बयान जारी कर बी डी ओ परिहार निरंजन कुमार पर विभागीय कार्यवाही की मांग जिला प्रशासन से की है उन्होंने कहा कि नरगां पैक्स चुनाव में बी डी ओ के स्तर से अनियमितता बरती गई थी जिस में जाँच पदाधिकारी ने दोषी पाया था।उक्त पैक्स चुनाव में बरती गई अनियमितता की शिकायत जिला पदाधिकारी सीतामढ़ी से की गई थी जिला पदाधिकारी के आदेश पर तीन सदस्यी टीम ने जाँच किया था जिस का नेतृत्त्व ए डी एम हरि शंकर राम ने किया था और दो पदाधिकारियों बी सी ओ ,बी डी ओ परिहार निरंजन कुमार को दोषी पाया और दोनों पदाधिकारियों पर प्रपत्र' क'गठित कर विभागीय कार्यवाही की अनुशंसा की गई थी जिस में बी सी ओ परिहार पर प्रपत्र क गठित कर कार्यवाही तो की जा रही है वहीँ पर बी डी ओ परिहार पर प्रपत्र क गठन की कार्रवाई लम्बित है।

बुधवार, दिसंबर 14, 2016

3 शिक्षकों के जिम्मे 616 बच्चों के पढाई की ज़िम्मेदारी

मोहम्मद राशिद

बिहार

वो दोपहर लगभग 12 बजे का समय था जब मैं स्कूल के पास पहुँचा। जैसे जैसे स्कूल की तरफ बढ़ रहा था स्कूल की दयनीय स्थिति साफ होती जा रही थी। कुछ आगे बढ़ने पर गाय- भैंस के दर्शन भी हो गए जो स्कूल परिसर में ही बंधी थी और बार बार आवाज पर आवाज लगा रही थी। क्या मालुम स्कूल के बच्चो को बुला रही थी या शिक्षको को, तभी अचानक स्कूल के बोर्ड पर नजर पड़ी जहां लिखा था“उत्क्रमित मध्य विद्धालय कुशैल”।

ये बिहार के जिला सीतामढ़ी मुख्यालाय से लगभग 31किलोमीटर दूर पूरब में पुपरी अंचल के भिट्ठा धरमपुर पंचायत के कुशैल गांव के वार्ड नंबर 14 में स्थित है। लगभग 6 कट्ठे में फैले दो मंजिल विशाल इमारत को देख कर ही लग रहा था कि यहां सब कुछ विशेष होगा। इसी विशेषता को जानने की उत्सुकता लेकर विद्धालय में प्रवेश किया। सबसे पहले मेरी मुलाकात विद्धालय की प्रधान अध्यापक श्रीमती मंजू कुमारी से हुई। विद्धालय की जानकारी लेते हुए मैंने पुछा विद्धालय की हालत ऐसी क्यों दिख रही है। क्या आप लोगो को इससे परेशानी नहो होती?थोड़े गुस्से और थोड़ी विनम्रता के साथ उन्होने जवाब दिया “वो तो होगी ही आप ही देखिये विद्धालय के चारो ओर दिवार नही है। इसका अपना रास्ता भी नही है जिससे बारिश के मौसम में हमलोगों को आने जाने में बहुत दिक्कत होती है। 616 बच्चों पर सिर्फ दो चापाकल लगा हैं जिसमें से एक खराब है। 7 कमरे हैं एक कमरे को हम ऑफिस की तरह इस्तेमाल करते हैं”। स्कूल का अपना ऑफिस नही है क्या?पुछने पर मंजू कुमारी कहती हैं“होता तो हम ऐसा क्यों करते”। अच्छा कितने शिक्षक हैं यहां।“सिर्फ तीन एक मैं, दुसरे शिक्षक श्री राजेश दास जो आजकल अपनी ड्यूटी बीईओ (ब्लॉक शिक्षा अधिकारी) के कार्य़ालय में दे रहे हैं। जबकि तीसरी शिक्षिका शीला कुमारी आज नही आई हैं”। मंजु कुमारी ने जवाब दिया।

बच्चें 616 और शिक्षक सिर्फ तीन?चौंक कर मैने ये सवाल किया।“नही नही रोज सारे बच्चे थोड़े आते है कम ज्यादा तो होते ही रहता है”। घबराते हुए मंजु कुमारी ने कहा।

तब भी बच्चों को संभालना मुश्किल तो होता होगा? पुछने पर बताया हां ऑफिस से जब लोग आए थें तो बोले थें कि और शिक्षक सब आएगा लेकिन अभी तक कोई आया नही ता हम का करें। जब भी बीईओ के ऑफिस से कोई आता है तब हम सारी समस्याओं को बताते हैं लेकिन कोई कुछ कर ही नही रहा है। ओह और बच्चों का वजन और लंबाई तो बराबर चेक होता होगा ? “हां हर तीन महिने पर तौल लेते हैं अब सभी काम का हम हीं लोग करेंगें”।       

फिर स्कूल की वास्तविक स्थिति जानने के लिए कुछ बच्चों से बात की। जब चौथी कक्षा के सुनील कुमार से पुछा कि “आज कौन सा दिन है” तो वो गुरुवार को शनिवार कह रहा था। दुसरे छात्र ईद मुबारक हुसैन ने बताया कि “यहां पर पढ़ाई ठिक से नही होती है। हमलोगो का अलग अलग क्लास रुम नही है। जो स्कूल नही आता है उसकी भी हाजिरी बन  जाती है”।  

सांतवी मे पढ़ने वाले सतीश कुमार कहता है “स्कूल मे पहले तीन शिक्षक थें अब दो ही हैं शिक्षक की कमी के कारण सब बच्चों को किसी तरह दो ही क्लास मे पढ़ाया जाता है। इससे हमें बहुत परेशानी होती है। बाकी की कमरा खाली पड़ा है। जिसमें गंदगी के सिवा कुछ भी नही है।  विद्धालय परिसर में बहुत कुड़ा कचरा पड़ा रहता है। विद्धालय के चारो ओर दिवार भी नही है जिस कारण सुरक्षा तो दूर की बात है आस-पास के लोग गाय- भैंस को लाकर विद्धालय परिसर में बांध देते हैं, और गंदगी होती है”।

सांतवी कक्षा मे पढ़ने वाली करिशमा कुमारी जिसकी उम्र 14 वर्ष है कहती हैं “यहां लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नही है। हमें बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक ही शौचालय है लेकिन उसमें पानी ले जाने के लिए न तो बाल्टी है न ही मटका। शौचालय से आने के बाद हाथ धोने के लिए साबुन भी नही है”।

 13 वर्ष के पप्पु ने बताया  “स्कूल में बिजली है, सब कमरें में वाईरिंग भी है लेकिन सिर्फ ऑफिस मे पंखा और बल्ब लगा हुआ है।“

मधु कुमारी कक्षा आठ की छात्रा उम्र 14 वर्ष कहती है “मैडम छोटे बच्चों को तो पढ़ाती ही नही और बड़े बच्चों को थोड़ा बहुत पढ़ाती है होम वर्क देने के बाद 6-7 दिनों के बाद ही चेक करती है। रोज रोज नही करती”।

विद्धार्थी संजीव कुमार ने बताया"दो वर्षो में मुश्किल से हमलोगो का वजन तौला जाता है। विनोद, रिंकु-कुमारी ने भी यही बताया कि“वजन सही से नही तौला जाता। रिंकु ने ये भी कहा कि "हम लोगो को मिड डे मिल रुटीन के हिसाब से नही मिलता है। जिस जिन दाल, चावल, सब्जी बनाना होता है उस दिन चोखा खीचरी बनता है। और खाना भी भर पेट नही दिया जाता है। दाल भी बहुत पतली होती है जो खाने में अच्छा नही लगता। सब्जी भी सही से नही बनती है। चावल से कभी कभी बदबु आती है"।

उशा कुमारी चौथी की छात्रा कहती है कि “मीड डे मील सही से नही मिलता खाना अच्छा नही लगता।प्लेट इतना गंदा होता है कि हम लंच के समय घर से ही प्लेट ले आते हैं।स्कूल में साफ सफाई भी नही रहता है  बरसात के मौसम में बहुत बदबू आती है"।

पता करने पर पाया कि विद्धालय में खाना बनाने के लिए पांच रसोईयों की नियुक्ति की गई थी। जिसमें से दो रसोईयाँ ही उपस्थित थें। उन्होने कहा कि "स्कूल की हेडमास्टर स्कूल से घर चली जाती हैं और हमलोग चार बजे तक रहते हैं”।  

60 वर्ष के लक्षमण महतो कहते हैं“हमारे तीन बच्चें पढ़ने जाते हैं लेकिन पढ़ाई नही होती। 45 वर्षिय राखी देवी कहती हैं “मास्टर है ही नही है ता पढ़ाई कैसे होगा। मेरे पोते राहुल, और सुरज वहीं पढ़ने जाते हैं। और पोती कहती है कि दादी हम खुद से ही प्लेट धोते हैं”।भिट्ठा धरमपुर पंचायत के उपमुखिया राम नाथ यादव ने कहा कि “अभी शिक्षक की कमी है उसी हिसाब से पढ़ाई होती है”।

प्रधान अध्यापक  की बातें और छात्रों की बातों के बीच का अंतर ये समझने के से काफी है कि स्कूल की वास्तविक स्थिति क्या है।      यूँ तो देश के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर ए.पी.जे अबदुल कलाम आजाद ने सोचा था कि हमारे देश का हर एक नागरिक शिक्षित बने पर“उत्क्रमित मध्य विद्धालय कुशैल”का हाल देखकर ऐसा लगता है कि ये सपना उस समय तक पूरा नही हो सकता जबतक शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हर एक व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार न बन जाए। (चरखा फीचर्स)

पटना हाई कोर्ट ने दिया टीईटी शिक्षकों के पक्ष में फैसला

माननीय हाइकोर्ट ने दिया बिहार के सभी डीईओ को निजी कॉलेज से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिक्षकों को सवैतनिक अवकाश व बकाया वेतन देने का आदेश
~प्रदेश सचिव आनंद जी ने जीत का श्रेय जमुई, बांका के सभी 75 याचिकाकर्ताओं व बिहार के समस्त शिक्षकों को दिया है।
~न्याय देने के लिए प्रदेश सचिव ने माननीय हाइकोर्ट के प्रति जताया आभार, कोर्ट के निर्णय पर जताया पूर्ण आस्था
~ बिहार के सभी टीईटी शिक्षक के सवैतनिक अवकाश को रद्द करने के खिलाफ सबसे पहले मुकदमा दायर कर पूरे बिहार में माननीय न्यायालय से सवैतनिक अवकाश वेतन सहित लागु करवाने का आदेश आज दिलवा दिया, बिहार सरकार की हुई हार।

आज दिनांक 14 दिसम्बर 2016 को माननीय हाईकोर्ट में सवैतनिक अवकाश रद्द करने के मामले में जमुई डीईओ व सरकार के खिलाफ वरीय अधिवक्ता श्री पी के शाही व अधिवक्ता श्री मृत्युंजय कुमार के द्वारा किया गया जोरदार बहस के बाद बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश सचिव भाई आनंद कौशल जी के नेतृत्व में दायर याचिका CWJC 16775/2016 उत्तम कुमार & 75 शिक्षक में सफलता पूर्वक जीत हासिल हो गई है । जमुई डीईओ के सवैतनिक अवकाश को रद्द करने वाली पत्र को बिहार के सभी शिक्षकों की दुआ से माननीय न्यायमूर्ति ए के त्रिपाठी जी ने रद्द करते हुए निजी कॉलेज से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे सभी टीईटी शिक्षक सवैतनिक अवकाश देने का आदेश बिहार सरकार दिया है । जो BPNPSS के द्वारा बिहार के सभी टीईटी शिक्षक के लिए अथक प्रयास कर नए साल 2017 के पूर्व दिया गया शानदार गिफ्ट है और सरकार को शिक्षक विरोधी नीति के खिलाफ आरपार के लड़ाई का शंखनाद है ।
BPNPSS संघ ने जीत लिया टीईटी शिक्षकों के पक्ष में मुकदमा
प्रदेश सचिव आनंद जी ने जीत का श्रेय जमुई, बांका के सभी 75 याचिकाकर्ताओं व बिहार के समस्त शिक्षकों को दिया है।
साथ ही न्याय देने के लिए प्रदेश सचिव ने माननीय हाइकोर्ट के प्रति जताया आभार, कोर्ट के निर्णय पर जताया पूर्ण आस्था ।

सोमवार, दिसंबर 12, 2016

फौकानिया और मौलवी के परीक्षा फॉर्म भरने की तारिक़ में विस्तार

बिहार राज्य मदरसा बोर्ड ने नोट बन्दी से छात्रों को हो रही परेशानी को देखते हुए फौकानिया और मौलवी के परीक्षा फॉर्म भरने की तारिक़ में विस्तार कर विना लेट फाइन के 24 दिसम्बर और फाइन के साथ 30 दिसम्बर 2016 कर दिया है इस से पूर्व भी फॉर्म भरने की तिथि में विस्तार किया गया था। मालूम हो की एक्शन फ़ॉर जीरो टॉलरेंस के महा सचिव मो●कमरे आलम ने तिथि विस्तार की मांग चेयरमैन मदरसा बोर्ड बिहार से की थी।