मंगलवार, दिसंबर 27, 2016

नियोजित शिक्षकों को व्यक्तिगत ऋण नही देने को लेकर परिवाद दायर

बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ सीतामढ़ी जिला ईकाई द्वारा उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक द्वारा शिक्षकों को व्यक्तिगत ऋण नहीं देने की शिकायत जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी (सीतामढ़ी) के कार्यालय मे परिवाद-पत्र दायर कर किया है।जिसमें क्षेत्रीय प्रबंधक उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक, निदेशक मुजफ्फरपुर और ढेंग शाखा प्रबंधक के ऊपर आरोप लगाया गया है।जिसकी सुनवाई10जनवरी को 11बजे सीतामढी लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के कार्यालय में होनी है।
              

रविवार, दिसंबर 25, 2016

संघर्ष के लिये तैयार हैं :- इंसाफ इंडिया

इंसाफ इन्डिया : अब हम ना रुकेंगें , ना थकेंगें , ना डरेंगें , संघर्ष के लिये तैयार हैं , सड़क से संसद तक आवाज बुलंद करेंगें l हर जुल्म और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करेंगें l

झारखंड के जामताड़ा ज़िला में मिनहाज अंसारी के कत्ल के बाद सरकार , प्रशासन और व्यवस्था की लापरवाही , अनदेखी एवं कातिलों पर जानबुझ कर कोई कारवाई नही करना जामताड़ा के इंसाफपसंद , अमनपसंद एवं इंसानियत पसंद अवाम के बीच एक आक्रोश पैदा किया ज़िसकी एक उपज़ इंसाफ इन्डिया है , इंसाफ इन्डिया ने अवाम को इंसाफ दिलाने के लिये आवाज बुलंद करने एवं संघर्ष करने का जो पलेटफोर्म दिया उस पलेटफोर्म से आज दिनांक 24/12/2016 को भी गिरीडिह ज़िला के बदगुंदा गाँव में एक चौपाल कार्यक्रम में  Mustaqim Siddiqui ,  मुफती  Sayeed Alam  साहेब , मौलाना   Sarfraz Ahmad साहेब , मौलाना Liyaqat Riyazi  साहेब , डा. रकीब साहेब और जनाब रजा मुराद खां साहेब गाँव वालों के साथ l

इंसान ज़मींदोज़ हो रहे हैं... मुजस्समे बुलंद हो रहे हैं!!!

मुस्लिम बहुल सीटों को अनारक्षित करने और समान अवसर आयोग गठित करने की मांग के साथ ‘सच्चर कमेटी के १० साल :एक समीक्षा’ संगोष्‍ठी समाप्‍त


जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के 10साल पूरा होने पर सोशलिस्‍ट युवजन सभा (एसवाईएस), पीयूसीएल और खुदाई खिदमतगार ने दिल्‍ली में 22 दिसंबर को एक संगोष्‍ठी का आयोजन किया। संगोष्‍ठी का मकसद यह जानना था कि कमेटी की सिफारिशों पर पिछले दस सालों में कितना अमल हुआ है। सोशलिस्‍ट पार्टी के अध्‍यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने संगोष्‍ठी का परिचय देते हुए कहा कि इस विषय पर यह संगोष्‍ठी आगे की जाने वाली चर्चाओं की पहली कडी है। इसमें बुदि्धजीवियों और मुस्लिम समुदाय के प्रमुख संगठनों के नमाइंदों को वक्‍ता के तौर पर बुलाया गया है। बाद में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नुमाइंदों को भी बुलाया जाएगा। ताकि वे बता सकें कि उनकी सरकारों ने केंद्र और राज्‍यों के स्‍तर पर सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों को किस हद तक लागू किया है।

       पहले सत्र के अध्‍यक्ष वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट ने असलियत से पर्दा उठाने का काम किया है। मुस्लिमों को उनके अधिकार मिलें। आज के समय में मुस्लिमों की स्थिति बद से बदतर हुई है। उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हो रहा है। पहले राजनीति को मजहब से नहीं जोड़ा जाता था। मगर आज राजनीति पर मजहब हावी हो गया है। संविधान के तहत सभी समान है। हम सभी को अपना दिल टटोलना चाहिए कि हम कैसा समाज चाहते हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आज भी उतनी प्रासंगिक है जितनी वह पहले थी।

       सच्‍चर कमेटी के सदस्‍य रहे प्रो. टी.के ओमन ने कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट एक जाना-माना ऐतिहासिक दस्तावेज है। इस रिपोर्ट के जरिए मुस्लिम समाज के बहाने पूरी भारतीय समाज की झलक मिलती है। मनुष्य को जीवन जीने के लिए सिर्फ रोटी ही नहीं बल्कि समानता, सुरक्षा,पहचान और सम्मान भी चाहिए। आज अल्पसंख्यक समुदाय में जिन लोगों के पास भौतिक संसाधन मौजूद हैं उन्हें भी नागरिक के नाते सम्मान नहीं मिलता जिसके वे संविधान के तहत वह अधिकारी हैं। सुरक्षा की जब हम बात करते हैं तो हम शारिरिक हिंसा को ही हिंसा मानते हैं मगर हिंसा संरचनात्मक और प्रतीकात्मक भी होती है जिसे समझना अति आवश्यक है। मुसलमानों को इस तरह की हिंसा का अक्‍सर सामना करना पडता है। उदाहरण के लिए उन्‍हें बीफ खाने का वाला बताने का मामला मनोवैज्ञानिक और मानसिक उत्पीड़न का जीता-जागता उदाहरण है। मुस्लिम को शक की निगाह से देखा जाता है। हालांकि असमानता सभी समुदायों में देखने को मिलती है मगर जो असममानता किसी समुदाय विशेष का सदस्य होने से पैदा हुई हो यह एक बडी समस्या है।

       सच्‍चर कमेटी में सरकारकी तरफ से ओएसडी नियुक्‍त किए गए सईद महमूद जफर ने बताया कि मुस्लिम भारत में 14.2प्रतिशत हैं। जो तमाम अल्पसंख्यक समुदायों के 73 प्रतिशत हैं। अनुच्छेद 46 में समाज के कमजोर वर्गों को विशेष देखरेख का प्रावधान है। सच्चर कमेटी की रिर्पोट के अनुसार मुस्लिम समाज सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर खासा पिछड़ा हुआ है और 2006 से इनका स्तर नीचे गिरता जा रहा है। कमेटी की सिफारिशों में से अब तक मात्र 10 प्रतिशत ही लागू किया गया है। इसका एक बडा कारण प्रशासनिक पदों पर मुस्लिमों का नामात्र का प्रतिनिधित्व भी है।

       जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि आज मुसलमानों के प्रति समाज में विश्वास खत्म होता जा रहा है। सामाजिक तौर पर आज वह अलग-थलग पड़ गए हैं। मुसलमान होना आज खतरे का निशान बन चुका है। हमें मुस्लिम बच्‍चों व युवाओं की तालीम पर ध्यान देना चाहिए तथा सरकार और मीडिया को भी इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए।

       दूसरे सत्र के अध्यक्ष प्रो. मनोरंजन मोहंती ने कहा कि अल्पसंख्यकों समेत सभी वंचित समूहों के बारे में विधिवत अध्‍ययन और काम होना चाहिए। सबको अलग-अलग रख कर फुटकर काम करने से  कार्य व्यवस्थित और नियमित नहीं हो पाता। अखबार, किताब और पत्रिकाओं पर नजर डाली जाए तो मुस्लिमों की सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्‍ध है। अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। अल्पसंख्यकों के हित असुरक्षित होने पर हिंसा बढ़ती है। जब अधिकार सुरक्षित होते हैं तो उनके प्रतिनिधित्व के जरिए समाज में बदलाव आता है।

       जमाते इस्‍लामी हिंद के प्रधान महासचिव डॉ. सलीम इंजीनियर ने कहा कि सच्चर कमेटी की सिफारिश से पहले भी कई सिफारिशें की गई मगर यह अलग और अनूठी रिपोर्ट है, वास्तविक है, जमीनी स्तर पर काम किया गया है। क्या कारण है कि ऐसी चर्चित रिपोर्ट के बावजूद अल्पसंख्यकों की वास्तविक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ रहा है? इसके पीछे का कारण है सरकार और राजनैतिक पार्टियों की नीयत में खोट और प्रतिबद्धता की कमी। भारतीय जेलों में सबसे ज्यादा संख्या में अल्पसंख्यक मौजूद हैं जिनमें 85 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सबका साथ सबका विकास एक भावनात्मक जुमला है, वास्तविकता इसके उलट है। देश लोकतंत्र से फासीवाद की ओर बढ़ रहा है। देश की पहचान विविधता और बहुलता से है नाकि हिंदू राष्ट्र से।

       वरिष्‍ठ पत्रकार कुर्बान अली ने कहा कि इस रिपोर्ट पर मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है। मधु लिमय जी ने एक जन सभा को संबोधित करते हुए एक सवाल खडा किया था कि मुसलमानों का तुष्टीकरण कहां हो रहा है? क्या वह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक स्तर पर हुआ है? आपकी मानसिकता भेदभावपूर्ण है तो आप भलाई का काम नहीं कर सकते। यह भेदभाव सामाजिक ही नहीं, सरकारी स्‍तरपर होता है। उन्‍होंने याद दिलाया कि 1950 का वह परिपत्र अभी तक नहीं बदला गया हे जिसमें संवेदनशील पदों पर मुसलमानों को नहीं रखने की बात लिखी गई है।

       पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने कहा कि तुष्टीकरण का आरोप एक गलत सोच का नतीजा है। जब हिंदू पर्सनल लॉ है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। विविधता भारत की पहचान है। यूनिफार्म सिविल कोड के लागू करने के पीछे सबकी समानता का विचार न होकर,मुस्लिमों की पहचान खत्‍म करने की मंशा है। उन्‍होंने स्‍वीकार किया कि सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों पर कांग्रेस की सरकारों ने भी वाजिब काम नहीं किया। इन सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए।

       जमीयत उलेमा ए हिंद के सचिव हकीमुद्दीन कासमी ने कहा कि मुसलमानों को खुद पहल करके सबके साथ मिल कर अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए। डर और निराशा की मानसिकता को छोडना चाहिए। हिंदुस्‍तान के समाज में और भी समुदाय हैं जिनके साथ भेदभाव होता है। सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों पर आगे भी चर्चा जारी रहनी चाहिए। जमीयत उलेमा ए हिंद के दिल्‍ली प्रांत के सचिव जावेद कासमी ने कहा कि पराजय या किसी से बदले की भावना से काम नहीं करना चाहिए। सभी वंचित तबकों को मिल कर अपने समुदाय और देश की तरक्‍की का काम करना चाहिए।

       डॉ प्रेम सिंह सत्र के अंत में निष्कर्ष वक्तव्य देते हुए कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट केवल आंकडे़ नहीं देती बल्कि सभ्य समाज के क्या तकाजे हैं, एक सभ्य समाज के रूप भारत को दुनिया में कैसे रहना चाहिए उसकी जानकारी देती है। इस कमेटी की सिफारिशों पर अमल बहुत कम और वादे बहुत ज्‍यादा हुए हैं। हमें एक समतामूलक, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज की ओर बढ़ना चाहिए था मगर नतीजा उसके उलट है। ऐसा क्‍यों हुआ कि आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों का साथ देने वालों को आज न केचल राजनीति में, समाज में स्‍वीकृति मिल गई है। अंग्रेजों के साथ आने वाली साम्प्रदायिकता जो पहले शहरों के कुछ कोनों तक सीमित थी वह आज गांवों-कस्‍बों यहां तक कि आदिवासी समाज तक पहुंच चुकी है। आखिर ऐसा क्‍या हुआ कि सारे संस्‍थान सेकुलर लोगों के हाथ में होने के बावजूद साम्प्रदायिक ताकतों को आज इतनी ज्‍यादा जगह मिल गई है? हमें आत्‍मालोचन की भी जरूरत है। 1991 में लागू की गई नई आर्थिक नीतियों की मार्फत देश पर नवसाम्राज्यवादी गुलामी थोप दी गई। उसीका नतीजा आज के हालात हैं। आरएसएस विरोधी उसके पुराने एजेंडे को दोहराते रहते हैं। जबकि उसने तकनीक द्वारा विचारधारा को नष्‍ट करने का नया अजेंडा चलाया हुआ है। हम व्यावहारिक और सैद्धांतिक स्तर पर नए नजरिए से एकजुट होकर काम करेंगे तभी समतापूर्ण सभ्‍य समाज बना पाएंगे।     उन्‍होंने संगोष्‍ठी की तरफ से प्रस्‍ताव रखा जिसे स्‍वीकार किया गया। प्रस्‍ताव में सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों को अनारक्षित करने और समान अवसर आयोग बनाने की मांग की गई।
      
वक्‍ताओं का स्वागत डॉ अश्विनी कुमार और धन्‍यवाद ज्ञापन फैजल खान ने किया। पहले सत्र का संचालन एसवाईएस की राष्‍ट्रीय महासचिव वंदना पांडे और दूसरे सत्र का संचालन डॉ हिरण्‍य हिमकर ने किया।


शुक्रवार, दिसंबर 23, 2016

तालिमी मरकज़ के शिक्षा स्वयं सेवी को शिक्षक के पद पर समायोजित किया जाए - संघ

कटिहार। बिहार राज्य तालीमी मरकज शिक्षक संघ की जिला इकाई की बैठक हरिशंकर नायक उच्च विद्यालय प्रांगण में जिलाध्यक्ष मो. मुख्तार आलम की अध्यक्षता में हुई। बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश अध्यक्ष मो. अबूजर, प्रदेश महासचिव मो. तारिक अनवर, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य मो. शमशाद आलम भी मौजूद थे। बैठक को संबोधित करते हुए संघ के नेताओं ने कहा कि सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। अगर सरकार तालीमी मरकज शिक्षकों का समायोजन नहीं करते हैं तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। सरकार जो वादा किया था जिसमें शिक्षा स्वयं सेवकों, टोला सेवकों आदि का शिक्षक में समायोजन की बात थी, लेकिन सरकार अपने वादे से मुकर रही है।

गुरुवार, दिसंबर 22, 2016

छात्र हैं पर सभी छात्रों को छात्रवृत्ति नही मिलती

नुरानी फातिमा
सीतामढ़ी( बिहार)
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कुछ समय पहले आई खबर के अनुसार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने कहा कि “दिस देश में शिक्षा की पूंजी होती है वह देश तेजी से विकास करता है। उन्होने आगे कहा आज देश में 15 लाख विद्धालय, 38 हजार महाविद्धालय, तथा 700 विश्वविद्धालय संचालित हैं”। स्पष्ट है शिक्षा के आधार पर ही देश तरक्की कर सकता है। जिसे सरल बनाने के लिए छात्रवृत्ति जैसे विकल्प भी उपलब्ध कराएं गए हैं ताकि छात्र शिक्षा से सीधे रुप में जुड़ सके। लेकिन इस संबध मे बात बिहार की कि जाए तो स्थिति कुछ अच्छी दिखाई नही देती।
उदाहरण है पुपरी अनुमंडल क्षेत्र के भिट्टा धरमपूर पंचायत का “उत्क्रमित मध्य विद्धालय कुशैल” जहां छात्रों से बात करने पर पता चला कि बड़ी संख्या मे यहां  छात्र तो हैं पर उनके लिए उचित रुप से छात्रवृत्ति की व्यवस्था नही है।         
इस संबध में जब नौवीं कक्षा की छात्रा मधु कुमारी से बात की तो मधु ने बताया “दो साल से मुझे छात्रवृत्ति नही मिल रही है” हर बार यही सुनते हैं कि अब आएगा, अब आएगा लेकिन आता नही है। वहीं कक्षा 6 की छात्रा पूजा कुमारी का भी ये कहना है “कि हमलोगो को समय पर छात्रवृत्ति नही मिल रहा है बस इंतजार ही कर रहें हैं। 7वीं की छात्रा करिशमा कुमारी ने बताया “जब भी मैडम से छात्रवृत्ति के बारे पूछते हैं तो कहती हैं कि मिल जायेगा”। कक्षा 6 के पंकज कुमार पिता कमेश राय ने कहा “हमलोग को पोशाक का 700 और छात्रवृत्ति 1200 मिलता है। लेकिन हमलोग को आधा पैसा ही दिया जाता है मैडम से पूछते हैं कि बाकी पैसा कब मिलेगा तो कुछ ठिक - ठिक नही बताती”।
छात्रों के साथ साथ अभिभावक भी इस कारण परेशान हैं कुछ अभिभावक ने कहा “हमरा बच्चा चार साल से पढ़े छे, मगर पैसा दो बार ही मिलल है”। इसी संबध में अभिभावक लक्ष्मण महतो ने बताया “कुछ बच्चो को छात्रवृत्ति और पोशाक राशि मिलती है, और कुछ को नही मिलता, समझ मे नही आता इ का बात है”। आंसमा खातून के पिता ने कहा “हमारा बच्चा तीन साल से पढ़ रहा है मगर छात्रवृत्ति एकही बार मिली है”।एक अन्य अभिभावक ने बताया “मेरा बच्चा 4 साल से पढ़ रहा है। मगर पैसा दो बार मिला है”।  कुछ अभिभावको ने ये भी कहा कि “जो बच्चा कभी स्कूल नही जाता उसको भी पैसा मिलता है”। 60 वर्षिय महिला रीता देवी ने बताया “हमहुं कलकीन मैडम के कब मिलबे पैसा त मैडम कहनी कि जब आबत त देब। दो साल भई गईल हमरा बच्चा के कुछियो न मिलल”।
मामले की गंभीरता जानने के लिए जब प्रधानाचार्य मंजु देवी से बात की तो उन्होने साफ शब्दों में बताया “अक्टुबर 2015 से कार्यभार संभाला है और स्कूल की देख रेख कर रही हूँ। अभी छात्रवृत्ति की 50 प्रतिशत राशि बच्चों को दिया जाता है। और 50 प्रतिशत बच्चों के खाते में जाएगा। मेरी तो इच्छा है कि यहां हाई स्कूल भी हो जाए ताकि बच्चो को दूर - दूर पढ़ने के लिए जाना न पड़े। और बच्चों को पूरी सुविधा मिल सके। बाकी सभी बच्चों को छात्रवृत्ति मिल जाए इसके लिए मैं पूरी कोशिश करुंगी। आप चाहें तो प्रखंड शिक्षा अधिकारी से भी बात कर सकती हैं क्योंकि वास्तविक स्थिति से तो वही अवगत कराएंगे”। 
अंततः प्रखंड शिक्षा अधिकारी रघु से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होनें कोई जानकारी न देते हुए सीधे फोन काट दिया।
आपको बतातें चलें कि पिछले कई दिनों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी निश्चय यात्रा में बिहार की शिक्षा व्यवस्था को उत्तम से सर्वोत्तम बनाने पर जोर दे चुकें हैं। लेकिन इस विद्धालय और शिक्षा प्रतिनिधियों का रवैया देखकर तो नही लगता कि शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सचमुच उत्त्म से सर्वोत्म तक का सफर तय कर पाएगा।
(चरखा फीचर्स)  
Pic1- लेखिका बच्चों से बात करती हुई।
Pic 2- विद्धालय परिसर में बच्चें ।  

बुधवार, दिसंबर 21, 2016

घर में गरीबी आने के असबाब

घर में गरीबी आने के असबाब ये हैं लिहाज़ा इनको करने से अपने आप को रोकें:-                    
1= गुस्ल खाने में पैशाब करना           
2= टूटी हुई कन्घी से कंगा करना
3= टूटा हूआ सामान इस्तेमाल करना
4= घर में कूडा़ करकट रखना
5= रिश्तेदारो से बदसलूकी करना
6= बांए पैर से पेैजामा पहनना
7= मगरीब ईशा के बीच सोना
8= मेहमान आने पर नाराज होना
9= आमदनी से ज्यादा खचॆ करना
10= दाँत से रोटी काट कर खाना
11= चालीस दिन से ज्यादा जेरे नाफ के बाल रखना
12= दांत से नाखून काटना
13= खडे़ खडे़ पेजामा पहनना
14= औरतो का खडे होकर बाल बांधना
15 = फटे हुए कपड़े जिस्म पर पहनना
16= सुबह सूरज निकलने तक सोना
17= दरख्त के नीचे पैशाब करना
18= बैतुल खला में बाते करना
19= उल्टा सोना
20= कब्रिस्तान में हसना                      21= पीने का पानी रात में खुला रखना
22= रात में सवाली को कुछ ना देना
23= बुरे ख्यालात करना
24= बगैर वजू के कुरआन पड़ना
25= इस्तंजा करते वक्त बाते करना
26= बगैर हाथ धोए खाना शुरू करना
27= अपनी औलाद को कोसना
28= दरवाजे पर बैठना
29= लहसुन प्याज के छीलके जलाना
30= फकीर से रोटी या फिर और कोई चीज खरीदना
31= फुक से चिराग बुझाना
32= बगैर बिस्मिल्लाह पडे़ खाना शुरू करना
33= झूठी कसम खाना
34= जूता चप्पल उल्टा देख कर सीधा नही करना
35= हालात जनाबत मे हजामत करना
36= मकड़ी का जाला घर में रखना
37= रात को झाडू लगाना
38= अन्धेरे में खाना
39= घड़े में मुंह लगाकर पीना
40= कुरआन न पड़ना

हदीस में है कि जो दूसरो का भला करता है । अल्लाह उसका भला करता है।                      
पड़ कर दुसरो को भी सुनाओ
[कुरआन ए पाक के 5 रुकू हर रोज पडने से साल मे 3 कुरआन ए पाक मुकम्मल हो जाती है , जब आप ये मेसेज आगे भेजने लगेंगे तो, शैतान आपको रोकेगा आपके ज़हन मे ख्याल डालेगा की अबी नही बादमे देखेंगे , पर आपने ईस साजीश को नाकाम करना है, इस मेसेज को आगे ईतना फैलाए जीतना आप कुरआन ए पाक  से मोहब्बत करते हो

मंगलवार, दिसंबर 20, 2016

शौचमुक जागरूकता अभियान को लेकर प्रभात फेरी निकला

शौचमुक जागरूकता अभियान को लेकर प्रा○वि○एकडंडी उर्दू कन्या परिहार के प्रधानाध्यापक इफफत आरा बेगम के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकला गया जिस में सभी शिक्षक शिक्षिका और छात्र /छात्राओं  ने हिस्सा लिया

रविवार, दिसंबर 18, 2016

क्या हिंदुस्तान और पाकिस्तान के सम्बन्ध को ठीक नहीं किया जा सकता ?

क्या हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बाहमी तायल्लुकात को हम्वार नहीं किया जा सकता  ? ये ऐसे सवालात हैं जिस पर हिन्द व पाकिस्तान में  अवामी बहस होनी चाहिए मगर ऐसे मुद्दों पर दोनों ममालिक में बात नही होती, आखिर क्या वज्हें हैं  ? दोनों ममालिक के कायदो को क्या बखूबी अंदाजा है कि अगर रिश्ते हम्वार हो गए तो चुनावी सियासत की बिसात बिखर जाएगी  ?

शनिवार, दिसंबर 17, 2016

मेरे सवाल और क़ुरान के जवाब

🔵मैंने कहा: तेरी मदद कैसे मिलेगी या रब?
जवाब मिला:
🔴सब्र और नमाज़ से मदद लिया करो।

🔵मैंने कहा: मैं बहुत गुनाहगार हूँ।
जवाब मिला:
🔴अल्लाह की रहमत से मायूस न हो अल्लाह सब गुनाह बख़्श देगा।

🔵मैंने कहा: मेरे दिल को सुकून नहीं है।
जवाब मिला:
🔴बेशक़ अल्लाह की याद से ही दिल को इतमिनान है।

🔵मैंने कहा: मैं बहुत अकेला हूँ।
जवाब मिला:
🔴बेशक़ हम राग़-ए-जान से भी ज़्यादा क़रीब हैं।

🔵मैंने कहा: मुझे कोई याद नहीं करता।
जवाब मिला:
🔴तुम मुझे याद करो मैं तुम्हें याद करूँगा।

🔵मैंने कहा:
मेरी राहों मे बहुत परेशानियाँ हैं।
जवाब मिला:
🔴जो अल्लाह से डरता है, अल्लाह उसकी निजात की सूरत निकाल देता है।

🔵मैंने कहा: मेरे बहुत से अधूरे ख्वाब हैं।
जवाब मिला:
🔴मुझसे दुआ करो मैं कुबूल करूँगा।

ख़ुशनसीब हूँ मैं, क्योंकि मुसलमान हूँ।

🔷किसी को सलाम करूँ तो नेक़ी,
🔷किसी को मुस्कुराकर देखूँ तो नेक़ी,
🔷कोई काम से पहले बिसमिल्लाह पढ़ूँ तो नेक़ी,
🔷गुस्सा पी जाऊँ तो नेक़ी,
🔷सीधे हाथ से पानी पीऊँ तो नेक़ी,
🔷किसी को सही पता बताऊँ तो नेक़ी,
🔷किसी का हक़ अदा करूँ तो नेक़ी,
🔷कुरान सुनूँ या सुनाऊँ तो नेक़ी,
🔷माँ बाप को के देखूँ तो हज का सवाब,
🔷ये सब बात किसी को बताऊँ तो नेक़ी,
🔷वो अमल करे तो भी नेक़ी।

अल्लाह तो लुटा रहा है बस, हम लेने वाले बन जाएँ।
आमीन!

जब हम क़ुरान पाक़ उठाते हैं तो शैतान के सर में दर्द होता है,
जब हम क़ुरान पाक़ खोलते हैं तो वो परेशान हो जाता है,
जब हम क़ुरान पाक़ को पढ़ते हैं तो वो कमज़ोर हो जाता है,
तो चलो, आओ क़ुरान पाक़ पढ़ें ताकि वो कमज़ोर हो जाए।
इतना कमज़ोर कि एक दिन ऐसा आए कि वो उठ भी न सके।
और क्या आप जानते हो?
कि आप इस मैसेज को फाॅरवर्ड करने का इरादा करोगे तो शैतान तुम्हारे इरादे को कमज़ोर करने की कोशिश ज़रूर करेगा।
मगर आप अपने इरादे को कमज़ोर न होने देना।

शुक्रवार, दिसंबर 16, 2016

परिहार के पुराने पैक्स गोदाम की लकड़ी गायब करने का आरोप

परिहार उत्तरी पैक्स के सदस्यों ने प्रखंड विकास पदाधिकारी परिहार से परिहार उत्तरी पैक्स अध्यक्ष और तत्कालीन अध्यक्ष(सम्प्रति परिहार पैक्स)पर लाखों रुपए के लकड़ी को गायब कर देने का आरोप लगाया है।सदस्यों ने कहा है कि परिहार उतरी पैकस के पुराने गोदाम को तोड कर लाखो रुपया का सखुआ का लकडी ,ईंट इत्यादि को वर्तमान अध्यझ और उनके भाइ तत्कालीन अध्यक्ष अजीम आलम ने  गायब कर दिया।
            

Daily chingari चिंगारी چنگاری: बिहार में बदतर शिक्षा का दोषी कौन ?

Daily chingari चिंगारी چنگاری: बिहार में बदतर शिक्षा का दोषी कौन ?

मर्द और औरत के बीच की ग़ैर बराबरी ख़त्म होनी चाहिए

मेहजबीन

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"दुश्मन न करे दोस्त ने ये काम किया है। 
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है" 

शाम को बीवी का हंसता मुस्कुराता चेहरा  दिन भर की थकान से, शौहर को हस्सास बशास कर देता है। क्या यही बात शौहर पर लागू नहीं होनी चाहिए, क्या सिर्फ दिन भर शौहर ही काम करता है ?मेहनत करता है ?बीवी कुछ भी नहीं करती ? बल्कि वो तो घर के अंदर - बाहर, सास - ससुर, बच्चों की देखभाल भी करती है दिन भर, और फिर रात को भी खटती है, सुबह बिस्तर से उठकर फिर रात को बिस्तर पर जाकर ही, फुर्सत मिलती है। अगर बीवी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर शौहर को सकून व आराम मिलता है तो, फिर बीवी भी तो आराम और सकून की तलबग़ार है, वो भी तो किसी की मुस्कान देखना चाहती है, होता यह है कि दिनभर बाहर, दफ्तर बस, मेट्रो, कामकाज़  सहकर्मियों के साथ हुई तू - तू, में - में की भड़ास मर्द घर आकर अपनी औरतों पर उतारते हैं, यानी उसी औरत की मुस्कान से अपनी थकान भी दूर करनी है, और उसी को गालियाँ सुनाकर अपनी दबी हुई भड़ास भी निकालनी है। ऐसे में पति के घर आते ही गालियाँ सुनने के बाद, बुरा भला सुनने के बाद, वो औरत कैसे मुस्कुराएगी ? किस मन से मुस्कुराएगी? शौहर के पैरों के नीचे जन्नत है, और उस जन्नत को पाने के लिए, हंसने की ऐक्टिंग ही तो करेगी बेचारी, असली हंसी तो नहीं हंसेगी न। कुछ घरों में शायद ऐसा न होता हो, जहाँ पति - पत्नी एक दूसरे को बराबर का दर्ज़ा देते हों, समझते हों, मुहब्बत करते हों, सुलझे हुए हों,एक दूसरे को अहमियत देते हों, मगर ज़्यादा तर घरों में तो ग़ैरबराबरी ही होती है। 

बीवी हमेशा जी हुज़ुरी में रहे, शौहर के लिए सजे संवरे, मुस्कुराती रहे और शौहर तानाशाह की तरह उसे सिर्फ अपनी ज़रूरत पुरी करने का ज़रिया ही समझे। इंसान नहीं समझे, अल्लाह की मख़लूक़ नहीं, हमसफर नहीं, दोस्त नहीं। शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी पुरुषों के अंदर से पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हुई। वो सिर्फ पैसा कमाने की मशीन ही बने, ऐसे ही महिलाएं भी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी, सिर्फ पैसा ही जुटा सकी हैं, मध्यकालीन सोच से उन्हें राहत नहीं मिल सकी है। सास - बहू, ननद - भाभी, देवरानी-जेठानी की सियासत उनपर आज भी हावी है, औरत ही औरत की दुश्मन बनी हुई है, फिर पुरुषों से संवेदना कहां से मिले? 

उर्दू साहित्य की  रचनाकार इस्मत चुग्तई जी की कहानी 'छुईमुई'(टच मी नॉट )  भी कुछ ऐसे ही विषय पर लिखी गई है। कि औरत सिर्फ शोहर के सकून आराम के लिए है, उसके मनोरंजन के लिए, उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, और उसके ख़नदान को वारिस देने के लिए है, सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन है। और इन सब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, चाहे जितने भी दु:ख झेलने पड़े, और इन सब दु:ख तक़लीफों में उसे सजे- संवरे भी रहना है, मुस्कुराते भी रहना है, अपनी परेशानी को ज़याहिर नहीं करना है, चेहरे पर मनहूसियत नहीं लानी, चाहे जो कुछ भी हो जाए, चेहरा दमकता - चमकता रहना चाहिए, और बच्चे पैदा करने के लिए सदाबहार बने रहना चाहिए। यही है औरत की दुनिया, और जन्नत। उसकी अपनी कोई ज़रूरत नहीं, खुशी नहीं, सोच नहीं, वज़ूद नहीं? शादी से पहले भाईयों के लिए क़ुर्बानियां देती रहे, लिंगभेद की मार झेलती रहे, और शादी के बाद शोहर के पुरे परिवार के झंडे के निचे रहे। और सिर्फ शोहर की खुशी के लिए जिये, और ऐसे ही एक दिन अपनी सारी आरज़ूएं दिल में लिए क़ब्र में चली जाए। एक थी शबनम एक थी पूनम, दोनों  यूं ही मर गई, ख़त्म कहानी।

"अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्लाह" 

तीन तलाक़ के विषय पर बहस हो रही है.... आजकल, कितनी भी बहस हो ले, इस मसले पर, तानाशाही हकूमत में कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं है..... लानत है उन तानाशाहों पर, कि जिन्होंने हर वक्त उनकी जीहूजीरी में, मातहती में गुज़ारा है, और उन्होंने एक झटके में तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहकर फैसला सुना दिया.... अल्लाह तआला का अर्शे अज़ीम हिला दिया..... एक लफ्ज़ का जब चाहे ग़लत इस्तेमाल कर लिया, लानत है ऐसे दकियानूसी, पुरुषवादी मानसिकता पर....... ऐसे लानत याफ्ता तानाशाहों के निकाह के अंदर रहें, या बाहर.... फज़ीहत तो होनी ही है, औरत की... निकाह के अंदर हैं तो, सिर पर मुसल्लद तानाशाह जीने नहीं देता.... और निकाह के बाहर रहो तो, लोग और परिवार वाले, अपने खून के ही रिश्ते, जीना दुश्वार कर देते हैं....

तलाक़ कहां जायज़ है, और कहां नाजायज़ है सबसे पहले यह समझने की ज़रूरत है, तलाक़ केवल मर्द ही नहीं दे सकते हैं, ज़रूरत पड़ने पर, औरतें भी ले सकती हैं, यदि किन्हीं कारणों से औरत अपने शोहर से खुश नहीं है, जुल्म सहती है, दबाई जाती है, मानसिक, शारीरिक, आर्थिक तकलीफों से गुजरती है, उसके साथ परिवार (ससुराल ) में ग़ैरबराबरी होती है, तो औरत भी तलाक़ ले सकती है, उसके माता-पिता, भाई-बहन  को जबरदस्ती रिश्ता निभाने के लिए मज़बूर नहीं करना चाहिए। और खुला लेने की इजाज़त देनी, चाहिए उसे मानसिक, आर्थिक, शारीरिक सपोर्ट करना चाहिए। लेकिन अफसोस माँ-बाप, भाई - भाभी  उसे उसी नर्क में धकेल देते हैं सिसक- सिसक के मरने के लिए। तलाक़ देने लेने का हक़ मर्द और औरत को बराबर है, इस्लाम में। लेकिन समाज - परिवार में फैली ग़ैरबराबरी के कारण होता यह है कि मर्द तो बीवियों की छोटी-छोटी सी ख़ताओं के लिए, अपनी जरूरतों के लिए तलाक़ दे देते हैं, अपनी बीवियों को। और  औरत का कोई सहारा नहीं वो एक छत के नीचे रहने के लिए, शोहर की और उसके परिवार की जादतीयों को सहती रहती है, क्योंकि ऐसी स्थिति में उसके मायके वाले भी साथ छोड़ देते हैं। आज अत्याधुनिक - डीजीटेल होने के बाद भी लोग, सड़ी गली मानसिकताओं को ढो रहे हैं। मौलाना तारीक़ जमील का ब्यान इस तरह की समस्याओं पर बहुत सटीक है, तलाक़ जैसे मसलों पर और मर्द - औरत के हक़ूक़ जैसे मसलों में, ग़ैरबराबरी दूर करने की ज़रूरत है। कुर्आन को पढ़ने से ज्यादा समझने की ज़रूरत है, अगर सही तफसीर (व्याख्या ) को समझकर उसपर अम्ल किया जाए तो, बहुत कुछ अच्छा हो सकता है, लेकिन अफसोस  ज्यादातर मुसलमान अर्बी भाषा की रीडिंग ही कर रहे हैं, अर्थ को मंतव्य को समझने की कोशिश नहीं करते हैं।

       मेहजबीं
( ये लेखक की अपनी राय है  )